ऋग्वेद में छुपे हैं कई रहस्य, जानिए 25 आश्चर्यजनक तथ्य

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समाचार सच, जानकारी डेस्क। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है। 23 अगस्त 2007 में यूनेस्को के विश्व स्मृति रजिस्टर में ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां शामिल की गईं थी। आओ जानते हैं ऋग्वेद के 25 आश्चर्यजनक तथ्य।

  1. दुनिया का पहला धर्म और विज्ञान का ग्रंथ ऋग्वेद है। इसे दुनिया की प्रथम पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
  2. ऋग्वेद का ज्ञान हजारों वर्ष पुराना है जिसे वाचिक परंपरा के माध्यम से संवरक्षित रखा गया। हालांकि संस्कृत पांडुलिपियां बनाने की शुरुआत हुई तब ऋग्वेद को लिपिबद्ध किया गया। इसीलिए यह नहीं समझना चाहिए कि वैदिक काल 1500 ई.पू. विद्यमान था।
  3. ऋग्वेद के ही ज्ञान को विषयबद्ध किए जाने के चलते यजुर्वेद, सामवेद और बाद में अथर्ववेद लिखा गया। जो कुछ भी इन तीनों में है वह सभी ऋग्वेद में मिलेगा।
  4. वेद के तीन भाग राम के काल में पुरुरवा ऋषि ने किए थे, जिसे वेदत्रयी कहे गए हैं। फिर अंत में अथर्ववेद को लिखा अथर्वा ऋषि ने। महाभारत काल में ऋषि वेदव्यसजी ने इस ज्ञान को पुनरू क्रमबद्ध करके अपने शिष्यों को सुनाया।
  5. ‘वेद’ परमेश्वर के मुख से निकला हुआ ‘परावाक’ है, वह ‘अनादि’ एवं ‘नित्य’ कहा गया है। वह अपौरूषेय ही है। इस सर्वप्रथज्ञ ब्रह्मा ने सुना, फिर अग्नि, वायु, आदित्य और (तु अर्थात) अंगिरा से ऋग, यजुः, साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया।
  6. ऋग्वेद से ही अन्य वेदों का जन्म हुआ और सभी वेदों से उपनिषदों की रचना हुई। उपनिषद 1008 थे जिसमें से अब केवल 108 पाए जाते हैं।
  7. वेद और उपनिषदों के आधार पर ही गीता का ज्ञान प्रकट हुआ। गीता सभी वेद और उपनिषदों का सार या कहें कि निचोड़ है।
  8. ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्यात्मक है। इसके 10 मंडल (अध्याय) में 1028 सूक्त है जिसमें 11 हजार मंत्र हैं। इस वेद की 5 शाखाएं हैं – शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।
  9. ऋग्वेद में तात्कालिन काल की भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।
  10. ऋग्वेद में में जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है। इसके साथ ही अणु-परमाणु और अंतरिक्षा आदि के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है।
  11. ऋग्वेद में ब्रह्मांड कैसा है और परमात्मा का अस्तित्व है या नहीं इस संबंध में बहुत ही गहन और गंभीर वर्णन प्रमाणों और तर्कों के साथ मिलता है।
  12. ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है।
  13. ऋग्वेद में उस काल का सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक इतिहास का वर्णम भी मिलता है
  14. ऋग्वेद में ही विश्घ्व प्रसिद्ध दाशराज्ञ के युद्ध का वर्णन है जिसे विश्घ्व इतिहास में ‘बैटल ऑफ टेन किंग’ के नाम से भी जाना जाता है।
    इसमें आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है
  15. ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की, अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं।
  16. ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुंचाने वाला कहा गया है।
  17. ऋग्वेद काल में सुर, असुर, राक्षस, दानव, किन्नर, नाग, गंधर्व, चारण, आदि विभाजन को महत्व दिया जाता था चार वर्णों को नहीं।
  18. ऋग्वेद में कई ऋषियों द्वारा रचित विभिन्न छंदों में लगभग 400 स्तुतियां या ऋचाएं हैं। ये स्तुतियां अग्नि, वायु, वरुण, इन्द्र, विश्वदेव, मरुत, प्रजापति, सूर्य, उषा, पूषा, रुद्र, सविता आदि देवताओं को समर्पित हैं।
  19. ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के रचयिता अनेक ऋषि हैं जबकि द्वितीय के गृत्समय, तृतीय के विश्वासमित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठम् के भारद्वाज, सप्तम के वसिष्ठ, अष्ठम के कण्व व अंगिरा, नवम् और दशम मंडल के अनेक ऋषि हुए हैं।
  20. ऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं- 1.अष्टक क्रम और 2.मण्डलक्रम। अष्टक क्रम में समस्त ग्रंथ आठ अष्टकों तथा प्रत्येक अष्टक आठ अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय वर्गाे में विभक्त है। समस्त वर्गाे की संख्या 2006 है। इसी प्रकार मण्डलक्रम में समस्त ग्रन्थ 10 मण्डलों में विभाजित है। मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त तथा सूक्त मंत्र या ऋचाओं में विभाजित है। दशों मण्डलों में 85 अनुवाक, 1028 सूक्त हैं। इनके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।
  21. ऋग्वेद के उपवेद- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। आयुर्वेद के कर्ता धन्वंतरि देव हैं।
  22. ऋग्वेद के उपनिषद- वर्तमान में ऋग्वेद के 10 उपनिषद पाए जाते हैं। संभवतः इनके नाम ये हैं- ऐतरेय, आत्मबोध, कौषीतकि, मूद्गल, निर्वाण, नादबिंदू, अक्षमाया, त्रिपुरा, बह्वरुका और सौभाग्यलक्ष्मी।
  23. ऋग्वेद के ब्रह्मण ग्रंथ – ब्राह्मण ग्रंथों की संख्या 13 है, जिसमें ऋग्वेद के 2 ब्रह्मण ग्रंथ हैं। 1. ऐतरेयब्राह्मण-(शैशिरीयशाकलशाखा) और 2. कौषीतकि- (या शांखायन) ब्राह्मण (बाष्कल शाखा)। वेद के मंत्र विभाग को ‘संहिता’ भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को ‘आरण्यक’ एवं संहितापरक भाष्य को ‘ब्राह्मण ग्रंथ’ कहते हैं।
  24. अरण्यक ग्रंथ – ऐतरेय और सांख्य।
  25. ऋग्वेद में ज्ञान, विज्ञान, खगोल, भूगोल, धर्म, अध्यात्म, राजनीति, समाज, शिक्षा, संस्कृति, नैतिकता, नियम, ईश्वर, देवता, भगवान, मोक्ष आदि मानव जीवन से जुड़ी सभी तरह की जानकारियां मिलती है जो आज भी प्रासंगिक है। (साभार)

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