उत्तरायणी पर्व विशेष : रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व

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-रानी की खूबसूरती पर रोहिल्लों की सेना हुई थी मोहित
-14 जनवरी को पहुंचते है गढ़वाल के कई क्षेत्रों से कत्यूरी व पंवार वंशज के लोग
Uttarayani festival special: Historical importance of Jiyarani’s cave in Ranibagh

समाचार सच, हल्द्वानी। कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा (Jiyarani’s cave in Ranibagh) का ऐतिहासिक महत्व है। रानी मौला देवी यहां 12 वर्ष तक रही थीं। उन्होंने अपनी सेना गठित की थी और खूबसूरत बाग भी बनाया था। इसकी वजह से ही इस क्षेत्र का नाम रानीबाग पड़ा। उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। जागर लगाते हैं। डांगरिये झूमते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है।

मौला देवी पिथौरागढ़ (Maula Devi Pithoragarh) के राजा प्रीतमदेवी की दूसरी पत्नी थीं। वह हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडरी की दूसरी बेटी थी। 1398 में जब समरकंद का शासक तैमूर लंग मेरठ को लूटने के बाद हरिद्वार पहुंच रहा था। तब राजा पुंडरी ने प्रीतमदेव से मदद मांगी थी।

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राजा प्रीतम ने अपने भतीजे ब्रह्मदेव को वहां भेजा था। इस दौरान ब्रह्मदेव मौला देवी को प्रेम करने लगे, लेकिन पुंडीर ने दूसरी बेटी मौला की शादी प्रीतम से ही करवा दी। लेकिन बाद में मौला देवी रानीबाग पहुंच गयी। यहां पर उन्होंने सेना गठित की थी। सुंदर बाग भी बनाया था। इतिहास में वर्णन है कि एक बार मौला देवी यहां नहा रही थीं। उस समय रोहिल्लों की सैनिकों ने उसकी खूबसूरती देखकर उसका पीछा किया। उसकी सेना हार गयी। वह गुफा में जाकर छिप गईं। इस सूचना के बाद प्रीतम देव उसे पिथौरागढ़ ले गये। प्रीतम की मृत्यु के बाद मौला देवी ने बेटे दुलाशाही के संरक्षक के रूप में शासन भी किया था। उसकी राजधानी चौखुटिया व कालागढ़ थी। माना जाता है कि राजमाता होने के चलते उसे जियारानी भी कहा जाता है। मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।

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15 को कत्यूरी वंशज करेंगे जियारानी के घाघरे वाले पत्थर की पूजा
हल्द्वानी।
14 जनवरी मंकर सक्रांति को कत्यूरी वंशज दूरस्थ क्षेत्रों से रानीबाग में जागर लगाने पहुंचेंगे। यहां पर जियारानी का घाघरा वाला पत्थर (चित्रशिला) के दर्शन कर उनकी पूजा अर्चना करेंगे। रानीबाग में 14 जनवरी की रात को कुमाऊं तथा गढ़वाल के कई क्षेत्रों से कत्यूरी व पंवार वंशज यहां पहुंचते हैं। रातभर जागर चलता और सुबह के समय वे स्नान कर जियारानी के घाघरे वाले पत्थर की पूजा करते है। मान्यता है कि एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से शिला का निर्माण कराया था। उस पर बैठकर सूतप ऋषि को वरदान दिया था।

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