समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। पितृ पक्ष में गया जी पिंड दान करने से पितरो को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है सोलह दिन तक चलने वाला यह श्राद्ध पक्ष विशेष कर पितरो के तर्पण के लिए पवन भूमि है गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वाेत्तम है। इस दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान कर्म किया जाता है। पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी, कौवे आदि को आहार देने की परंपरा है। गरुड़ पुराण में इसके महत्व को बताया गया है कि क्यों श्राद्ध में पंचबलि कर्म करना चाहिए। पंचबलि कर्म के अंतर्गत ही उपरक्त पशु पक्षी को आहार प्रदान किया जाता है।
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पंचबलि कर्म
श्राद्ध में पंचबलि कर्म किया जाता है. अर्थात पांच जीवों को भोजन दिया जाता है। बलि का अर्थ बलि देने नहीं बल्कि भोजन कराना भी होता है। श्राद्ध में गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता है। हमारे पितर किसी भी योनि में हो सकते हैं, इसलिए पंचबकिल कर्म किया जाता है।
गौबलि
गाय को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। घर से पश्चिम दिशा में गाय को पलाश के पत्तों पर गाय को भोजन कराया जाता है तथा गाय को ‘गौभ्यो नमः’ कहकर प्रणाम किया जाता है। पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है। अथर्ववेद के अनुसार- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है, जो भाग्य को जागृत करने की क्षमता रखती है। गाय को अन्न और जल देने से सभी तरह के संकट दूर होकर घर में सुख, शांति और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं।
श्वानबलि
कुत्त को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। कुत्ता आपकी राहु, केतु के बुरे प्रभाव और यमदूत, भूत प्रेत आदि से रक्षा करता है। कुत्ते को प्रतिदिन भोजन देने से जहां दुश्मनों का भय मिट जाता है वहीं व्यक्ति निडर हो जाता है।
काकबलि
छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है। कहते हैं कि कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है। यमलोक में ही हमारे पितर रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कहते हैं कि यदि कौआ आपके श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले तो समझो आपके पितर आपसे प्रसन्न और तृप्त हैं और यदि नहीं करें तो समझो कि आपके पितर आपसे नाराज और अतृप्त हैं।
पिपलिकादि
पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता। उनके बिल हों, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता है। इससे सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है।
देवबलि
देवबलि अर्थात पत्ते पर देवी देवतों और पितरों को भोजन परोसा जाता है। बाद में इसे उठाकर घर से बाहर उचित स्थान रख दिया जाता है।
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