-बीमार पति, सास-ससुर व बच्चों का ई-रिक्शा चलाकर कर रही है लालन-पालन
-गुड्डी का बड़ा दिल ऐसा, जैसा तो बड़े-बड़ों का नहीं होता…
-गुड्डी निःशुल्क महिलाओं को सिखाऐंगी ई-रिक्शा चलाना
समाचार सच, हल्द्वानी। भारत देश तो विलक्षणताओं का देश है इस देश की नारी भी किसी से कम नहीं हैं। भारतीय नारी सर्वदा प्रिय रही है और उसने हमेशा ही अपने आदर्श का संरक्षण किया है। आज अनेक भारतीय महिलाएँ पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति में भागीदार बन रही हैं। उनका कार्यक्षेत्र कार्पाेरेट सेक्टर हो या खेल, फिल्म हो या राजनीति, साहित्य हो या पत्रकारिता। देश में महिलायें रेल, बस, ट्रक, टैक्सी, हवाई जहाज चलाते देखी जा सकती हैं।
आइए समाचार सच आपको एक मुलाकात शीर्षक में एक ऐसी महिला से मिलाने जा रहा है जो हल्द्वानी में ई-रिक्शा चलाकर महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गयी है। उक्त 35 वर्षीय महिला को गुड्डी नाम से जाना जाता है। गुड्डी किराये के इस ई-रिक्शा के माध्यम से बीमार पति, सास-ससुर व बच्चों का भरण -पोषण कर रही हैं। बड़े दिल की मिसाल पेश करने वाली गुड्डी का कहना है कि अगर कोई महिला आत्मनिर्भर बनना चाहती है तो वह उससे आकर मिले, वह उसको निःशुल्क ई-रिक्शा चलाना सिखायेंगी। समाचार सच के संपादक अजय चौहान और मोटिवेशनल स्पीकर कुलदीप सिंह ने उनकी जुबानी सुनी सब्जी बेचने से लेकर ई-रिक्शा चलाने तक का सफर, जिसके एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के कुछ मुख्य अंश:
गुड्डी आपके ई रिक्शा चलाने की शुरुवात कैसे हुई?
मैं पहले गलियों में घूम-घूम कर सब्ज़ी बेचा करती थी। एक दिन लालडाँठ में मुझे हीरालाल जी मिले। उन्होंने दो दिन मुझे सब्जी बेचते हुए देखा पर वे कुछ बोले नहीं लेकिन तीसरे दिन उन्होंने मुझसे बोला कि तुम ये सब्ज़ी बेचने का काम बंद कर दो। मैं जो तुम्हे काम बताऊँ वो करो और जीवन में आगे बढ़ो। उन्होंने मुझे ई रिक्शा सीखने को बोला। तो मैंने उनसे कहा कि मैंने तो कभी साइकिल नहीं चलाई है ई रिक्शा कहाँ से चलाऊंगी? उन्होंने कहा कि आपके अंदर मुझे जज्बा दिख रहा है आप कुछ भी कर सकते हो।
आपने ई रिक्शा चलाना कैसे सीखा?
हीरालाल जी ने अपने परिचित के ई रिक्शा पर मुझे बैठाया जिसमें चार सवारियाँ भी बैठी थी और मुझे चलाने को कहा। मैंने करीब एक किलोमीटर तक चलाया। मेरे हाथ कॉप रहे थे। मुझे डर लग रहा था। हीरालाल जी ने मुझसे कहा कि आप अपनी पूरी सब्जियां बेच लो फिर मैं आपको ई रिक्शा चलाना सिखाऊंगा। फिर मैंने दस दिन में ई रिक्शा चलाना सीखा।
फिर आपने अपना ई रिक्शा चलाना कब शुरू किया?
मैंने सबसे पहले अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में रानी मेस्सी दीदी ने मेरी बहुत मदद की। मेस्सी दीदी तो मेरी जिंदगी है। ई रिक्शा मेरा खुद का नहीं है। मुझे रोज अपने मालिक को ई रिक्शा का किराया देना पड़ता है। मुझे आज दो साल हो गए हैं ई रिक्शा चलते हुए और मैं प्रतिदिन 400-500 रुपये कमा लेती हूँ।
जब आप पहले दिन ई रिक्शा लेकर रोड पर निकली तो उस दिन का अनुभव कैसा था?
दिल अंदर से धक हो रहा था। परिवार वाले भी नाराज हो रहे थे। वे बोल रहे थे कि ये काम आप कर नहीं पाओगे। आप एक्सीडेंट कर लोगे। आपका मज़ाक बन जाएगा। मेरा पति और बेटा उस समय मेरे बहुत ही खिलाफ थे। लेकिन एक बार मैंने हिम्मत जुटा दी तो फिर मैं पीछे हटी नहीं।
उस दिन आपको कितनी सवारियाँ मिली और उन्होंने आपसे क्या कहा?
