समाचार सच, नई दिल्ली (एजेन्सी)। भारतीय वायुसेना ने बुधवार को इस बात की पुष्टि की कुन्नूर के पास हुए हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 11 अन्य लोगों की मौत हो गई है। वायुसेना ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा, ‘‘बहुत ही अफोसस के साथ अब इसकी पुष्टि हुई है कि दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, श्रीमती मधुलिका रावत और 11 अन्य की मृत्यु हो गई है।’’


आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि एमआई-17वी5 हेलीकॉप्टर सुलूर से वेलिंगटन के लिए रवाना हुआ और चालक दल सहित हेलीकॉप्टर में 14 लोग सवार थे। सीडीएस वेलिंगटन में डिफेंस स्टाफ कॉलेज जा रहे थे। वायुसेना ने कहा कि दुर्घटना की ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ के आदेश दे दिए गए हैं। उत्तराखण्ड राज्य के रहने वाले 63 वर्षीय जनरल बिपिन रावत को 2019 में भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में नियुक्त किया गया था।
सीडीएस करता है चीफ मिलिट्री एडवाइजर के रूप में काम:
साल 2019 में केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्रालय में 5वें विभाग के रूप में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और सैन्य मामलों के विभाग के निर्माण को मंजूरी दी थी, जिसके बाद जनरल बिपिन रावत देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया था। सेना के लिहाज ये यह बेहद ताकतवर पद माना जाता है। ऐसे में उनके हेलीकॉप्टर के दुर्घटना का शिकार होना कई थ्योरियों को जन्म दे रहा है। चलिए समझते हैं कि आखिर इस पद के पास क्या जिम्मेदारियां होती हैं। सीडीएस एक चार-स्टार जनरल/अधिकारी होता है जो तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना) के मामलों में रक्षा मंत्री के चीफ मिलिट्री एडवाइजर के रूप में काम करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पद को मूलत तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल के लिए बनाया था। इस पद के लिए पीएम की पहली पसंद शुरू से ही बिपिन सिंह रावत थे। जोकि 31 दिसंबर 2019 में रिटायर हुए थे और 31 जनवरी 2020 को उन्होंने ब्क्ै का पदभार ग्रहण किया था। सीडीएस का पदभार ग्रहण करने के बाद किसी अन्य सरकारी पद पर नहीं रह सकते हैं।
इसलिये पड़ी पद की जरूरत:
आपकों बता दें कि 1999 के युद्ध के बाद इसकी समीक्षा के दौरान पाया गया था कि तीनों सेनाओं के बीच को-ऑर्डिनेशन की कमी थी। ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यदि तालमेल बेहतर होता तो नुकसान को कम किया जा सकता था। इस पद की वकालत उस वक्त हुई थी लेकिन सियासी मतभेद के चलते यह पूरी नहीं हो पाई थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इसकी जरूरत को फिर से समझा गया और पद तैयार किया गया।
(साभार: जनसत्ता)




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