समाचार सच, हल्द्वानी। उत्तराखण्ड को देवभूमि के नाम से नवाजा गया है। सुदूर केदारनाथ में स्थित ज्योर्तिलिंग हो या बदरीनाथ में भगवान बद्री (विष्णु) की मन्दिर रहा हो, वहीं जागेश्वरधाम से लेकर गंगोत्री-यमनोत्री, हाटकालिका, बाराही मंन्दिर, कोटगाड़ी मन्दिर नृ सिंह मंदिर प्रसिद्ध है। वहीं सिक्खों का पवित्र स्थल रीठासाहिब, नानकमत्ता, हेमकुण्ड साहिब भी स्थित है। इसी के साथ हल्द्वानी में स्थित कालाढूंगी चौराहा में श्री कालू सिद्ध धाम भी प्रसिद्ध है।



देवभूमि के धामों की विशिष्ट परम्परा रही है। इनमें से हल्द्वानी स्थित बाबा श्रीकालू सिद्ध धाम का नाम भी प्रमुख है। इस धाम की विशेषता यह है कि लोग सभी धर्मों के अनुयायी यहां पर मनौतियां मांगते दिख जाते हैं। वर्तमान में जहां देश में राजनेता लोगों के बीच खाइयां बना रहे है, वहीं इस प्रकार के धाम लोगों में सर्वधर्म समभाव का सन्देश दे रहे हैं।
सैकड़ो वर्षों से चौराहे पर पीपल की छाया प्रदान करता हुआ एक धाम ऐसा ही है जो आज सवधर्म का प्रतीक बन चुका है। कालाढूंगी रोड चौराहे पर सैंकड़ों वर्षों से आस्था का प्रतीक बना बाबा कालू सिद्ध मन्दिर या धाम आज सर्वधर्म समभाव का प्रतीक बन चुका है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाइ सभी यहा पर सिर नवाते, गुड़ की भेली प्रसाद रूप चढ़ाते नजर आ जायेंगे। कालाढूंगी रोड चौराहे पर स्थित बाबा कालू सिद्ध मन्दिर को कितने वर्ष हो चुके हैं। यह बताने वाला शायद ही हल्द्वानी नगर में अब कोई हो। सभी यही कहते हैं कि वर्षों से हम यहा पर लोगों को शीष नवाते देखते आ रहे हैं। आज यह क्षेत्रा की जनता की दृढ़ आस्था व विश्वास का प्रतीक बन चुका है।
वर्तमान में बाबा कालू सिद्ध धाम या मन्दिर नाम से जाना जाने वाला यह आस्था व विश्वास स्थल को लोग कई नामों से पुकारते हैं इसे बाबा कालू सैयद मन्दिर, बाबा कालू साईं बाबा मन्दिर आदि नामों से आज भी जाना जाता है। इस मन्दिर के सम्बन्ध में अनेक किवदन्तियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का यह कहना है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व मुगल काल में यहां पर ईरान के पीर कालू सैयद बाबा ने अपना आसन जमाया था और वे वर्षों यहां पर विराजमान रहे। अतः तभी से इसे बाबा कालू सैयद के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर पंजाब से कालू सिद्ध बाबा भूरा सिद्ध बाबा व माजिक सिद्ध बाबा आए थे और उन्होंने वर्षों यहां अपनी धूनी जमाई थी। बाद में कालू सिद्ध बाबा ने यहीं पर समाधि ली थी। तभी से ये बाबा कालू सिद्ध धाम या मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

किवदन्तियाँ कुछ भी हो परन्तु आज सभी धर्मों के अनुनायियों के लिए आस्था व विश्वास का प्रतीक बन चुका है। लोगों का यह मानना है कि यहां पर मनौती मानने से वह अवश्य पूरी होती है। इस सम्बन्ध में कईयों ने अपना, अपने मित्रों व रिश्तेदारों का उदाहरण भी दिया जिनकी मनौतियां पूरी हुई है। एक भक्त ने बताया कि वर्षों पूर्व बुद्धगिरी महाराज के चमत्कार के बाद से इस धाम की प्रसिद्धि चारों ओर पफैली। बताया जाता है कि वर्षों पूर्व जब हल्द्वानी क्षेत्रा में तीन दिन से लगातार भीषण बरसात हो रही थी तब यही एक स्थान था जहां वर्षा की एक बूंद भी प्रवेश न पा सकी। नगर की जनता ने इस चमत्कार को देखा ओर मन्दिर में शीश नवाया।
