समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। शनिदेव को न्याय और कर्म का देवता माना जाता है। मान्यता के अनुसार, शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं। शनि का नाम सुनते ही लोग डरने लगते हैं और लोगों के मन में साढ़े साती और ढैय्या का डर होता है। बताया जाता है कि जिस भी व्यक्ति पर शनिदेव की ढैय्या व साढ़े साती होती है, उसको जीवन में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
वहीं इस स्थिति का वैवाहिक जीवन पर भी नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। ऐसे में यदि आप भी शनि की ढैय्या व साढ़े साती के प्रभाव में हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको शनि की नकारात्मक दशा को शांत करने के कुछ अचूक मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं। ऐसे में आप इन मंत्रों का जाप कर शनि के नकारात्मक प्रभाव से बच सकते हैं।
शनि गायत्री मंत्र
शनि देव के गायत्री मंत्र के जाप से शनि शांत होते हैं। इसके साथ ही जातक को शनिदेव की कृपा मिलनी शुरू हो जाती है।
ओम भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
क्षमा मंत्र
यदि किसी जातक से कोई भूल या गलती हो गई हैं, तो आप शनिदेव के इस मंत्र का जाप कर अपनी गलती के लिए क्षमायाचना कर सकते हैं।
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दुर: खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगताः सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात्।।
शनि की ढैय्या से बचने का मंत्र
जिन जातकों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव हैं, उनको निरंतर इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे आपके रुके हुए कार्य फिर से बनने शुरू हो जाएंगे और व्यक्ति को शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होगी।
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।
शनिदेव की कृपा पाने का मंत्र
अगर आप भी शनि देव के नकारात्मक प्रभाव से बचना चाहते हैं और उनकी विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो जातक को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल की दीपक जलाना चाहिए और साथ ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान्।
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी।।
साढ़े साती के प्रभाव को कम करने का मंत्र
शनि की साढ़े साती को सबसे ज्यादा खतरनाक माना गया है। शनि की साढ़े साती के प्रभाव को कम करने के लिए व्यक्ति को शनिदोष निवारण मंत्र का जाप करना चाहिए।
ओम त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
ओम शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंयोरभिश्रवन्तु नः।
ओम शं शनैश्चराय नमः।।
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