कॉमेडी के माध्यम से मंगल दा और जीवन दा कर रहे हैं लोगों के तनाव और दुख को दूर …

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– देश ही नहीं अब विदेशों में भी मचेगी कुमाऊँनी हास्य कलाकार मंगल दा और जीवन दा की धूम…

समाचार सच, हल्द्वानी। आजकल की इस मेहनतकश और भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने आप को तनाव में व थका हुआ सा महसूस करने लगेे हैं। हम आपको यहाँ बताते हैं कि उक्त बीमारी को दूर करने की दवा यहां नैनीताल जनपद के लालकुआं क्षेत्र के समीप बिन्दुखत्ता क्षेत्र के रहने वाले हास्य कलाकार मंगल दा और जीवन दा के पास है। यह दोनों अपनी कला के माध्यम से लोगों को हँसा-हँसा कर उनकी थकान भरी जिन्दगी से तनाव और दुख को दूर कर रहे हैं।

ज्ञात हो कि वर्तमान में मंगल दा व जीवन दा का यूट्यूब चैनल ‘‘अपना मंगल’’ उत्तराखण्ड ही नहीं पूरे देश व विदेश में छाया हुआ है। लोग इसे खूब पसंद कर रहे है। इस समय उनके इस चैनल के लगभग 46 हजार फ्रेन्ड्स बन चुके है। मंगल दा व जीवन दा से जुड़े लोगों का कहना है कि जब वे अपने कामकाज से थक कर घर पहुंचते है तो उनके यूट्यूब चैनल ‘‘अपना मंगल’’ देखकर अपनी थकान व तनाव मिटा लेते हैं।

इस बात की सूचना मिली तो समाचार सच के संपादक अजय चौहान और मोटिवेशनल स्पीकर कुलदीप सिंह उनके निवास स्थान पहुंचे और उनसे बातचीत की। इन हास्य कलाकारों द्वारा दिये गये एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के कुछ मुख्य अंश:

आप अपने माता-पिता और परिवार के बारे में कुछ बताइए?
मंगल दा – मेरे पिताजी आर्मी में थे। उन्होंने 1971 में बांग्लादेश में हुए युद्ध में भी भाग लिया। आर्मी से रिटायर होकर उन्होंने पीडब्लूडी में भी नौकरी की। मेरे पिता जी काफी हँसी-मज़ाक किया करते थे। गांव में जब भी कभी होली होती थी तो सबसे पहले मेरे पिताजी का ही जिक्र होता था। वे अनेक कार्यक्रमों में स्वांग किया करते थे। पिताजी से बहुत प्यार मिला। पिताजी बहुत बड़ी प्रेरणा थे मेरे लिए। कुछ समय बाद हम गाँव से यहीं आकर बस गए। मेरे बड़े भाईसाहब श्री लाल सिंह चौहान जी भी यहीं पास में रहते हैं।

जीवन दा – मैं एक किसान परिवार से आता हूँ। हम तीन भाई हैं। मेरे माता-पिता खेती-बाड़ी का काम किया करते थे। मैं उन्हें नमन करता हूँ कि वे हमेशा मुझे आगे बढ़ाते थे। मेरी माताजी हमेशा मुझसे कहती थी कि बेटा आप बहुत अच्छी कलाकारी करते हैं और बहुत अच्छा गाना गाते हैं। उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया।

आपकी शिक्षा-दीक्षा कहाँ से हुई?
मंगल दा – मेरी प्रारंभिक शिक्षा जी.आई.सी डीडीहाट से हुई। फिर गाँव के जूनियर हाईस्कूल से ही मैंने पढ़ा। पिताजी ने बहुत बोला पढ़ने को लेकिन मेरा मन पढ़ने से ज्यादा अभिनय में लगता था। हाँ मैंने जिंदगी के अनुभवों से काफी कुछ पढ़ा है।

जीवन दा – मेरी शिक्षा-दीक्षा गदरपुर के स्कूल से ही हुई। मैं बचपन में आर्मी में जाना चाहता था।

