
रुद्रपुर में रोड डिवाइडर के पौधों के भाग्य में शायद बिना पानी के मर जाना ही लिखा है.य़ह केवल रुद्रपुर की बात नहीं है पूरे देश में अधिकांश जगहों पर पेड़ पौधों के साथ ऐसा ही व्यवहार होता है. अभी 23 अप्रैल को मैं हल्द्वानी से रुद्रपुर गया था वहां रोड डिवाइडर पर सूख रहे पौधों को देखकर मन को बड़ी पीड़ा हुई. पिछले वर्ष ळ- 20 सम्मेलन के पहले तत्कालीन जिलाधिकारी श्री युगल किशोर पन्त और जिला प्रशासन के प्रयासों से डिवाइडर पर बहुत सुन्दर फ़ूलों के पौधे लगवाए गये थे जिनसे शहर बहुत सुन्दर लगने लगा था. मैं भी तब यहां जिला आयुर्वेद अधिकारी के रूप में कार्यरत था, एक मुलाकात के दौरान मैंने जिलाधिकारी पन्त जी से तब कहा भी था कि आपने शहर के सौन्दर्यीकरण के लिए इतने पौधे लगवाए हैं पर शायद य़ह ज्यादा समय तक बच नहीं पाएंगे. ये मैंने किसी नकारात्मक सोच के कारण नहीं बल्कि अपने पिछले अनुभव के आधार पर कहा था. News from the lotus of readers of truth
अप्रैल 2011 में मैं किसी काम से रुद्रपुर गया था तब मैं हल्द्वानी ब्लॉक के फतेहपुर में चिकित्साधिकारी था. रुद्रपुर में पौधों की दुर्दशा देखकर मैंने तत्कालीन जिलाधिकारी से इन्हें बचाने की गुहार लगायी पर कोई कार्यवाही नहीं होने पर 5 दिन बाद मैं रुद्रपुर में क्ड कार्यालय के बाहर अनशन पर बैठ गया था. तब जाकर पौधों की सिंचाई की व्यावस्था हो पायी थी. उस समय आरटीआई से मालूम पड़ा था कि पीडब्ल्यूडी द्वारा सिंचाई पर प्रतिमाह लगभग 42 हजार रुपये खर्च दिखाए गए थे जबकि वास्तविकता में पौधों को बूंद भर भी पानी नहीं मिल रहा था. अनशन के बाद टैंकरों से पानी डाला जाने लगा था.
वर्ष 2017 में मैं ट्रांसफ़र होकर रुद्रपुर आया तो फिर से पौधों का हाल बुरा देखा. इस बार मैंने तय किया कि अब मैं रुद्रपुर में ही हूँ तो अपने पैसे से खुद टैंकर से पानी डालूंगा. हालांकि यह प्रैक्टिकल नहीं था कोई व्यक्तिगत रूप से बहुत लम्बे समय तक ऐसा नहीं कर सकता है पर जब कुछ नहीं हो पा रहा था तो मरते हुए पौधों को बचाने के लिए मैंने य़ह कदम उठाया. 2 टैंकर पानी डलवाया भी तभी नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त श्री जय भारत सिंह को किसी ने मेरे बारे में बताया तो उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि सिंचाई अब निगम द्वारा करायी जायेगी. उन्होंने अपना वादा निभाया भी.
बाद में य़ह नैशनल हाईवे चौड़ा करके फिर से बनाया गया तब डिवाइडर भी तोड़ कर दोबारा बनाए गए. जी- 20 सम्मेलन के समय इन डिवाइडरों पर पौधे लगाकर सौंदर्यीकरण किया गया जो अब फिर बदहाल हैं.
मेरी जानकारी के अनुसार सड़कों और डिवाइडर, उनके पौधों के रखरखाव की जिम्मेदारी इन्हें बनाने वाली एजेंसी की होती है. इन पौधों की सिंचाई के बारे में मैंने वर्तमान नगर निगम आयुक्त श्री नरेश दुर्गापाल से अनुरोध किया .सरल और सम्वेदनशील दुर्गापाल जी ने फौरी तौर पर टैंकरों से सिंचाई की व्यवस्था करा दी है. निगम की सीमा में तो सिंचाई शायद हो जाएगी पर जिले के दूसरे मार्गों पर पौधों को पानी कौन देगा य़ह यक्षप्रश्न है.
हम सभी को पेड़ पौधों की क़ीमत समझनी चाहिए. पेड़ हैं तभी हमारी सांसे चल रही हैं. आश्चर्य है कि इन रास्तों से रोज लाखों लोग गुजरते हैं. इनमें सामान्य जनता, अधिकारी, कर्मचारी,व्यापारी, नेता, अभिनेता सभी ने गुजरते हुए इन सूखते हुए पौधों को देखा होगा पर किसी ने भी इनके बारे में ना सोचा ना आवाज उठाई. इनमें से 90 प्रतिशत लोगों ने 22 अप्रैल को ॅींजे।चच पर पृथ्वी दिवस पर संदेश भेजे होंगे पर सामने दिख रहे सूखते पौधों के लिए कुछ करना जरूरी नहीं समझा. रुद्रपुर शहर में ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई एनजीओ चल रहे हैं पर किसीकी नजरे इनायत इन पौधों पर नहीं हो सकी.
इन पौधों को खरीदने-लगाने में जनता के लाखों रुपए बर्बाद हुए य़ह एक पहलू है, दूसरा बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष य़ह है कि पौधे कोई वस्तु नहीं हैं, इनमें भी जीवन होता है. रखरखाव के लिए जिम्मेदार संस्थाओं की आपराधिक लापरवाही के कारण कई हजार पौधे बेमौत मर चुके हैं और कई हजार मरने की कगार पर हैं.
मेरा सभी से अनुरोध है कि पेड़ पौधों को अपना दोस्त समझें अगर इन्हें कष्ट में देखें तो इनके लिए कुछ ना कुछ जरूर करें.
-डॉ आशुतोष पन्त
पूर्व जिला आयुर्वेद अधिकारी/पर्यावरण कार्यकर्ता, हल्द्वानी.

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