काफी सवारियाँ मिली। किसी ने मुझे पीठ थपथपाकर शाबाशी दी तो किसी ने मुझे इनाम भी दिया। कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हो। आप महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हो। महिलाएं अब किसी पर आश्रित नहीं हैं। वे भी अपना स्वरोजगार कर सकती हैं।
आपको लोगों से जो भरपूर प्यार व प्रोत्साहन मिला तो आपको कैसा लगा?
ये सब सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा और लोगों का प्यार देखकर मुझे रोना आ जाता था। अगर कोई महिला ई रिक्शा चलाना चाहती है तो मैं उसे निःशुल्क सिखाऊंगी। कोई फ़ीस नहीं लूंगी। मेरा मोबाइल नंबर 9837358960 है।
जो महिलाएं जिंदगी में जल्दी हार मान लेती हैं या ऐसा सोचती हैं कि वो नहीं कर पाएंगी उनके लिए कोई संदेश?
जिंदगी में कभी हार नहीं मानना चाहिए। आज के जमाने में महिलाएं किसी से कम नही हैं। मेहनत से आप कुछ भी कर सकती हैं।
जब भी कोई महिला समाज में कोई ऐसा काम शुरू करती है जिस क्षेत्र में लगभग पुरुषों का ही आधिपत्य होता है तो उसको बहुत विरोध झेलना पड़ता है। इस पर आप क्या कहेंगी?
मुझे भी लोगों ने बहुत रोकने की कोशिश की लेकिन मैं नहीं रुकी। मैंने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए मेहनत की। अपनी हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ना चाहिए। हिम्मत है तो सबकुछ है जो इंसान हिम्मत हार गया वो किस काम का रह गया।
क्या आपके साथ ई रिक्शा चलाते हुए कोई छेड़छाड़ की घटना हुई?
नहीं। कोई अगर मुझे गलत प्रवर्त्ति का आदमी लगता है तो उसे मैं बिना पैसे लिए अपनी गाड़ी से नीचे उतार देती हूँ।
अगर किसी सवारी के पास पैसे नहीं है तो आप क्या करती हैं?
जो बुजुर्ग सुशीला तिवारी अस्पताल से आ रहे होते हैं उन्हें मैं अपने रिक्शा में बैठा लेती हूं और कोई पैसा भी नहीं लेती। उनकी दुआ मेरे लिए वो काम करती है जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है।
आप रोज कितनी देर ई रिक्शा चलाती हैं?
मैं सुबह 9 बजे से शाम को 7ः30 बजे तक रिक्शा चलाती हूँ।
मैं मुख्यतः कालाढूंगी चौराहे से रामपुर रोड पर अपना ई रिक्शा चलाती हूँ।
आप कहाँ की रहने वाली हैं तथा आपके परिवार में कितने लोग हैं?
मैं पीलीभीत की रहने वाली हूँ। मेरी चार बेटियाँ हैं जिनकी शादी हो चुकी है। मेरे सास-ससुर हमेशा बीमार रहते हैं। पति का भी एक्सीडेंट हो गया था और उनके दिमाग में फ्रैक्चर है। इसलिए वो काम नहीं कर पाते हैं।
आपने शिक्षा कहाँ तक प्राप्त की है?
मैंने एक भी क्लास नहीं पड़ी है क्योंकि मेरे पिता जी की मृत्यु बहुत जल्दी हो गयी थी। मेरी माँ ने बड़ी मुश्किलों से हम पाँच भाई-बहनों को पाला है।
क्या आपको अपने इस काम के लिए कभी कोई सम्मान भी मिला है?
जी। मुझे हल्दूचौड़, रुद्राक्ष, गोरापड़ाव और गौलापार में विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। गोरापड़ाव का सम्मान मुझे यातायात प्रभारी मोहन सिंह डोभाल जी ने दिलवाया।
समाज से आपकी क्या उम्मीद है?
लोग मुझे प्रोत्साहन देते हैं तो मुझे अच्छा लगता है। यातायात महिला सिपाही नूतन दीदी जब भी मुझे मिलती है तो गले से लगा लेती है। मुझे ऐसा भी लगता है कि मुझे भी ऐसी माँ ने जन्म दिया है कि मैं कुछ कर सकती हूँ।
अगर कोई मुझे अपना खुद का ई रिक्शा दिला देता तो मेरी जिंदगी और बेहतर बन जाती। जिससे ना केवल मैं अपनी बल्कि अपने और साथियों की भी जिंदगी बेहतर बनाने में मदद करती।
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