कब से लग रहा है मलमास, जानिए इस दौरान क्यों नहीं किये जाते मांगलिक कार्य

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। हिंदू धर्म में हर एक कार्य शुभ समय को देखकर किया जाता है। विवाह के लिए सूर्य का मजबूत स्थिति में होना जरूरी माना जाता है। लेकिन जब सूर्य मीन या धनु राशि में चला जाता है तो इसकी स्थिति कमजोर हो जाती है। तब शादी ब्याह और अन्य मांगलिक कार्यों पर रोक लगा दी जाती है। 13 दिसंबर से मलमास शुरू होने जा रहा है। सूर्य इस दौरान धनु राशि में चला जायेगा। जो 14 जनवरी 2020 तक इसी राशि में मौजूद रहेगा। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किये जा सकेंगे। हर साल नवंबर से दिसंबर के बीच के समय में मलमास शुरू हो जाता है जिसे मलिन मास कहा जाता है। जानिए क्या है इसका महत्व

कब से कब तक रहेगा मलमास? 13 दिसंबर से खरमास या अधिकमास शुरू हो जायेगा। इस दिन से सूर्य बृहस्पति में प्रवेश कर जायेगा। 14 जनवरी 2020 यानी मंकर संक्रांति तक खरमास चलेगा। इसके खत्म होते ही शादी ब्याह के मुहूर्त फिर से शुरू हो जायेंगे।

मलमास में क्यों नहीं करते मांगलिक कार्य? इस दौरान सूर्य धनु राशि में रहता है। धनु और मीन राशि में होने पर सूर्य कमजोर हो जाता है। विवाह के लिए सूर्य का मजबूत स्थिति में रहना जरूरी है। मकर संक्रांति के दिन तक सूर्य इसी राशि में रहेगा। माना जाता है कि सूर्य के धनु राशि में होने पर जो भी मांगलिक कार्य किये जाते हैं उनका पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता।

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-मलमास में क्या काम न करें? मलमास यानी खरमास में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। जैसे विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, घर का निर्माण, नया काम शुरू, मुंडन इत्यादि।

-मलमास में क्या करें? मलमास में जप, तप, तीर्थ यात्रा, करने का महत्व होता है। हो सके तो इस मास में हर दिन भागवत कथा सुनें और दान-पुण्य के काम करें।

मलमास की पौराणिक कथा – प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चौत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परंतु मलमास का कोई स्वामी नही है। अतरू अधिक मास में समस्त शुभ कार्य, देव कार्य तथा पितृ कार्य वर्जित माने गए है। अधिक मास यानी मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में दी गई है। इस कथा के अनुसार, स्वामीविहीन होने के कारण अधिक मास को ‘मलमास’ कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे दुखड़ा रोया।

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भक्तवत्सल श्रीहरि उसे लेकर गोलोक पहुंचे, वहां श्रीकृष्ण विराजमान थे। करुणासिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूं और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूं। आज से तुम मलमास के बजाय पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे।

इसीलिए प्रति तीसरे वर्ष (संवत्सर) में तुम्हारे आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ कुछ अच्छे कार्य करेगा, उसे कई गुना पुण्य मिलेगा। इस प्रकार भगवान ने अनुपयोगी हो चुके अधिक मास/मलमास को धर्म और कर्म के लिए उपयोगी बना दिया। अतरू इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान एवं दान करने वाले को कई पुण्य फल की प्राति होती है।

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