मदर्स डे 2025: क्यों मनाया जाता है मदर्स डे, जानने के लिए जरूर जाने ये रोचक इतिहास

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समाचार सच, जानकारी डेस्क। पूरी दुनिया मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे सेलीब्रेट करती है, ये तो सभी जानते हैं कि ये दिन खासतौर से सभी माताओं को समर्पित है। वैसे तो माताओं के प्रति प्यार और सम्मान हर पल ही मन में होता है लेकिन इस एक दिन उसे जताकर माताओं को खास महसूस कराये जाने का चलन है।

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इस दिन मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर उनके अथाह प्यार और स्नेह के लिए धन्यवाद दिया जाता है। जितना खास है यह दिन, उतनी ही रोचक है इस दिन को मनाने की शुरुआत भी। अलग-अलग देशों में इस दिन को मनाने की अलग-अलग कहानी है। जानिए कब, क्यों और कैसे हुई मदर्स डे मनाने शुरुआत –

  • मदर्स डे ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जॉर्विस ने सभी माताओं और उनके मातृत्व को सम्मान देने के लिए आरंभ किया गया था। इसे दुनिया के हर कोने में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता हैं। इस दिन कई देशों में विशेष अवकाश घोषित किया जाता है।
  • कुछ विद्वानों का दावा है कि मां के प्रति सम्मान यानी मां की पूजा का रिवाज पुराने ग्रीस से आरंभ हुआ है। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था।
  • यह दिन त्योहार की तरह मनाने की प्रथा थी। एशिया माइनर के आस-पास और साथ ही साथ रोम में भी वसंत के आस-पास इदेस ऑफ मार्च 15 मार्च से 18 मार्च तक मनाया जाता था।

मनाया जाता था मदरिंग संडे…
यूरोप और ब्रिटेन में मां के प्रति सम्मान दर्शाने की कई परंपराएं प्रचलित हैं। उसी के अंतर्गत एक खास रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता था। जिसे मदरिंग संडे कहा जाता था। मदरिंग संडे फेस्टिवल, लितुर्गिकल कैलेंडर का हिस्सा है। यह कैथोलिक कैलेंडर में लेतारे संडे, लेंट में चौथे रविवार को वर्जिन मेरी और श्मदर चर्चश् को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता हैं।

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परंपरानुसार इस दिन प्रतीकात्मक उपहार देने तथा मां का हर काम परिवार के सदस्य द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है।अमेरिका में सर्वप्रथम मदर डे प्रोक्लॉमेशन जुलिया वॉर्ड होवे द्वारा मनाया गया था।

होवे द्वारा 1870 में रचित ष्मदर डे प्रोक्लामेशनष् में अमेरिकन सिविल वॉर (युद्घ) में हुई मारकाट संबंधी शांतिवादी प्रतिक्रिया लिखी गई थी। यह प्रोक्लामेशन होवे का नारीवादी विश्वास था जिसके अनुसार महिलाओं या माताओं को राजनीतिक स्तर पर अपने समाज को आकार देने का संपूर्ण दायित्व मिलना चाहिए।

1912 में एना जॉर्विस ने सेकंड संडे इन मई फॉर ‘मदर्स डे’ को ट्रेडमार्क बनाया और मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन का गठन किया।

क्या कहता है गूगल…

  • गूगल से जानकारी ढूंढने जाएं तो मदर्स डे के दो प्राथमिक परिणाम सामने आते हैं, वो है,लेंट में मदरिंग संडे, ब्रिटिश कैलेंडर के चौथे संडे के रूप में और मई के दूसरे संडे के रूप में।
  • चीन में मातृ दिवस बेहद लोकप्रिय है और इस दिन उपहार के रूप में गुलनार के फूल सबसे अधिक बिकते हैं। 1997 में चीन में यह दिन गरीब माताओं की मदद के लिए निश्चित किया गया था। खासतौर पर उन गरीब माताओं के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे पश्चिम चीन में रहती हैं।
  • जापान में मातृ दिवस शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन (सम्राट अकिहितो की मां) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। आज कल इसे अपनी मां के लिए ही लोग मनाते हैं। बच्चे गुलनार और गुलाब के फूल उपहार के रूप में मां को अवश्य देते हैं।
  • थाईलैंड में मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। भारत में इसे कस्तुरबा गांधी के सम्मान में मनाए जाने की परंपरा है।
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बाद में यह तारीखें कुछ इस तरह बदली कि विघ्भिन्न देशों में प्रचलित धर्मों की देवी के जन्मदिन या पुण्य दिवस को इस रूप में मनाया जाने लगा। जैसे कैथोलिक देशों में वर्जिन मैरी डे और इस्लामिक देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा के जन्मदिन की तारीखों से इस दिन को बदल लिया गया।

वैसे कुछ देश 8 मार्च वुमंस डे को ही मदर्स डे की तरह मनाते हैं। यहां तक कि कुछ देशों में अगर मदर्स डे पर अपनी मां को विधिवघ्त सम्मानित नहीं किया जाए तो उसे अपराध की तरह देखा जाता है।

चीन में मदर्स डे…

  • चीन में मातृ दिवस बेहद लोकप्रिय है और इस दिन उपहार के रूप में गुलनार के फूल सबसे अधिक बिकते हैं। 1997 में चीन में यह दिन गरीब माताओं की मदद के लिए निश्चित किया गया था। खासतौर पर उन गरीब माताओं के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे पश्चिम चीन में रहती हैं।
  • जापान में मातृ दिवस शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन (सम्राट अकिहितो की मां) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। आज कल इसे अपनी मां के लिए ही लोग मनाते हैं। बच्चे गुलनार और गुलाब के फूल उपहार के रूप में मां को अवश्य देते हैं।
  • थाईलैंड में मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। भारत में इसे कस्तुरबा गांधी के सम्मान में मनाए जाने की परंपरा है।
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