समाचार सच. स्वास्थ्य डेस्क। बसंत का मौसम जहां ठिठुरती सर्दी और चिल-चिलाती धूप से मुक्त होकर सुखद मौसम का अहसास कराता है, वहीं तमाम रोगों का आगमन इस ऋतु में हो जाता है।
बसंत ऋतु स्निग्ध और मधुर गुण वाली होती है। शीत ऋतु में शरीर में संचित कफ बसंत ऋतु में सूरज की तीव्र रश्मियों से पिघलकर कुपित हो जाता है जो प्राणियों के शरीर में कफ रोगों को उत्पन्न करता है। इन रोगों में बच्चों से लेकर बड़ों तक होने वाले रोग शामिल हैं। इस ऋतु में कफ से कुपित होने से खांसी, सर्दी, जुकाम, श्वास, भूख न लगना, मंदाग्नि, अपच, स्रोतों का अवरोध, गले की खराश, त्वचा रोग, कफज, बुखार, शरीर में भारीपन, अतिनिद्रा, पेचिश, दस्त, खसरा आदि का खास प्रकोप होता है त्वचा और शरीर में खुश्की पैदा हो जाती है।
यहां बसंत ऋतु के संभावित रोगों के आयुर्वेद जड़ी बूटियों के माध्यम से चिकित्सा के बारे में चर्चा की जा रही है –
- यदि बसंत ऋतुु में कफ, खांसी, बुखारी, सर्दी, जुकाम आदि का खास प्रकोप हो, तो हल्दी और दूध गरम करके उसमें थोड़सा सा नमक और गुड़ मिलाकर पीने से खास फायदा होता है।
- अदरक का रस, नींबू का रस और सेंधा नमक मिलाकर खाना खाने से पहले सेवन करने से कफज रोगों का शमन होता है।
- बसंत ऋतु में चटनी के रूप में पुदीने का प्रयोग रोजाना करना चाहिए, क्योंकि यह कफ शामक तथा पाचक होता है। इसका निरन्तर इस्तेमाल करने से खांसी, अजीर्ण, अग्निमांद्य आदि विकारों से भी बचाव किया जा सकता है।
- संभालू के पत्तों का काढ़ा और पीपल का चूर्ण मिश्रित कर पीने से कफ ज्वर का शमन होता है।
- नागरबेल के पान पर एरंड का तेल लगाकर तथा उसे थोड़ा गरमकर छोटे बच्चों की छाती पर रखकर, गरम कपड़े से हल्की सेंक करने से बच्चों की छाती में संचित कफ पिघलकर निकल जाता हे।
- चैत्रमास में जब तक नीम की कोपलें मिलती रहें, तब तक, सबेरे वायु सेवन के लिए घूमते समय 15-20 पत्तियां खूब चबा-चबाकर निगल लेनी चाहिए साथ ही दो काली मिर्च भी खानी चाहिए यह प्रयोग 15-20 दिन रोजाना करना है। इससे त्वचा रोग तथा बुखार के हमले से बचाव होता है प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
- इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3-5 ग्राम मात्रा में जरा सा शहद के साथ मिलाकर सबेरे चाट लेना चाहिए। यह प्रयोग रसायन के गुण पैदा करता है।
- शोधन की दृष्टि से इस ऋतु में आयुर्वेदोक्त पंचकर्म विधाओं में खासतौर से वमन का प्रयोग करना चाहिए, वमन कर्म से कफ निष्कासित हो जाता है और शुद्ध होकर श्लेष्मा (कफ) से पैदा होने वाले रोगों का इस ऋतु में प्रकोप नहीं हो पाता है। एक लीटर पानी में 50 ग्राम नमक डालकर घोलें। इस पानी को पिलाने से वमन (उल्टी) हो जाएगी, यह काम सबेरे निहारामुख करना चाहिए।
- सबेरे नाश्ते के बाद एक गिलास जल में एक-दो चम्मच शहद पीने से सौंदर्य, ताकत, स्कूर्ति तथा ओज की बढ़ोतरी होती है। यह प्रयोग बंसत ऋतु में खास फायदेमंद होता है।
- गले में टॉन्सिल बढ़ने पर जल में शहद घोलकर गरारे करने पर फायदा होता है।
- 10 ग्राम बेसन तथा 10 ग्राम हल्दी का चूर्ण दही में मिलाकर मुख पर मालिश करें। सूख जाने पर चेहरा धो डाले। इस भांति एक सप्ताह प्रयोग करने से मुंहासे खत्म हो जाते हैं।
- अजवायन, सेंधा नमक, काली मिर्च, 10-10 ग्राम लेकर चूर्ण बनाएं। फिर इसमें 5 ग्राम खाने का सोडा मिलाकर रख लें। 2-3 ग्राम की मात्रा में रोजाना सबेरे-शाम गरम पानी के साथ सेवन करने से अरूचि, मंदाग्नि और पेट दर्द का शमन होता है।
- सांस फूलने पर पीपल की सूखी छाल के चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा गुनगुने पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से काफी आराम मिलता है और धीरे-धीरे यह रोग शांत हो जाता है।
- अदरक का स्वरस 20 ग्राम और शहद 6 ग्राम मिलाकर सवेरे- शाम पीने से कफज खांसी दूर हो जाती है।
- इस ऋतु में कफ दोष प्रकुपित होने से बच्चों को खसरा आदि रोग शीघ्र हो जाते हैं। कफ और पित्त से पैदा बुखार, खांसी के लक्षणों से युक्त शरीर के प्रत्येक रोमकूपों पर सरसों के दानों की भांति लाल रंग के दानों से युक्त अरूचिपूर्ण यह खसरा पैदा होता है। इसलिए नीम की पत्ती को कुचलकर जल में भली-भांति खौलाएं और इस जल से बच्चों को स्नान कराएं। इससे संक्रमण की संभावना नहीं रहती है। दो चम्मच खसखस में जल डालकर पीसकर चौथाई कप दही में मिलाकर रोजाना 6 घंटे के अन्तराल से खाने से पेचिश, दस्त तथा मरोड़ ठीक हो जाते हैं।
- अदरक को मुंह में रखते ही इसके असर से हमारी लार गं्रथियां गतिशील हो उठती हैं। ग्रंथियों से रस-स्राव होने लगता है जिससे हमारा गला तर रहता है तथा खाना जल्दी ही हजम हो जाता है।
- मदार के पके पत्ते कोयले की आग में जलाकर भस्म कर लें। आधा ग्राम सुबह – शाम शहद में खाने से कफ ज्वर ठीक हो जाता है।
- ब्राह्मी की ताजी पत्तियां का रस एक चम्मच दें। उल्टी – दस्त के साथ कफ निकलकर सर्दी खांसी ठीक होती है।
- कफ की खांसी में प्याज का रस शहद के साथ देने से कफ (बलगम) आसानी से निकलता है।
(साभार: आरोग्यधाम)

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