कैसा हो शीत ऋतु में आहार विहार

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समाचार सच. स्वास्थ्य डेस्क। शरीर के लिए सदैव पौष्टिक आहर की आवश्यकता रहती है, किन्तु ग्रीष्म ऋतु में पाचन शक्ति क्षीण होने के कारण पौष्टिक आहार पचाने में परेशानी होती है। अतः पर्याप्त शक्ति संचय नहीं हो पाता जबकि शीत ऋतु में जठराग्नि (पाचन शक्ति) तीव्र होने के कारण पर्याप्त भूख लगती है और पर्याप्त पौष्टिक आहार का सेवन किया जा सकता है जिससे दौर्बल्य नष्ट होकर शरीर संगठित होता है। भार बढ़ता है इस ऋतु में व्यायाम भी अधिक किया जा सकता है।

इस ऋतु में गर्म शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले रसायन, बाजीकरण, पौष्टिक पदार्थों, कन्द, मूल, फल, मेवा औषधि कुछ भी हो, सेवनीय है। आयुर्वेदाचार्य इस मौसम में पूरे चार माह तक रसायन या बाजीकरण पदार्थों के सेवन का परामर्श देते है। इससे पूरे वर्ष तक शक्ति बनी रहती है।
यदि पूरी शीत ऋतु में सेवन करना सम्भव न हो तो कम से कम 40 दिन तो अवश्य सेवन करे। यहां हम शीत ऋतु में उपयोगी, आसानी से प्राप्त होने वाले कन्द मूल, फल, मेवे व अनाज का संक्षिप्त वर्ण करेंगे।

मेथी भाजी:-यह सर्दियों की भाजी है। यह गर्म व वातनाशक है। पेट साफ करती है। क्षुधाहीनता, अजीर्ण, प्लीहा, यकृत, मूत्र व मासिक धर्म की रूकावट को दूर करती है। अन्य सागों में चुटकी भर मैथी डालने से साग स्वादिष्ट व पाचक बन जाता है।

मेथी दाना (बीज):-यह वात रोगों को दूर करता है। मासिक धर्म को खोलता है। यह कड़वे होते है फिर भी शीत ऋतु में अन्य मेवों को इसके साथ मिलकर लड्डू बनाये जाते है। यह दर्द, मधुमेह व कोलेस्ट्राल को दूर करते है। मैथीदाना, हल्दी व सौंठ को समभाग मिलाकर चूर्ण बनाकर सेवन करने से दर्द, मधुमेह व कोलेस्ट्राल में लाभ होता है।

तिल:- अच्छु पुष्ट काले तिल सफेद तिल की अपेक्षा अधिक लाभप्रद रहते है। यह गर्म होते है अतः सर्दियों में इसके खाने का विशेष महत्व है। हवन व अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग होताहै। मकर संक्रान्ति पर तिल गुड़ के लड्डू बनाये जाते है। काले तिल, भांगरा व आवलें का समभाग चूर्ण सेवन करने से बाल झड़ना बन्द हो जाता है। केश काले होते है। नेत्र ज्योति बढ़ती है। तिल सेवन से मांसपेशियां दृढ़ होती है। गुड़ के साथ सेवन करने से )तु स्राव खुलकर होती है। तिल गले की खराश, बहुमूत्र, शय्यामूत्र में लाभदायक है। मानसिक दौर्बल्य दूर करते हैं। इसके तेल की मालिश लाभदायक है।

अमरूद
यह सौम्य (न अधिक ठण्डा, न अधिक गर्म) है। इसे नमक व काली मिर्च लगाकर खाना चाहिए। इसके बीज पचते नहीं है अतः बीजों को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए। यह स्फूर्तिदायक, शक्तिदायक, शारीरिक उष्णता कम करने वाला पौष्टिक फल है। इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लो, विटामिन ‘सी’ व ‘बी’ पाया जाता है। खांसी जुकाम में इसे भूनकर सेवन करें।

आंवला:- यह अमृत फल है। यह शारीरिक व मानसिक क्षीणता दूर करता है। त्रिफला, च्यवनप्राश व अनेक औषधियां आंवले से निर्मित होती है। दिल की धड़कन, दिल की बैचेनी, जिगर, मैदा, तिल्ली, शुक्र दौर्बल्य, दिल, दिमाग व नेत्र क्षीणता इसके प्रयोग से दूर होती है। गर्भवती यदि नित्य आंवले के मुरब्बे का सेवन करे तो स्वयं ताकतवर होकर हुष्ट-पुष्ट संतान की माता बनती है। भोजनोत्तर 1 चम्मच आंवला चूर्ण फांकने से आमाशय को ताकत मिलती है व कब्ज दूर होता है। यह फल सस्ता व सर्वसुलभ व अतिगुणकारी है।

गाजर:- यह शीतल होती है। सर्दियों में इसका हलुवा खाया जाता है। यह पौष्टिक, कब्जनाशक, खून की खराबी, जलोधर, पथरी व हृदय की कमजोरी में लाभदायक है। वीर्य को गाढ़ा करती है।

बादाम:- बादाम गर्मियों में ठंडाई में तथा सर्दियों में हुलवे में प्रयोग होता है। 5 बादाम रात में भिगो दे। प्रातः पीसकर दूध में उबालकर पीने से नेत्र ज्योति निश्चित रूप से बढ़ती है। 15-20 दिन में लाभ नजर आने लगता है। नेत्र सूजन दूर होती है। साथ ही शारीरिक, मानसिक शक्ति व वजन बढ़ता है। कड़वा बादाम न खाये यह हानिकारक होता है। खांसी, मधुमेह, पथरी में भी लाभकारी है।

छुआरा:- दूध में छुआरा उबालकर पीने से सर्दी से बचाव रहता है। यह हृदय व आमाशय को बल देता है। गर्म व पौष्टिक होता है।
मक्का:- यह फूले हुए शरीर को छांटकर बल बढ़ाती है। रक्त मांसात्पादक है। यह खुश्क (रूक्ष) होती है अतः इसकी रोटी घी लगाकर सेवन करें। ताजा भुट्टा रक्तवर्धक है।

बाजरा:-यह गर्म है। सर्दियों में इसकी रोटी गुड़ के साथ खाने से स्वादिष्ट लगती है व शीघ्र पच जाती है यह गर्म होता है। गर्भवती इसका अधिक प्रयोग न करें।

सर्दियों में अनेक प्रकार के रसायन व बाजीकरण प्रयोग किये जाते है किन्तु यह मेरे लेख का विषय नहीं है। इस ऋतु में बाजीकरणों के सेवन कर अन्य ऋतुओं की अपेक्षा वैवाहिक जीवन का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है।

विहार (दिनचर्याद्):- इस ऋतु में गर्म कपड़े पहिनना चाहिए। गर्म पदार्थ जैसे अदरक, लहसुन, तिल, गुड़, आदि का सेवन करना चाहिए। सरसों या तिल तेल से मालिश करें। उष्ज्ञःपान करने वाले गुनगुने जल का सेवन करें। चाय तुलसी, दालचीनी व अदरक डालकर बनायें। प्रातः भ्रमण करने वाले पर्याप्त गर्म कपड़े पहन कर घर से बाहर निकलें। शारीरिक क्षमतानुसार व्यायाम, प्राणायाम व योगासन करें।

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