लुप्त होते लोकगीतों को बचा रहा उत्तराखंड का एक इंजीनियर

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-डॉक्टर शेर सिंह पांगती के गानों से की शुरुवात।

-पप्पू कार्की को दिया था मौका।

-पप्पू कार्की द्वारा गाया “झम्म लागै छी” हुआ था सबसे पहले वायरल।

-रम्पाट, सुन ले दगड़िया, डीडीहाट की छमना छोरी, हीरा समधणी, लाली हो लाली होसिया, घाम छाया ले, घुमक्या मदल, साली लसपाली, सिलगढ़ी का पाला छाला जैसे सुपरहिट गीत बनाए।

-1,80,000 सब्सक्राइबर तथा छह करोड़ व्यूज हैं यूट्यूब पर।

समाचार सच, हल्द्वानी। बहादुर कब किसी का आसरा एहसान लेते हैं, उसी को कर गुजरते हैं जो दिल में ठान लेते हैं। अपने प्रयासों से उत्तराखंड के लुप्त होते हुए लोकगीतों को बचाने का बीड़ा उठाया है इंजीनियर नरेंद्र टोलिया ने। उनका मकसद है कि पुराने लुप्त होते जा रहे गीतों को आगे बढ़ाया जाए तथा उन कलाकारों को भी एक मंच मिले जो अच्छा गाने के बावजूद भी कहीं गुमनामियों के अंधेरों में जी रहे हों। नब्बू दा उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के एक छोटे से गांव से निकलकर इंजीनियर बने और फिर न केवल अपने संगीत के शौक को पूरा किया बल्कि पप्पू कार्की, गोविंद दिगारी, प्रह्लाद मेहरा और किशन महिपाल जैसे अनेक कलाकारों को भी बुलंदियों तक पहुंचाने में सहयोग किया। नरेंद्र टोलिया(नब्बू दा) द्वारा संपादक अजय चौहान और मोटिवेशनल स्पीकर कुलदीप सिंह को दिए गए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के कुछ मुख्य अंश:

आप उत्तराखंड में कहां से हैं तथा आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताएं ?

मैं मूल रूप से मुनस्यारी का रहने वाला हूं। लेकिन मेरा जन्म डीडीहाट में हुआ। मेरे बड़े भाई ने ही मुझे पाला-पोसा और मैं अपने बड़े भाई की बदौलत ही आज इस मुकाम तक पहुंचा हूं। मैंने डीडीहाट से ही 1988 में इंटर पास किया। मेरे बड़े भाई इंश्योरेंस कंपनी में सीनियर मैनेजर थे और उस वक्त चंडीगढ़ में थे। मैंने वहीं पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग पूरी करी।

आपका संगीत के क्षेत्र में आना कैसे हुआ?

मेरा बचपन से ही संगीत से काफी लगाव था। डीडीहाट में होने वाली रामलीला में भी हम भाग लिया करते थे। वर्ष 2010 में मुनस्यारी के डॉक्टर शेर सिंह पांगती ने जोहार के 6-7 गाने पंचपाल जी की आवाज में रिकॉर्ड किए थे। मेरे पहले से मन था कि मैं इस कैसेट को और बेहतर रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करूं। मैंने उनसे संपर्क किया और उन्होंने मुझे इस काम को करने की सहर्ष स्वीकृति दी। इस वाली दुनिया में लाने के लिए मैं डॉक्टर शेर सिंह पांगती का बहुत ही आभार व्यक्त करता हूं। मैंने तब ‘रंगीलो जोहार मा’ नाम से 8 गानों की पहली कैसेट निकाली।

अपनी पहली कैसेट ‘रंगीलो जोहार मा’ के बारे में कुछ बताएँ?

यह कैसेट विनोद जोशी जी की मां वैष्णो कंपनी में 2009-10 में रिकॉर्ड की गई। शूटिंग मुनस्यारी में हुई। उस कैसेट से हमें काफी आगे बढ़ने का मौका मिला।

चांदनी इंटरप्राइजेज कब अस्तित्व में आया?

चांदनी इंटरप्राइजेज कंपनी बनने में छोटे भाई गोविंद दिगारी जी की एल्बम “रम्पाट” का बहुत बड़ा योगदान है। इसमें किशन महिपाल, लव राज आर्या और धारचूला के कलाकार थे। इसका नाम डीडीहाट के हमारे एक मित्र की बहन के नाम पर है।

उसके बाद आयी प्रहलाद मेहरा जी की “माइली मुखड़ी”, ललित मोहन जोशी जी की “चांद तारों” में और पप्पू कार्की की “झम्म लागी रे”। जिससे उनको पूरे उत्तराखंड तथा देश-विदेश में प्रसिद्धि मिली।

आपके मन में यूट्यूब चैनल बनाने का ख्याल कैसे आया?

मुझे यूट्यूब के बारे में ज्यादा पता नहीं था। मेरे दिल्ली के एक दोस्त ध्रुव त्यागी ने मेरा यूट्यूब चैनल बनाया। उससे पहले भी मैं लगभग 100-150 गाने कर चुका था।

आपके चैनल के कितने सब्सक्राइबर तथा व्यूज हैं?

