First of all, Shri Ram devotee Hanuman ji wrote Ramayana with his own hands and threw it in the sea, what was the reason?


समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। जब भी बात रामायण ग्रंथ की आती है तो महर्षि वाल्मीकि का नाम स्वतः ही जुबान पर आ जाता है। हिन्दू धर्म मान्यताओं के अनुसार, रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी लेकिन शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सर्व प्रथम रामायण श्री राम भक्त हनुमान ने लिखी थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी ने सबसे पहले रामायण की संरचना की थी पर बाद में अपने ही हाथों से लिखित रामायण को उन्होंने समुद्र में फेंक दिया था। हमने जब अपने एक्सपर्ट ज्योतिषाचार्य डॉ राधाकांत वत्स से इस बारे में जानकारी ली तो उन्होंने हमें कई चौंका देने वाले तथ्य बताए जो आज हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं।
हनुमान जी ने नाखून से लिखी रामायण
ऐसा माना जाता है कि जब लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या में अपना राजपाट संभाल रहे थे तब हनुमान जी ने उनसे तपस्या की आज्ञा मांगी और वह कैलाश की ओर पधार गए। कैलाश में हनुमान जी ने न सिर्फ घोर तप किया बल्कि राम भक्ति में इतने डूब गए कि उन्होंने रोज नियमित रूप से एक शिला पर श्री राम का स्मरण करते हुए नाखून से राम कथा लिख डाली।
महर्षि वाल्मीकि पहुंचे शिव धाम
दूसरी ओर महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण संपूर्ण कर ली थी। जिसे सौंपने के लिए वह कैलाश धाम भगवान शिव शंकर के पास पहुंचे। जब महर्षि वाल्मीकि ने कैलाश में प्रवेश किया तो उनकियो नजर हनुमान जी और उनकी लिखी रामायण पर पड़ी। हनुमान जी द्वारा लिखी रामायण को देखकर महर्षि आश्चर्यचकित हो उठे।
महर्षि वाल्मीकि ने की हनुमान जी की प्रशंसा
महर्षि वाल्मीकि मन ही मन सोचने लगे कि हनुमान जी एक योद्धा हैं और एक योद्धा प्रभु श्रीराम के जीवन का वर्णन इतने सुंदर रूप में कैसे कर सकता है। हनुमान जी एक एक एक छंद को पढ़ने के बाद वाल्मीकि जी ने उनकी बहुत प्रशंसा की और इस बात को स्वीकारा कि हनुमान जी द्वारा लिखी रामायण के सामने उनकी रामायण का कोई स्थान नहीं।
महर्षि वाल्मीकि लगे रोने
हनुमान जी यह सोचकर प्रसन्न होने लगे कि जब महर्षि को यह रामायण इतनी पसंद आई तो उनके प्रभु श्री राम जब इसे पढ़ेंगे उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं होगा। हनुमान इस विचार के साथ अपनी रामायण शिव शंभू को सौंपने ही वाले थे कि महर्षि वाल्मीकि के नेत्रों में खुशी के साथ साथ अश्रु देख वह रुक गए।
हनुमान जी ने फेंकी रामायण
हनुमान जी ने जैसे ही महर्षि वाल्मीकि को रोता देखा तो उनके मन में विचार आया कि वाल्मीकि जी एक महान कवि होने के साथ साथ रामभक्त भी हैं। जहां एक ओर मेरी रामायण क्लिष्ट संस्कृत यानी कि बहुत गूढ़ संस्कृत भाषा में लिखी है वहीं, वाल्मीकि जी की रामायण सरल संस्कृत में है। रामायण से समाज का कल्याण तभी संभव है जब वह लोगों को समझ आए और इसका अनुवाद सरलता से किया जा सके। इसी विचार और महर्षि वाल्मीकि के करुण भाव को देखते हुए हनुमान जी ने अपनी रामायण समुद्र में विसर्जित कर दी और इसी के साथ हनुमद रामायण हमेशा के लिए समुद्र में समा गई।


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