समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का बड़ा महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होता है. आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर खत्म हो जाता है। इन 15 दिनों के दौरान लोग पितरों को याद कर उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान कई बार हमारे पितृ हमको आशीर्वाद देने कई रूपों मे घर पर आते हैं और बहुत बार जाने अनजाने मे हम उनका अनादर कर देते हैं। आइए उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से जानते हैं कि पितृ पक्ष में पूर्वज किन रूपों मे दर्शन देते हैं।
भूल से भी न करें इनका अनादर
- हिन्दू धर्म मे दान-पुण्य का बड़ा ही अधिक महत्व है। बहुत बार देखा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान कई बार पितर साधु, संत, या भिक्षुक के रूप में प्रकट होते हैं। इस दौरान साधुओं, संतों या गरीबों को भोजन और दान देना पितरों को प्रसन्न करने का एक तरीका माना जाता है। भूल से भी इनका अनादर नहीं करना चाहिए।
- हिन्दू धर्म गाय को गौ माता का दर्जा दिया गया है। श्राद्ध पक्ष में गाय या कुत्ते का भी द्वार पर आना बहुत शुभ माना जाता है। अगर ये रास्ते में भी दिख जाए तो इन्हें भगाना या दुत्कारना नहीं चाहिए। बल्कि, इनको कुछ न कुछ खाने को जरूर देना चाहिए. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं।
- हिन्दू धर्म में मेहमान को अतिथि भव कहा जाता है। लेकिन बहुत बार देखा जाता है कि कोई अतिथि या मेहमान हमारे घर आ जाता है। तो हम परेशान हो जाते हैं और यह सोचने लग जाते हैं कि यह कब जाएंगे। पितृ पक्ष के दौरान पितर कभी-कभी घर के मेहमान के रूप में भी आ सकते हैं। इनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
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