समाचार सच. अध्यात्म डेस्क। भागवत पुराण के अनुसार द्वारिका के एक नागरिक सत्राजित के पास स्यमंतक मणि थी। कृष्ण ने उसे राजा उग्रसेन के पास पहुंचाने को कहा, किन्तु सत्राजित इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसका भाई प्रसेनजित मणि को हमेसा छाती से चिपकाए रहता था। एक दिन सिंह ने प्रसेनजित को मारकर मणि छीन ली। सिंह को रीछ ने मारकर मणि कब्जा ली। कृष्ण ने रीछ को मारकर मणि हथिया ली। मणि को पाकर कृष्ण चैन से न बैठ सके और बहेलिया ने उन्हें मार दिया। इसके बाद स्यमंतक मणि पाण्डववंशियों के पास पहुंची। परीक्षित, जन्मेजय, चन्द्रगुप्त मौर्य, विम्बसार, अशोक, बृहदरथ, पुष्यमित्र-एक के बाद एक के पास मणि पहुंचने की कथाएं कष्टकर हैं। हस्तान्तरण, शान्ति और सद्भावना नहीं, दुरभिसंधियां और हत्याएं मणि को इधर-उधर लिए फिरीं। कनिष्क, चन्द्रगुप्त, हर्षवर्धन के बाद मणि मालवा नरेश यशोवर्मा के पास पंहुचती है। (साभार: शक्तिप्रसाद सकलानी)
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