मन्दिर में गुड़ की भेली प्रसाद स्वरूप चढ़ाने की परम्परा है। मनौती पूरी होने पर लोग यहां गुड़ की भेली ही चढ़ाते हैं। लोगों का मानना है कि अपने स्थापना के समय जब हल्द्वानी का इतना विकास नहीं हुआ था यहां अधिकांश कच्ची सड़कें, यातायात के साधन मात्रा बैलगाड़ियां थी। तब जब कभी बैलगाड़ी कच्चे मार्ग पर धंस जाती थी तब बाबा को याद कर गुड़ की भेली चढ़ाने की कामना कर लोग अपनी गाड़ियों को निकालते थे ज्ञात हो कि वर्षों पूर्व हल्द्वानी में गुड़ ही मिठाई के रूप में प्रचलित थी और भाबर का गुड़ पहाड़ों में विशेष खाद्य पदार्थ के रूप में जाना जाता था। बाद में गुड़ की भेली प्रसाद रूप में चढ़ाना मन्दिर की परम्परा ही बन गया। पहले यहां पर मात्रा पीपल का पेड़ था। उसके नीचे ही दीया बत्ती, धूप जलाकर लोगा प्रसाद चढ़ाया करते थे और शीश नवाया करते थे। धीरे-धीरे इसके चारों ओर चबूतरा बनाया गया। वर्तमान में मन्दिर एक सुव्यवस्थित सुन्दर स्वरूप ले चुका है। मन्दिर की सेवा करने में मौनी बाबा व सुमन गिरी बाबा का भी विशेष योगदान रहा है सुमन गिरी बाबा शुरू से ही इस धाम को सुन्दर, आकर्षण व व्यवस्थित करने में प्रयासरत रहे, जिसका कई लोगों ने विरोध ही नहीं किया बल्कि मन्दिर की बढ़ती प्रतिष्ठा से आकर्षित होकर इसको कब्जाने का भी प्रसास किया। वर्तमान में महन्त कालू गिरी दिगम्बर सिद्धबाबा इस मन्दिर की गद्दी संभाले हुए हैं। सुमन गिरी बाबा के समय में ही आठ साल की उम्र में महन्त कालू गिरी इनके सानिध्य में आ गए यहां पर शिक्षा आदि प्राप्त कर काशी से दीक्षा लेकर आज 38 वर्ष के होने पर मन्दिर की सेवा में रत होकर अपने पिता तुल्य गुरू सुमनगिरी के सपनों को साकार करने में लगे हुए हैं।

दिगम्बर महन्त कालूगिरी सिद्ध बाबा ने कालू सिद्ध मंदिर धर्मार्थ समिति के नाम से रजिस्टर्ड संस्था बनाकर इस मन्दिर के साथ ही अनेकों मन्दिरों का संचालन करने का बीड़ा उठा रखा है जिसमें श्री शीतला माता मन्दिर गुलाबघाटी, चौघानपाटा काठगोदाम, श्री सोमवारी आश्रम मण्डी बरेली रोड, श्री हुनमान गढ़ी गौलापार पुल के पास काठगोदाम श्री महाकाल मन्दिर शान्तिपुरी गेट न 1, श्री महाकाली मन्दिर किच्छा बाईपास, श्री हनुमानगढ़ी मन्दिर क्वारब जिला अल्मोड़ा श्री शिव शक्ति यमुना मन्दिर सैक्टर 14 यमुना पुस्ता नोएडा, श्री नदिया धाम मन्दिर, टाण्डा रेन्ज प्रमुख हैं।
