उत्तराखंड स्थापना दिवस की रजत जयंती पर 101 दीपों से सजी श्रद्धांजलि-वीर आंदोलनकारियों को संघर्ष समिति का सलाम

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समाचार सच, हल्द्वानी। उत्तराखंड स्थापना दिवस की रजत जयंती के अवसर पर संघर्ष सेवा सहयोग समिति, हल्द्वानी द्वारा राज्य आंदोलन के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। समिति की अध्यक्ष योगिता बनौला के नेतृत्व में कालाढूंगी चौराहे पर 101 दीप जलाकर राज्य आंदोलनकारियों के बलिदान को नमन किया गया।

दीपों की झिलमिल रोशनी और “जय उत्तराखंड, जय मातृभूमि” के जयघोष से पूरा चौराहा गूंज उठा। उपस्थित लोगों की आंखें नम थीं, लेकिन गर्व की चमक से भरी हुईं।

राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा चुके ललित जोशी ने कहा कि आज जब हम उत्तराखंड की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तब उन साथियों की याद आती है जिन्होंने अलग राज्य के लिए अपनी जान न्योछावर की। रामपुर तिराहा, मसोूरी और खटीमा की धरती उन वीरों की गवाही देती है जिन्होंने अपने लहू से इस राज्य की नींव रखी। हमारा कर्तव्य है कि उनके सपनों का उत्तराखंड बनाएं, एक शिक्षित, सशक्त और भ्रष्टाचारमुक्त राज्य।”

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हल्द्वानी टीआई महेश चंद्रा ने कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि जनभावनाओं का प्रतीक था। आज का यह दीपोत्सव हमें याद दिलाता है कि उन बलिदानों की बदौलत हमें अपनी पहचान मिली है। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम राज्य की शांति, विकास और एकता बनाए रखें।

समिति की अध्यक्ष योगिता बनौला ने कहा कि यह दीप सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उस संघर्ष की लौ हैं जिसने हमारे सपनों का उत्तराखंड बनाया। आज इन दीपों के माध्यम से हम शहीदों के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को उनकी कुर्बानियों का संदेश दे रहे हैं।

कार्यक्रम में समिति के सदस्य, स्थानीय नागरिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
मुख्य रूप से रिम्पी बिष्ट, डॉ. नीरज वार्ष्णेय, लता बोरा, कोमल, हिना बिष्ट, सोनिया जोशी, खुशी नागर, कुसुम बोरा, अमन कुमार, आदर्श कुमार, सुनीता जोशी, कमला रौतेला, अमित अग्रवाल, पूनम जायसवाल, इंदर बनौला, पार्वती किरौला, सतेन्द्र सिंह शम्मी, मंजू वार्ष्णेय सहित अनेक गणमान्य मौजूद रहे।

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संघर्ष से राज्य तक – उत्तराखंड आंदोलन की ऐतिहासिक झलक पर डाले एक नजर…
-उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी। इससे पहले यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।
-1990 के दशक में जब पहाड़ों की उपेक्षा बढ़ी, तो आंदोलन भड़क उठा।
-2 सितंबर 1994 को खटीमा फायरिंग में कई आंदोलनकारियों ने अपनी जान गंवाई।
-1 अक्टूबर 1994 को मसोूरी और रामपुर तिराहा कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया।
इन घटनाओं ने आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया, और आखिरकार वर्षों के संघर्ष के बाद उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ।

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