समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। नवरात्रि का शुभारंभ माता शैलपुत्री की पूजा से होता है। देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री हैं, जिनकी उपासना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। हिंदू धर्म में शैलपुत्री को शक्ति और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।


शैलपुत्री का महत्व
माता शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था, इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है और इनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में कमल सुशोभित है। ऐसा माना जाता है कि इनकी पूजा करने से भक्त को मानसिक शांति, आत्मबल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
पूजा विधि
स्नान और संकल्प – प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
कलश स्थापना – पूजा स्थल पर गंगाजल से शुद्धि कर कलश स्थापना करें।
माता का ध्यान – शैलपुत्री देवी का ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप करें
“वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्”
पूजा सामग्री अर्पित करें
माता को सफेद फूल, चंदन, रोली, अक्षत, दूध, दही, घी, शहद, और प्रसाद स्वरूप मिश्री या मिठाई अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं
शास्त्रों के अनुसार, माता शैलपुत्री को घी का दीपक अर्पित करने से आरोग्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
आरती करें – माता की आरती गाकर भक्ति भाव से पूजा संपन्न करें।
शैलपुत्री पूजा का फल
ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त नवरात्रि के प्रथम दिन सच्चे मन से माता शैलपुत्री की पूजा करता है, उसे शक्ति, धैर्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह दिन साधकों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे ध्यान और साधना की ऊर्जा जागृत होती है।




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