समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। यह देवी आदिशक्ति के अष्टम स्वरूपों में से एक हैं और इन्हें ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। संस्कृत में श्कूष्मांडाश् का अर्थ है ‘कुम्हड़ा’ (पेठा) और श्अंडश् का अर्थ ब्रह्मांड, यानी वह शक्ति जिसने ब्रह्मांड की उत्पत्ति की।


माँ कूष्मांडा की विशेषताएँ
सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी
माँ कूष्मांडा को सूर्य के तेज का स्रोत माना जाता है, जिससे इनका स्वरूप अत्यंत दैदीप्यमान और प्रभामयी होता है।
आठ भुजाओं वाली देवी
इनके आठ हाथ होते हैं, जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र और गदा सुशोभित रहते हैं।
सिंह की सवारी
देवी कूष्मांडा सिंह पर सवार रहती हैं, जो उनके शक्ति और साहस का प्रतीक है।
सुख-समृद्धि और आयु में वृद्धि
इनकी कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और दीर्घायु प्राप्त होती है।
माँ कूष्मांडा की पूजा का महत्व
- भक्तों के सभी कष्ट और रोग समाप्त होते हैं।
- धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- आत्मबल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
- सूर्य की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता बनी रहती है।
पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- माँ कूष्मांडा को कमल या गेंदे का फूल अर्पित करें।
- उन्हें मधुर व्यंजनों और खासतौर पर मालपुए का भोग लगाएं।
इस दिन माँ कूष्मांडा के मंत्र का जाप करें
ऊँ ऐं हृ्रीं क्लीं कूष्मांडायै नमः।’
आरती करें और माता से सुख-समृद्धि की कामना करें।
उपसंहार
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों के सभी दुःख-दर्द दूर होते हैं और जीवन में नई ऊर्जा और उमंग आती है। उनकी कृपा से जीवन में उत्साह और सकारात्मकता बनी रहती है।




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