दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की कथा का पाठ करने से होती है सभी मनोकामना पूर्ण

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समाचार सच, दिवाली के प्रदोष काल में माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करने आती हैं। और जो कोई उनकी इस दिन सच्चे मन से अराधना करता है। वह उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दिवाली वाले दिन कई लोग व्रत भी रखते हैं और फिर शाम के समय विधि विधान पूजा करने के बाद व्रत खोलते हैं। जानिए दिवाली की पावन कथा…..

दिवाली की पौराणिक कथा

एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मीजी सहित पृथ्वी पर घूमने आए। कुछ देर बाद भगवान विष्णु लक्ष्मीजी से बोले- मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ । तुम यहीं ठहरो, परंतु लक्ष्मीजी भी विष्णुजी के पीछे चल दीं। कुछ दूर चलने पर ईख (गन्ने) का खेत मिला। लक्ष्मीजी एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। भगवान लौटे और जब उन्होंने लक्ष्मीजी को गन्ना चूसते हुए देखा तो क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि यह खेत जिस किसान का है तुम उसके यहाँ पर १२ वर्ष तक रहकर उसकी सेवा करो।

विष्णु भगवान क्षीर सागर लौट गए तथा लक्ष्मीजी ने किसान के यहाँ रहकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। उस किसान को पता ही नहीं था कि उसके घर में एक साधारण स्त्री के रूप में रहने के लिए स्वयं लक्ष्मीजी आई है। १२ वर्ष के बाद लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के पास जाने के लिए तैयार हो गईं परंतु किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। श्राप की अवधि पूर्ण होने पर भगवान विष्णु स्वयं लक्ष्मीजी को वापस लेने आए परंतु किसान ने लक्ष्मीजी को रोक लिया। इस पर विष्णु भगवान ने उस किसान से कहा कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और इन कौड़ियों को भी गंगाजल में छोड़ देना तुम्हारे आने तक मैं यहीं रहूँगा।

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किसान गंगा नदी में स्नान करने पहुँचा और गंगाजी में कौड़ियां डालते ही चार भुजाएँ निकली जिन्होंने वे कौड़ियाँ अपने पास ले ली। यह देखकर देखकर किसान ने गंगाजी से पूछा कि ये चार हाथ किसके हैं। गंगाजी ने किसान को बताया कि ये चारों हाथ मेरे ही थे। तुमने जो मुझे कौड़ियाँ भेंट की हैं, वे तुम्हें किसने दी हैं? किसान बोला कि मेरे घर पर एक स्त्री और पुरुष आए हैं। तभी गंगाजी बोलीं- वे लक्ष्मीजी और भगवान विष्णु हैं। तुम लक्ष्मीजी को मत जाने देना, नहीं तो पुनरू निर्धन हो जाओगे।

किसान ने घर लौटने पर लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान ने किसान को समझाया कि मेरे श्राप के कारण लक्ष्मीजी तुम्हारे यहाँ १२ वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मीजी चंचल हैं, इन्हें बड़े-बड़े नहीं रोक सके, तुम हठ मत करो। फिर लक्ष्मीजी बोलीं- हे किसान यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है। तुम अपना घर स्वच्छ रखना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना। मैं तुम्हारे घर आउंगी। तुम उस समय जब मेरी पूजा करोगे तो मैं अदृश्य रहूँ गी। किसान ने लक्ष्मीजी की बात मान ली और लक्ष्मीजी द्वारा बताई विधि से पूजा की। उसका घर धन-धान्य से भर गया। इस प्रकार किसान प्रति वर्ष लक्ष्मीजी को पूजने लगा तथा अन्य लोग भी लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे।

दिवाली की दूसरी पौराणिक कथा

एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा ‘मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ’। लड़की ने कहा की ‘मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगी’। यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी। दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया।

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दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगीं। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई। अपने घर में लक्ष्मी जी ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया। उसकी खूब खातिर की। उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे। मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई। उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी।

साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर। चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील द्वारा किसी रानी का नौलखा हार उसके पास आ गया। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार बहुत अमीर बन गया।

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