आप दोनों का कॉमेडी का सफर कैसे शुरू हुआ?
मंगल दा – कॉमेडी का सफर पिताजी की प्रेरणा और एक दिलचस्प किस्से से शुरू हुई। एक दिन मैंने दादा कोंडके की “तेरे मेरे बीच में” नामक फ़िल्म देखी तो मैं रात भर हँसने में रहा। उस पिक्चर को देख के मैंने सोचा कि मैं भी तो ये कर सकता हूँ। बिन्दुखत्ता की सबसे पहली बार रामलीला जब मेरे गाँव रावत नगर में हुई तो उसमें मैंने मंथरा और ताडिका का पाठ खेला।

जीवन दा – मैंने भी अपनी शुरुवात रामलीला में सखी और रिठुवा-गिठुवा के पात्र से की। दादा कोंडके की कॉमेडी ने भी मुझे प्रेरित किया।
फिर हम दोनों की मुलाकात प्रहलाद मेहरा जी से हुई। हमें तराशने वाले परम गुरु प्रहलाद मेहरा जी ही हैं जिन्होंने हमें कॉमेडी की बारीकियाँ सिखाई।

आप दोनों एक-दूसरे से सबसे पहले कहाँ मिले?
हमारी मुलाकात सन् 1985-86 की रामलीला में बिन्दुखत्ता में हुई। उसके बाद धीरे-धीरे हमारी लोकप्रियता बढ़ने लगी और जिस भी रामलीला में हम अभिनय करते थे वहीं लोगों की सबसे ज्यादा भीड़ होती थी।

पहली कमाई?
पहली कमाई हमारी हुई थी 300 रुपये की। हमें आज भी याद है कि ये सन् 1985-86 की बात है। पहली कमाई हमने अपनी ईजा के हाथ में रखी।

कोई यादगार लम्हा?
यादगार लम्हे के बारे में मंगल दा बताते हैं कि करीब 2-3 साल पहले जब हम बम्बई गए थे तो जैसे ही मैंने अपना संबोधन हिंदी में शुरू किया तो ऑडियंस में से कुछ लोगों ने बोला पहाड़ी में… पहाड़ी में… जैसे ही मैंने पहाड़ी में बोलना शुरू किया तो पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लोगों के उस प्यार और आशीर्वाद को मैं ताउम्र नहीं भूल सकता। खासकर बच्चों से जो मुझे प्यार मिला। बच्चों को भगवान का रूप भी कहा जाता है तो ऐसा लग कि भगवान का आशीर्वाद मुझे मिल गया।
अक्सर लखनऊ जाने पर श्री गणेश जोशी जी का भी बहुत प्यार मिलता रहता है। ऐसे इंसान बहुत दुर्लभ होते हैं।

जीवन दा को भी ओखलकांडा का 15 साल पुराना एक किस्सा ध्यान आ गया जिसमें सारे कलाकार रात भर हँसते रहे थे।

सब लोग आपके फैन हैं आप दोनों किसके फैन हैं?
हम दोनों एक-दूसरे के सबसे बड़े फैन हैं। गीतों में हमें श्री प्रहलाद मेहरा जी और श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीत पसंद हैं।
बसंत दा के भी हम फैन हैं। और पप्पू कार्की जी से भी हमारी बहुत घनिष्टता थी। वो हमारे भाई जैसे थे। हम लोग एक ही थाली में खाते थे। बहुत प्रेम था हमारे बीच लेकिन ऊपरवाले को शायद कुछ और ही मंजूर था। वो जहाँ भी हैं भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।

यूट्यूब चैनल “अपना मंगल” खोलने का कैसे सोचा आपने?
इसमें सबसे बड़ा योगदान अनिल पानू जी का है। जिन्होंने पप्पू कार्की जी की माता जी को भी अपने वेतन से हर माह आजीवन 2100 रुपये देने का वचन लिया है। उन्हीं ने हमसे कहा कि बुढ़ापे का सहारा ये यूट्यूब चैनल ही है। वे बहुत ही बेमिसाल इंसान हैं। उनका बहुत-बहुत धन्यवाद।

