उत्तराखण्ड में अस्तित्व के लिये जूझ रहे क्षेत्रीय दल

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आप की प्रयोग से तीसरी ताकतों में जगी आस

समाचार सच, हल्द्वानी (धीरज भट्ट)। इतिहास गवाह है कि अनेक क्षेत्रीय दलों ने देश में अपनी मौजूदगी मजबूती से दर्ज की है। उत्तराखण्ड इसका अपवाद रहा है। हालांकि उक्रांद ने कभी एक लौ जरूर जगायी थी, लेकिन वह लौ जग नहीं पायी। आज अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं जबकि क्षेत्रीय शंक्तियां उत्तराखण्ड में अपने वजूद को बचाये रखने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं। अब वह इसमें कितना सफल हो पाते है, यह तो इतिहास ही बतायेंगा। दिल्ली में आप की जीत से यहां पर छटपटाहट जरूर महसूस की जा रही है।

राज्य बनने से पूर्व क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उत्तराखण्ड क्रांति दल ने सशक्त भूमिका निभायी थी। राज्य निर्माण में भी उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का महत्वपूर्ण शेल रहा था। हालांकि उत्तराखण्ड बनने के बाद उत्तराखण्ड क्रांतिदल विधानसभा में विशेष प्रदर्शन नहीं कर पाया और वर्तमान में यूकेडी का एक भी विधायक नहीं है।

इसके अलावा पीसी तिवारी की उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा आदि पार्टियों का गठन किया गया, लेकिन ये सियासी मंच पर मजबूत विकल्प पेश न कर पाये। वर्तमान में देश में क्षेत्रीय दलोें का दौर चल रहा है। लगभग सभी राज्यों में क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी है। ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), नवीन पटनायक (उड़ीसा), उद्धव ठाकरे (महाराष्ट्र), अरविंद केजरीवाल (दिल्ली), सोरन (झाझुमो) आदि मुख्यमंत्री क्षेत्रीय दलों के ही मजबूत चेहरों में गिने जाते हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी जम्मू में नेशनल कान्फ्रेन्स, पीपुल्स पार्टी, तमिलनाडू में अन्नाद्रमुक, द्रमुक, आन्ध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी तेलगाना में भी क्षेत्रीय दल मजबूत है। ये दल एक व्यक्ति के ऊपर निर्भर हैं, लेकिन मजबूत पार्टी संगठन के कारण ये अपने प्रदेश में सशक्त मौजूदगी दर्ज किये हुए हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब देश में क्षेत्रीय दल अपनी सरकार बना सकते हैं तो उत्तराखण्ड में यह प्रयोग क्यों असफल रहा है।

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इतिहास देखा जाये तो उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय शक्तियों के नहीं उभरने के पीछे तमाम कारण जिम्मेदार माने जा सकते हैं। अधिकतर दलों में अहमवाद व व्यक्तिवाद की लड़ाई के कारण आपस में लड़ते रहे, पार्टी का मजबूत संगठन न होना, राष्ट्रीय दलों के सामने आत्मसर्मपण करना, राज्य के हितों की मजबूती से पैरवी न कर पाना भी इन पार्टियों के पतन के लिए जिम्मेदार रहे।

ज्वलन्त मुद्दे छूमंतर
उत्तराखण्ड का निर्माण यहां की उपेक्षा के परिणामस्वरूप हुआ था, लेकिन राज्य बनने के बाद ये अवधारणाएं गायब सी हो गयी है। मसलन स्थायी राजधानी, रोजगार, जल, जमीन और पर्यावरण का मुद्दा गायब रहा, हालांकि उक्रांद स्थायी राजधानी के मुद्दे पर गैरसैंण पर अडां रहा, लेकिन अभी ये बिन्दू यहां के सत्तारूढ़ दलों के लिए गौण हो गये हैं।

दिल्ली ने दिया संदेश
दिल्ली में देश के विभिन्न भागों के लोग रहते हैं। लिहाजा इसे मिनी भारत कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं है। तमाम राजनीतिक पार्टियों को आम आदमी पार्टी की लगातार तीसरी जीत से समझ लेना चाहिए कि देश की जनता के लिएि धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों से ज्यादा अहमियत विकास की है। यदि कोई पार्टी विकास की चाहत रखती हैं तो निश्चत ही नजा उसे विकल्प के रूप में चुनेगी।
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव भारी सबक लेने और आत्ममंथन का विषय हैं। उसे सोचना होगा कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमि शाह और भाजपा एवं सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री दिल्ली में पड़े रहे। करीब 200 सांसदों की भारी-भरकम फौज चुनावी मोर्चे पर डटी रही। फिर भी जनता ने शाहीनबाग के बजाए विकास को प्राथमिकता दी। यानी विकास के विकल्प को चुना है। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड जैसे राज्यों में ऐसा हो भी चुका है। कांग्रेस के लिए भी सबक है कि जिस दिल्ली में कभी उसकी तूती बोला करती थी वहां केजरीवाल का किला क्यों मजबूत होता रहा है। तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों को आम आदमी पार्टी ने संदेश दिया है कि यदि धरातल पर काम दिखें तो जनता को कोई भरमा नहीं सकता है, विकास की राजनीति ही विकल्प दे सकती है।

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बसपा देगी विकल्प : एडवोकेट पृथ्वी पाल सिंह रावत

हल्द्वानी। बसपा नेता व एडवोकेट पृथ्वी पाल सिंह रावत ने एक बयान में कहा कि बसपा क्षेत्रीय दलों के रूप में विकल्प बनने को तैयार है। उन्होंने कहा कि बसपा अब सभी लोगों के साथ चलने को तैयार है, जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में पार्टी ने सतीश मिश्रा को अपने साथ रखकर यह संदेश दिया कि पार्टी सभी धर्मो व लोगों को साथ लेकर मजबूत विकल्प देगी। उन्होंने कहा कि पार्टी राज्य के ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरेगी। राज्य में जनता के पास मजबूत विकल्प नहीं होने के कारण यहां के लोगों के पास राष्ट्रीय दलों का विकल्प नहीं है, लेकिन बसपा राज्य में मजबूत बनकर यहां की आवाज बनने का प्रयास करेगी। एक सवाल में जबाव में उनका कहना था कि बसपा अपनी नीतियों को जनता के समक्ष रखेगी और उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास करेगी, जिस प्रकार राष्ट्रीय दलों ने यहां की जनता की उपेक्षा की है। बसपा उन मामलों में जनता के साथ है और रहेगी।

क्षेत्रीय दलों को मिलेगी मजबूती : एडवोकेट बलदेव सिंह मेहता

हल्द्वानी। आप पार्टी के पूर्व नगर अध्यक्ष एडवोकेट बलदेव सिंह मेहता ने कहा कि उत्तराखण्ड के क्षेत्रीय दलों को दिल्ली की आम आदमी पार्टी से सबक लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर राज्य के स्थानीय मुद्दों को गंभीरता से हल किया जाये, तो जनता आप के साथ हो सकती है। दिल्ली चुनाव ने यह दिखा दिया है कि अगर काम करने वाला सीएम हो तो जीत तय है। उत्तराखण्ड में भी क्षेत्रीय दलों के लिये यह जरूरी है कि वह अपनी आपस की लड़ाई को तिलांजलि देकर जन सरोकारों पर ध्यान दे तो आने वाले चुनाव में उनका रूतबा बढ़ेगा।

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