हार्मोन असंतुलन के कारण

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समाचार सच. स्वास्थ्य डेस्क। हार्मोनल इंबैलेंस से जुड़े ऐसे कई रोग होते हैं जो आसानी से पहचान में नहीं आ पाते हैं। लकिन कुछ बारीक से लक्ष्ज्ञणों पर गौर करें तो इसे पहचाना जा सकता है। ऐसा ही एक रोग है कंजेनिजल एड्रिनल हाइपरप्लाजिया (सीएएच)। इसके सामान्य लक्षणों में शरीर की लंबाई कम बढ़ना, बॉडी से दुर्गंध आना, माहवारी में अनियमितता होना और जरूरत से ज्यादा बाल बढ़ना शामिल हैं। इसकी अनदेखी करने पर महिलाओं में अंडों के उत्सर्जन में कमी और पुरूषों के स्पर्म काउंट कम हो सकता है।
हार्मोनल इंबैलेस से बनती ये स्थिति
कंजेनिटल एड्रिनल हाइपरप्लाजिया (सीएएस यह एक तरह की अनुवांशिक स्थिति है, जो स्त्री और पुरूष, दोनों को प्रभावित कर सकती है। इसका कारण हार्मोनल इंबैलेंस है। ऐसी स्थिति में शरीर में एंड्रोजन हार्मोंन का निर्माण जरूरत से अधिक होने लगता है। इससे महिलाओं को प्रजनन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एड्रिनल ग्लैंड (गुर्दे से जुड़ी ग्रंथि) हार्मोन बनाने वाली अहम गं्रथि है। एड्रिनल ग्लैंड दोनों किडनियों के ऊपर होते हैं। ये एक मेदुला से बने होते हैं जो एड्रेनाइल बनाता है। सीएएच से प्रभावित होने पर भी यह हिस्सा सामान्य तरीके से काम करता रहता है। एड्रिनल ग्लैंड का बाहरी हिस्सा यानि एड्रिनल कॉर्टेक्स तीन प्रमुख हार्मोंस नाता है, जिन्हें स्टेरॉयड्स कहते हैं। ये स्टेरॉयड्स खून में ही घुले – मिले रहते हैं और नॉर्मल हेल्थ के लिए जरूरी होते हैं। सीएएच की स्थिति एड्रिनल कॉर्टेक्स और उससे बनने वाले हार्मोंस के कारण होती है। इन हार्मोंस का यह काम होता है।
कॉर्टिसोल
यह शरीर के लिए स्ट्रैस बैलेंसर का काम करता है। यह शारीरिक या भावनात्मक तनावको नियंत्रित करने में मदद करता है। इतना ही नहीं, यह ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करता है। अगर शुगर लेवल बहुत कम हे, जो यह उसे बढ़ाने में भी मदद करता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि यह शरीर के लिए बेहद अहम भूमिका निभाता है।
एल्ड्रोस्टेरॉन
यह बॉडी में नमक के स्तर को नियंत्रित करता है। अकर आहार में नमक की मात्रा कम है या अत्याधिक पसीना बहने से नमक की मात्रा बहुत कम रह गई है, तो यह किडनीज को नमक की मात्रा को कंजर्व करने का संकेत देता है। इसी तरह अगर नमक की मात्रा ज्यादा हो गई है, तो यह यूरिन के जरिए उसे बाहर निकलाने में मदद करता है।
एंड्रोजीन्स
यह मेल हार्मोंन का समूह है, जिनमें से एक है टेस्टोस्टेरॉन। एड्रिनल कॉर्टेक्स महिलाओं और पुरूषों, दोनों में यह हार्मोंस का निर्माण करता है, जो प्यूबिक हेयर का निर्माण करते हैं। अंडाशय भी टेस्टिस के जरिए कम मात्रा में टेस्टोस्टेरॉन का निर्माण करता है। इसके अलावा कॉर्टिसोल और एल्डोस्टेरॉन एंड्रोजन के प्रोडक्शन को भी रेगुलेट करते हैं।
रोग के प्रकार
क्लासिक कंजेनिटल एड्रिनल हाइपरप्लाजिया
लक्षण: लड़कियों में अस्पष्ट जननांक, असानी से वजन नहीं बढ़न, वजन कम होना, शरीर में पानी की कमी होनी, उल्टी आना, समय से पहले यौवन अवस्था का आना, बचपन में बहुत तेजी से ग्रोथ होना, मगर एवरेज हाइट कम रहना, महिलाओं में माहवारी के चक्र का अनियमित होना, पुरूषों और महिलाओं में बांझपन।
नॉन-क्लासिक कंजेनिटल एड्रिनल
हाइपरप्लाजिया
लक्षण: अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स का न होना, महिलाओं में पुरूषों जैसे लक्षण नजर आना, जैसे चेहरे और शरीर पर ज्यादा बाल और गहरी आवाज, बांझपन, बहुत ज्यादा मुंहासे होना, हड्डियों की डेंसिटी कम होना मोटापा आदि।
क्या है निदान
फिजिकल जांच: इसमें डॉक्टर मरीज के शारीरिक लक्षणों को देखकर यह तय करते हैं कि उसे सीएएच है या नहीं। पुष्टि करने के लिए ब्लड या यूरिन टेस्ट करवाया जाता है।
ब्लड और यूरिन टेस्ट
इससे सीएएच के साथ ही एड्रिनल ग्लैंड के द्वारा बनाए जा रहे हार्मोंस का स्तर का पता लगाने में भी मदद मिलती है।
क्या है इलाज
सएचए के ज्यादातर मामलों में सर्जिकल ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है और केवल दवाइयों के जरिए हार्मोंस का संतुलन दोबारा कायम किया जा सकता है। इसके अलावा गर्भवती बनने की इच्छुक महिलाओं में एल्डोस्टेरॉन का स्तर कम करने के लिए ओरल मेडिकेशन की जरूरत पड़ती है। इससे टेस्टोस्टेरॅन का स्तर कम करके फर्टिलिटी को सामान्य करने में मदद मिलती है।
इसलिए बनती है यह स्थिति
एड्रिनल हाइपर प्लासिया महिलाओं में हार्मोंस का असंतुलन पैदा करता है, जिसकी वजह से शरीर में मेल हार्मोंस बढ़ने लगते हैं एड्रिनल हाइपर प्लासिया से ग्रसित महिलाओं में कुछ ऐसे एंजाइम्स की कमी हो सकती है, जो एड्रिनल ग्लैंड में जरूरी हार्मोंस को बनाने के काम आते हैं। कॉर्टिसोल और एल्डेस्टेरॉन शरीर में हार्ट बीट, ब्लड प्रेशर, नमक के स्तर और कई अन्य चीजों को रेगुलेट करने के अलावा एंड्रोजीन्स के प्रोडक्शन को भी रेगुलेट करते हैं। इसलिए जब किसी महिला के शरीर में कॉर्टिसोल और एल्डेस्टेरॉन की कमी होती है, उसकी वजह से मेल हार्मोंस की मात्रा सामान्य से ज्यादा होने लगती है। नतीजतन, अंडों के उत्सर्जन, माहवारी और गर्भधारण में दिक्कतें आने लगती हैं।

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