आपका आने वाला अगला वीडियो कौन सा है?
हमारा अगला वीडियो पलायन विषय पर आएगा। इसकी शूटिंग हम अपने गाँव आदिचौरा डीडीहाट में ही करेंगे। इसके अलावा एक कार्यक्रम दुबई में भी होने वाला है।

आजतक आपने कितने कार्यक्रम किए होंगे?
लगभग 1000 से ऊपर।

आपको कितने अवार्ड्स मिले ?
दिल्ली, पंजाब, लखनऊ, राजस्थान, मुम्बई आदि जगहों पर हमें सम्मानित किया गया है।

लोगों को विभिन्न विषयों पर जागरूक करने के लिए क्या आपको सरकार से कोई मदद मिलती है?
सरकार से इस तरह की कोई प्रत्यक्ष मदद तो नहीं मिली है। हमें सरकारी कार्यक्रमों में जरूर बुलाया जाता है और उसका हमें मेहनताना भी मिलता है। लेकिन आज के इस महँगाई के दौर में सरकार को कलाकारों का मेहनताना बढ़ाना चाहिए तथा उन्हें और ज्यादा प्रोत्साहित करना चाहिए।

कॉमेडी के क्षेत्र में करियर कैसे बनाये?
बच्चों के लिए हम ये कहेंगे कि जिन कॉमेडियन्स को आप जानते हैं उन्हें जरूर फॉलो किया करें। आप किसी भी चुटकुले को बहुत रोचक ढंग से पेश करें। उसे परोसने का एक तरीका होना चाहिए। उस चुटकुले में सामाजिक हित से सम्बंधित एक संदेश जरूर दें। जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, बच्चों को फल हमेशा धोकर खाना चाहिए इत्यादि। आधा कुमाऊँनी में बोलो आधा हिंदी में बोलो। आईने के आगे खड़े होकर चेहरे के मूवमेंट का अभ्यास करें।

आजकल के युवा बहुत जल्दी हार मान जाते हैं और उन्हें हर चीज़ जल्दी चाहिए। उनके लिए आपका कोई संदेश?
हम युवाओं से ये कहना चाहेंगे कि कोई भी काम पकड़ो। ठान लो कि मुझे ये करना है चाहे उसमें सफलता ना मिल रही हो प्रयास करना न छोड़े। जो उस क्षेत्र में काम कर रहें हों उनके अनुभव से सीखो। हम गारंटी देते हैं कि आपको सफलता जरूर मिलेगी। चाहे थोड़ा वक़्त लगे। और अगर आप इतनी ही जल्दी करोगे जिंदगी में तो आपको पता ही है जल्दी का काम शैतान का।

उत्तराखंडवासियों के लिए कोई संदेश…
उत्तराखंडवासियों को अपने क्षेत्र के विकास में अपना सहयोग जरूर करना चाहिए। जगह-जगह पर वृक्ष लगाएं ताकि भूस्खलन ना हो। नदियों में कचरा ना डालें। उन्हें स्वच्छ तथा अविरल रखें। पलायन रोकें। युवा नशे से दूर रहें। लोग आपस में मिलकर रहें। अपनी बोली-भाषा जरूर बोलें और बच्चों को भी सिखाए।

हम सारे उत्तराखंडवासियों के आजीवन आभारी रहेंगे। अगर हमारी वजह से किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, थोड़ी देर के लिए वो अपना गम भूल जाता है तो हमसे बड़ा भाग्यशाली और कौन होगा। हम भगवान से प्राथना करेंगे कि अगले जन्म में भी वे हमें एक हास्य कलाकार ही बनाएँ ताकि हम लोगों का दिल जीत सकें।
जय हिंद, जय उत्तराखंड।

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