चातुर्मास 2024: इन चार माह में भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम, शास्त्रों में बताए नियम, अमल करने से जीवन में आती हैं खुशियां

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। चातुर्मास का महीना धर्माचार्यों, साधु-संतों, योगीजनों के लिए बहुत खास होता है। इस दौरान वे एक ही स्थान पर रहकर जप, तप और साधना करते हैं। साथ ही भक्तों को धर्माेपदेश भी देते हैं। पूजा-पाठ करने और धार्मिक यात्रा के लिए भी भी चातुर्मास का समय बहुत शुभ होता है।

चातुर्मास में 44 सर्वार्थ सिद्धि योग, 5 पुष्य नक्षत्र और 9 अमृत सिद्धि का शुभ संयोग
चातुर्मास चार महीने का होता है, इसलिए इसे चातुर्मास कहा जाता है। लेकिन इस साल 2023 में सावन दो माह होने के कारण चातुर्मास चार महीने का न होकर पांच महीने का होगा। गुरुवार 29 जून से गुरुवार 23 नवंबर तक चातुर्मास रहेगा. इस बार चातुर्मास की शुरुआत गुरुवार के दिन से होगी और इसका समापन भी गुरुवार को ही होगा। ज्योतिष के अनुसार चातुर्मास के दौरान 44 सर्वार्थ सिद्धि योग, 5 पुष्य नक्षत्र और 9 अमृत सिद्धि योग जैसे शुभ योग भी बनेंगे।

व्रत, साधना और सेवा के लिए खास है चातुर्मास
व्रत, साधना और सेवा के लिए चातुर्मास का महीना बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन कुछ लोग भागदौड़ भरे जीवन में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि इन कार्यों के लिए भी उनके पास समय नहीं होता। यकीन मानिए जीवन में कोई भी मनुष्य इतना व्यस्त नहीं है कि वह कुछ पल चैन से सांस भी न ले पाए।

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यदि सच में इतना समय नहीं है तो, खुद सोचिए कि ये कैसा जीवन है? जिसमें मंदिर नहीं जा सकते, यदि चले भी गए तो मन कहीं और है, देवी-देवता के समक्ष हाथ पूरे जोड़े या आधे-अधूरे यह भी पता नहीं। आखिर इतनी व्यस्तता, इतनी भागदौड़ का अर्थ क्या है?

यह सत्य है कि, परिवार के भरण-पोषण और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन अर्जित करना जरूरी है। लेकिन स्वयं के लिए भी समय निकालिए, जिसमें पुण्य कमाया जा सके। क्योंकि व्यक्ति के पुण्य कर्म ही जीवनभर और मृत्यु के बाद भी उसके काम आते हैं। चातुर्मास ऐसा समय या अवसर है, जिसमें आप व्रत, साधना और सेवा जैसे कार्य करके पुण्य कमा कर सकते हैं और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

चातुर्मास श्रीहरि विष्णु का यह एक प्रसंग से जुड़ा शयन भाव है, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की ‘देवशयनी एकादशी’ से शुरू हुआ है। जिस तरह मंदिरों में प्रतिदिन रात के समय देवों के सोने का समय मानकर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं और सुबह भगवान का जागृत भाव मानकर मंदिर के पट खोलकर पूजा पाठ और आरती की जाती है। ठीक वैसे ही चातुर्मास का महीना विष्णु जी का ‘शयन भाव’ है। चातुर्मास में पूरे चार महीने तक मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है। लेकिन ब्रज की यात्रा की जा सकती है. मान्यता है कि चातुर्मास में पृथ्वी के सभी तीर्थ ब्रज में आकर ही निवास करते हैं।

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चातुर्मास में वर्जित होते हैं ये काम
चातुर्मास में कुछ काम भी वर्जित माने गए हैं, जैसे पलंग पर सोना, नशीले पदार्थों का सेवन, किसी अन्य का दिया भोजन करना, झूठ बोलना, दही खाना, मांस खाना, मूली, बेंगन और साग-पात आदि का सेवन भी वर्जित होते हैं।

चातुर्मास में देह की शुद्धता व सुन्दरता के लिए परिमित प्रमाण के पंचगव्य का, वंशवृद्धि, संतान के लिए नियमित दूध का, कुरुक्षेत्रादि के समान फल मिलने के लिए बर्तन में भोजन करने के बजाय ‘पत्ते’ का और पापों के क्षय तथा पुण्यफल की प्राप्ति के लिए एकमुक्त, नक्तव्रत, आयाचित भोजन या पूरी तरह उपवास करने का व्रत ग्रहण वांछित फलदायक होगा।

चातुर्मास आचार्यों, साधु-संतों के लिए साधना और स्वाध्याय का माह है। चातुर्मास में धर्म, व्रत और पुण्य कामों को करने, प्रभु का स्मरण करने, हरिकथा सुनने की दृष्टि से भी विशेष माना गया है। इसलिए चाहे कितनी ही व्यस्तता या समय का अभाव क्यों न हो, चातुर्मास में प्रतिदिन कम से कम दो घंटे यानी 120 दिनों में कुल 220 घंटों का समय निकालना जीवन के लिए सुख, शांति, अभिष्ट कामना की पूर्ति के महत्वपूर्ण होता है। साथ ही इससे मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

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