1,80,000 सब्सक्राइबर तथा छह करोड़ व्यूज।

आपके चैनल का वायरल होने वाला सबसे पहला वीडियो कौन सा था?

पप्पू कार्की द्वारा गाया गया “झम्म लागै छी” से मेरा चैनल बहुत आगे बढ़ा।

पप्पू कार्की जी से कैसे मुलाकात हुई और यह गाने रिकॉर्ड करने का सिलसिला कैसे चला?

पप्पू कार्की जी मुझसे मिलने से 10 साल पहले से गा रहे थे लेकिन उन्हें कहीं बढ़िया प्लेटफॉर्म नहीं मिल पा रहा था।

2011 में बहुत से लोगों ने मुझसे बोला कि पप्पू कार्की बहुत अच्छा गाना गाता है। “उनकी आवाज सुनकर मुझे लगा कि इसमें कुछ है।” उनके कुछ गाने रिलीज नहीं हो पा रहे थे तो मैंने उनका साथ दिया। मैंने “डीडीहाट की छमना छोरी”, “सुन ले दगड़िया” गाने दिल्ली में जाकर रिकॉर्ड कराए।

किशन महिपाल जी, चंद्रप्रकाश, गणेश बोरा और ध्रुव त्यागी को मैंने शूटिंग के लिए मुनस्यारी से 60 किलोमीटर दूर बीहड़ क्षेत्र में पैदल भेजा। जब यह कैसेट निकली तो पप्पू कार्की जी उससे बहुत फेमस हुए। मेरा हीरू नेहगी भावरा, रंगीला भावर में सब गांव के कलाकार थे। मैंने इसकी शूटिंग सातूं-आठू पर्व के दौरान की। अगर पप्पू आज भी होता तो सुर सम्राट ही होता। उनके गानों को लोग आज भी सुन रहे हैं और आगे भी सुनेंगे।

गित्यार कार्यक्रम कराने के पीछे क्या उद्देश्य था?

मैं, पप्पू कार्की, प्रहलाद मेहरा जी और गोविंद दिगारी जी अक्सर एक साथ बैठा करते थे। तो पप्पू कार्की जी ने बोला कि ऐसा कार्यक्रम कराया जाए कि जिससे दूरदराज के कलाकारों को भी आगे बढ़ने का एक मौका मिले। उसके लिए पप्पू कार्की की इतनी जिद थी कि वो डेढ़ महीना मुंबई जा कर रहा और वहां से उसने कार्यक्रम के ब्रोशर तैयार किए। लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो पाने के कारण उस वक्त हम उस कार्यक्रम को कर नहीं पाए।

“एक दिन मैंने सभी से कहा कि उसके सपने को साकार करने के लिए अगर हम कुछ कर पाएं तो अच्छा होगा।” उत्तराखंड के सभी पुराने कलाकारों को एकत्र करना भी इस कार्यक्रम का लक्ष्य था। मैं आभारी हूं कि उन्होंने मेरे आमंत्रण को स्वीकारा।

आपकी टीम में कौन-कौन है?

किशन महिपाल जी ने पहले हमारी टीम में बहुत काम किया है। गोविंद नेगी जी, अप्पू रावत जी, सोहन चौहान, सैंडी गोसाई और शैलेंद्र पटवाल।

प्रकाश जोशी, जनार्दन उप्रेती, हयात दा भी सहयोग करते हैं।

आप नौकरी के साथ-साथ इस काम के लिए कैसे वक्त निकाल लेते हैं?

यह मेरा शौक है और मैं इसके लिए समय निकाल ही लेता हूं। इसमें मेरे घर और ऑफिस के सभी लोगों का सहयोग रहता है। मेरा पहला काम नौकरी करना है जिससे मेरी रोजी-रोटी चल रही है। मैं छुट्टी के दिन इन कामों को करता हूं।

आप किन लोगों के फैन हैं?

संगीत की दृष्टि से नरेंद्र सिंह नेगी जी का और सामाजिक कामों के लिए बुंगा-छीना के कमल किशोर का।

क्या सोर डीडीहाट फाउंडेशन से आप लोगों की मदद भी करते हैं?

छोटे भाई जगजीवन कन्याल जी ने 7- 8 साल पहले यह फाउंडेशन बनाया। उसके माध्यम से हम स्कूलों में गरीब बच्चों को बैग, ड्रेस और किताबें उपलब्ध कराते हैं। राजकीय इंटर कॉलेज डीडीहाट में हमने 3-4 शिक्षक रखे हुए हैं जो मुफ्त में पढ़ाते हैं। 18 से 19 बच्चे इस वर्ष प्रथम डिवीजन में पास हुए हैं।

नए कलाकारों के लिए आपका क्या संदेश है?

मेहनत तो बहुत कर रहे हैं बच्चे लेकिन आजकल तो प्रैक्टिकल का जमाना है। कि किस तरह से आप अपने गीतों में नयापन लाते हैं। मेरा मकसद भी यही है कि पुराने लुप्त हुए गीतों को आगे बढ़ाऊँ। ऐसा गाना बनाओ जिसमें हमारी प्राचीन संस्कृति भी झलकती हो। केवल ज्यादा व्यूज और पैसे कमाना ही उद्देश्य नहीं होना चाहिए। काम की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए।

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