महन्त कालू गिरी ने बताया कि वे देीन दुखियों के दुख दर्द कम करने हेतु उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं। वे गरीबों के लड़के-लड़कियों की शादी विवाह में मदद करते हैं। साथ ही जरूरतमंदों को कम्बल आदि भी वितरित करते हैं। राजनैतिक दल धर्मनिरपेक्षता की बात हमेशा करते रहते हैं। परन्तु उनके कार्यकलापों में धर्म निरपेक्षता कम वोटों का हित ज्यादा रहता है। साम्प्रदायिक सदभाव की बात कहने वाले भी मौका पड़ते ही अपने वोटों की खातिर साम्प्रदायिक बनने में चूक नहीं करते ऐसे माहौल में आस्था और विश्वास की दृढ़ नींव ही सद्भाव व भाईचारे का झण्डा उठाने में समर्थ दिखाई देती है। यही भावना मानव को वसुधैव कुटुम्बम के सिद्वान्त की ओर ले जाने की क्षमता रखती है।
सैकड़ो वर्षों से चौराहे पर पीपल की छाया प्रदान करता हुआ एक धाम ऐसा ही है जो आज सवधर्म का प्रतीक बन चुका है। कालाढूंगी रोड चौराहे पर सैंकड़ों वर्षों से आस्था का प्रतीक बना बाबा कालू सिद्ध मन्दिर या धाम आज सर्वधर्म समभाव का प्रतीक बन चुका है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाइ सभी यहा पर सिर नवाते, गुड़ की भेली प्रसाद रूप चढ़ाते नजर आ जायेंगे। कालाढूंगी रोड चौराहे पर स्थित बाबा कालू सिद्ध मन्दिर को कितने वर्ष हो चुके हैं। यह बताने वाला शायद ही हल्द्वानी नगर में अब कोई हो। सभी यही कहते हैं कि वर्षों से हम यहा पर लोगों को शीष नवाते देखते आ रहे हैं। आज यह क्षेत्रा की जनता की दृढ़ आस्था व विश्वास का प्रतीक बन चुका है।
वर्तमान में बाबा कालू सिद्ध धाम या मन्दिर नाम से जाना जाने वाला यह आस्था व विश्वास स्थल को लोग कई नामों से पुकारते हैं इसे बाबा कालू सैयद मन्दिर, बाबा कालू साईं बाबा मन्दिर आदि नामों से आज भी जाना जाता है। इस मन्दिर के सम्बन्ध में अनेक किवदन्तियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का यह कहना है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व मुगल काल में यहां पर ईरान के पीर कालू सैयद बाबा ने अपना आसन जमाया था और वे वर्षों यहां पर विराजमान रहे। अतः तभी से इसे बाबा कालू सैयद के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर पंजाब से कालू सिद्ध बाबा भूरा सिद्ध बाबा व माजिक सिद्ध बाबा आए थे और उन्होंने वर्षों यहां अपनी धूनी जमाई थी। बाद में कालू सिद्ध बाबा ने यहीं पर समाधि ली थी। तभी से ये बाबा कालू सिद्ध धाम या मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
एक भक्त ने बताया कि वर्षों पूर्व बुद्धगिरी महाराज के चमत्कार के बाद से इस धाम की प्रसिद्धि चारों ओर फैली। बताया जाता है कि वर्षों पूर्व जब हल्द्वानी क्षेत्रा में तीन दिन से लगातार भीषण बरसात हो रही थी तब यही एक स्थान था जहां वर्षा की एक बूंद भी प्रवेश न पा सकी। नगर की जनता ने इस चमत्कार को देखा ओर मन्दिर में शीश नवाया। मन्दिर में गुड़ की भेली प्रसाद स्वरूप चढ़ाने की परम्परा है। मनौती पूरी होने पर लोग यहां गुड़ की भेली ही चढ़ाते हैं। लोगों का मानना है कि अपने स्थापना के समय जब हल्द्वानी का इतना विकास नहीं हुआ था यहां अधिकांश कच्ची सड़कें, यातायात के साधन मात्रा बैलगाड़ियां थी। तब जब कभी बैलगाड़ी कच्चे मार्ग पर धंस जाती थी तब बाबा को याद कर गुड़ की भेली चढ़ाने की कामना कर लोग अपनी गाड़ियों को निकालते थे। ज्ञात हो कि वर्षों पूर्व हल्द्वानी में गुड़ ही मिठाई के रूप में प्रचलित थी और भाबर का गुड़ पहाड़ों में विशेष खाद्य पदार्थ के रूप में जाना जाता था। बाद में गुड़ की भेली प्रसाद रूप में चढ़ाना मन्दिर की परम्परा ही बन गया। पहले यहां पर मात्रा पीपल का पेड़ था। उसके नीचे ही दीया बत्ती, धूप जलाकर लोगा प्रसाद चढ़ाया करते थे और शीश नवाया करते थे। धीरे-धीरे इसके चारों ओर चबूतरा बनाया गया।
