बीस साल में भी नहीं रूका पलायन

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समाचार सच, हल्द्वानी (धीरज भट्ट)। अलग राज्य के निर्माण के पीछे पलायन भी कहीं न कहीं एक मुद्दा रहा लेकिन पिछले बीस साल का रिकार्ड देखा जाये तो पलायन रूकने का नाम नहीं ले रहा है। आलम यह है कि पहाड़ के अनेक लोग अपने देवी-देवताओं को वहां से शहरों में ही ले आये हैं। यही हाल हमारे कर्णधारों का है। अधिकतर जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जो प्रतिनिधि तो पहाड़ के हैं लेकिन देहरादून या हल्द्वानी जैसे आरामतलब शहरों में बस चुके हें। हां चुनाव लड़ने के लिए वे पहाड़ चले जाते हैं।
गौरतलब है कि राज्य में पलायन का मुद्दा नया नहीं है बल्कि यह राज्य बनने से कहीं देखा जाये तो अविभाजित यूपी के दौरान से ही पहाड़े से रोजगार के लिए पलायन शुरू हुआ जो आज भी बदस्तूर जारी है। बुजुर्ग बताते हे कि देश आजाद होने के बाद जब देश में औद्योगिकरण का दौर चला तो उस समय के युवाओं ने रोजगार के लिए शहरों का तरफ रूख किया और वे हमेशा के वहीं के होकर रह गये। ऐसे ही एक चन्द्रदत्त जोशी हैं जो साठ के दशक के शुरूआत में दिल्ली चले गये थे और अब वे वहीं के होकर रहे गये हैं। पहाड़ कभी शादी या जागर लगाने के लिए आते ही हैं। जब वे पहाड़ नहीं आ रहे हैं तो नयी पीढ़ी से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं।
अविभाजित यूपी के दौरान से ही पहाड़ों में तत्कालीन सरकारों ने वहां पर रोजगार सृजन के लिए वहां पर स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए बेहतर प्रयास किये हाते तो ये स्थिति नहीं आती। यह एक कड़वी सच्चाई यह है कि आज भी पहाड़ के अनेक गांव ऐसे हैं जहां पर सड़क मार्ग न होने के कारण वहां से मरीजों को निकटतम सड़क मार्ग तक डोली या डंडो में बांधकर लाया जाता है। इसके अलावा दूर-दराज के गांवों में जंगली जानवरों का आतंक भी बढ़ते जा रहा है। अलग राज्य के बन जाने के बाद भी अनेक लोग गुलदार या बाघ का शिकार न चुके हैं। इधर लग रहा था कि अलग राज्य बन जाने के बाद पलायन पर रोक लगेगी लेकिन अगर पिछले बीस साल का रिकार्ड और पलायन आयोग का रिकार्ड देखा जाये तो इसमें निराशा ही हाथ लगेगी। राज्य के वर्तमान सीएम का यह प्रयास सराहनीय कहा जायेगा कि उन्होंने पहाड़ से पलायन के बारे में व कारण जानने के लिए पलायन आयोग का गठन तो किया। हालांकि पलायन को एक या दो दिन में नहीं रोका जा सकता लेकिन इस ईमानदारी से नीति बनायी जाये तो इस पर अंकुश लगाया जा सकता है।
इधर वहीं उन नेताओं को भी सबक लेने की आवश्यकता है जो पहाड़ से चुनाव लड़ते आ रहे है लेकिन वहां रहने नहीं। आज हल्द्वानी की बात ही करें तो यहां पर लगभग कुमाऊँ मंडल के ही अधिकत नेता अपना घर बना चुके हैं या किराये पर रह रहे हैं।

दाज्यू ऐसे में कैसे रूकेगा पलायन
हल्द्वानी।
चन्द्रपुर (चीचों) जैसे गांव में आज से तीन-चार साल पहले ही विद्युत पहुंची है। सुविधाओं के अभाव में वहां से अधिकतर लोगों ने पलायन कर दिया है। आज देखा जाये तो वहां पर आधा दर्जन लोग निवास कर रहे हैं। कुछ लोग कभी-कभार वहां पर रहने चले जाते हैं। वहां पर पहुंचने के लिए लोगों को आज भी चार किलोमीटर चलना पड़ता है। रोड के बात कब से चल रही है। यह गांव अल्मोड़ा जिले के पड़ोलिया ग्राम सभा के नगोरिया तोक में आता है।

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