Four day Kisan Mela will start in Pantnagar from 25, all preparations complete
समाचार सच, पंतनगर (लक्ष्मी डिमरी)। विश्विद्यालय द्वारा चार दिवसीय अखिल भारतीय किसान मेला एवं कृषि उद्योग प्रदर्शनी का आयोजन 25 फरवरी से शुरू हो रहा है। जिसकी सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गयी। उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि मेले में 25 फर्मों द्वारा स्टॉल लगाने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। ये संस्थान मिलेट्स से सम्बन्धित विभिन्न रेसिपी, व्यंजन, मूल्यवर्धित उत्पाद प्रदर्शित करेंगें।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जारी प्रेस बयान में बताया है कि अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 के महत्व को समझते हुए किसान मेले में पृृथक रूप से मिलेट पैवेलियन द्वारा विभिन्न मिलेट्स जैसे मंडुवा, झंगोरा, कौणी, कोदो, चीना, उगल, रामदाना जिन्हें भारत सरकार ने हाल ही में ‘श्री अन्न’ नाम दिया है, की प्रदर्शनी लगायी जायेगी। एक तरफ जहां पूरा विश्व वर्तमान वर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मना रहा है, अपने देश में भी अलग-अलग कृषि आधारित संस्थानों द्वारा अनेकोनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।
जारी प्रेस बयान में यह भी बताया कि इसी कड़ी में, आगामी मेले में प्रथम बार इस पैवेलियन के माध्यम से सरकारी संस्थान एवं फर्म जैसे विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान-अल्मोड़ा, फेमिली फार्मस-मुरादाबाद, त्रैता एग्रो फूड-रूद्रपुर, हिमचुली एग्री प्रोड्यूसर कम्पनी-धारचूला पिथौरागढ़, हिमालयन फ्लोरा-देहरादून, विभिन्न सहकारिता समूह व स्वयं सहायता समूहों (प्रगतिशील स्वयं सहायता समूह, अम्बे स्वयं सहायता समूह, शिखा स्वयं सहायता समूह) सहित लगभग 25 फर्मों द्वारा स्टॉल लगाने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। ये संस्थान मिलेट्स से सम्बन्धित विभिन्न रेसिपी, व्यंजन, मूल्यवर्धित उत्पाद प्रदर्शित करेंगें। इसके अतिरिक्त पैवेलियन में विक्रेता-क्रेता विचार-विमर्श, विपणन तकनीकी, इन फसलों की खेती से किसानों की आय संवर्धन जैसे ज्वलन्त मुद्दों पर भी मंथन किया जायेगा।
आपकों बता दें कि भारत सरकार के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया गया है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में इन फसलों का आज भी प्रमुख स्थान है। इसमें भी मंडुवा तथा मादिरा की फसलें एक बड़े क्षेत्रफल में उगाई जाती है। खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा एवं विभिन्न त्यौहारों एवं संस्कृति से जुड़े होने के कारण ये फसलें अमूल्य धरोहर के समान है, जिनको आने वाली पीढ़ियों के लिये संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। ये फसलें कठिन पारिस्थितिकी में आसानी से उगने वाली और पोषक तत्वों के भण्डार के रूप में जानी जाती है। पोषण की दृष्टि से वर्तमान में इन फसलों की बढ़ती माँग किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त कर सकती है।
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