वर्तमान में मन्दिर एक सुव्यवस्थित सुन्दर स्वरूप ले चुका है। मन्दिर की सेवा करने में मौनी बाबा व सुमन गिरी बाबा का भी विशेष योगदान रहा है सुमन गिरी बाबा शुरू से ही इस धाम को सुन्दर, आकर्षण व व्यवस्थित करने में प्रयासरत रहे, जिसका कई लोगों ने विरोध ही नहीं किया बल्कि मन्दिर की बढ़ती प्रतिष्ठा से आकर्षित होकर इसको कब्जाने का भी प्रसास किया। वर्तमान में महन्त कालू गिरी दिगम्बर सिद्धबाबा इस मन्दिर की गद्दी संभाले हुए हैं। सुमन गिरी बाबा के समय में ही आठ साल की उम्र में महन्त कालू गिरी इनके सानिध्य में आ गए यहां पर शिक्षा आदि प्राप्त कर काशी से दीक्षा लेकर आज तक मन्दिर की सेवा में रत होकर अपने पिता तुल्य गुरू सुमनगिरी के सपनों को साकार करने में लगे हुए हैं।
दिगम्बर महन्त कालूगिरी सिद्ध बाबा ने कालू सिद्ध मंदिर धर्मार्थ समिति के नाम से रजिस्टर्ड संस्था बनाकर इस मन्दिर के साथ ही अनेकों मन्दिरों का संचालन करने का बीड़ा उठा रखा है जिसमें श्री शीतला माता मन्दिर गुलाबघाटी, चौघानपाटा काठगोदाम, श्री सोमवारी आश्रम मण्डी बरेली रोड, श्री हुनमान गढ़ी गौलापार पुल के पास काठगोदाम श्री महाकाल मन्दिर शान्तिपुरी गेट न 1, श्री महाकाली मन्दिर किच्छा बाईपास, श्री हनुमानगढ़ी मन्दिर क्वारब जिला अल्मोड़ा श्री शिव शक्ति यमुना मन्दिर सैक्टर 14 यमुना पुस्ता नोएडा, श्री नदिया धाम मन्दिर, टाण्डा रेन्ज प्रमुख हैं।
महन्त कालू गिरी ने बताया कि वे दीन दुखियों के दुख दर्द कम करने हेतु उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं। वे गरीबों के लड़के-लड़कियों की शादी विवाह में मदद करते हैं। साथ ही जरूरतमंदों को कम्बल आदि भी वितरित करते हैं।
श्री कालूसिद्ध मंदिर को समर्पित महन्त
श्री कालू सिद्ध मंदिर में यूं तो अनेक महन्तों ने अपनी सेवायें प्रदान की है, परन्तु हमें कुछ ही महन्तों की जानकारी प्राप्त हो सकी है, जो मंदिर की सेवा को समर्पित रहे। इनमें से कुछ इस प्रकार है –
नागा सन्यासी श्री बालकगिरी सन् 1965-70
नागा सन्यासी श्री बुद्ध गिरी सन् 1970-74
नागा सन्यासी श्रीकृड़ेश्ववरी सन् 1974-76
नागा सन्यासी श्री नाथ जी सन् 1976-78
नागा सन्यासी मौनी बाबा जी सन् 1978-85
नागा सन्यासी सुमनगिरी जी सन् 1983-85
नागा सन्यासी श्री मंगलगिरी जी सन् 1984-85
नागा सन्यासी श्री कालूगिरी जी सन् 1985 से वर्तमान तक




सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -
👉 हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें
👉 फेसबुक पर जुड़ने हेतु पेज़ लाइक करें
👉 यूट्यूब चैनल सबस्क्राइब करें
हमसे संपर्क करने/विज्ञापन देने हेतु संपर्क करें - +91 70170 85440