झंडे जी के आरोहण के समय ध्वज दंड टूटा, कई लोगों के घायल होने की सूचना

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समाचार सच, देहरादून (संवाददाता)। दरबार साहिब में आज ऐतिहासिक 105 फीट ऊंचे झंडे जी का आरोहण किया जा रहा है। इस दौरान बारिश ने देश विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं की मुसीबत बढ़ा दी। आरोहण के अंतिम समय में बारिश के चलते लकड़ी की कैंची टूट गई। जिसके कारण ध्वज दंड टूट गया। हालात को देख महंत देवेंद्र दास जी महाराज के आह्वाहन पर व्यवस्था संभाली गई। अब शनिवार को झंडे जी के आरोहण की सूचना है।

देहरादून के ऐतिहासिक झंडा मेले के दौरान एक हादसा हो गया। झंडे जी के आरोहण के दौरान ध्वज दंड गिर गया और टूट गया। इस हादसे से भगदड़ मच गई। इसमें कई लोगों के घायल होने की सूचना है। दरबार साहिब में आज ऐतिहासिक 105 फीट ऊंचे झंडे जी का आरोहण किया जा रहा था। इस दौरान बारिश ने देश विदेश से पहुंचे श्रद्धालुओं की मुसीबत बढ़ा दी। आरोहण के अंतिम समय में बारिश के चलते लकड़ी की कैंची टूट गई, जिसके कारण झंडे जी का ध्वज दंड नीचे गिर गए। वहीं, झंडे जी के नीचे दबने से कई श्रद्धालु घायल हो गए। इस दौरान वहां भगदड़ मच गई। भगदड़ का माहौल देख महंत देवेंद्र दास जी महाराज के आह्वाहन पर व्यवस्था संभाली गई।
आध्यात्मिक गुरु आचार्य विपिन जोशी ने कहा की आज श्री गुरु राम राय दरबार में ध्वजारोहण करते समय जो एक दुर्घटना हुई है उसके बाद जो श्रद्धालु हैं उनके अंदर काफी शंकाएं, आशंकाएं और भ्रम की स्थितियां हैं और लोग इसको अनहोनी के रूप में भी ले रहे हैं। उन्होंने कहा की वे सभी से विनम्र अनुरोध करते हैं की इस को किसी भी अन्यथा रूप में लेने की जरूरत नहीं है। जिस प्रकार से मौसम की परिस्थितिया यह एकविशुद्ध दुर्घटना है और दुर्घटना कभी भी कहीं भी कैसे भी हो सकती है। गुरु राम राय जी की कृपा आप को पूर्व मिलती रहेगी। और जैसा कि सूत्रों से मालूम हुआ है कल पुनः वहां ध्वजारोहण होगा और यकीनन जो है इसको किसी भी रूप में अन्यथा में आप बिल्कुल ना लें और निश्चित रूप से गुरु राम राय जी की कृपा पूर्ववत दून, राज्य, देश और पूरी दुनिया को प्राप्त होते रहेगी। आप सभी को गुरु राम राय जी के जन्म उत्सव की खूब बधाइयां।

झंडे का 400 साल से पुराना हैं इतिहास

महापुरूषो की श्रृंखला में श्री गुरू राम राय जी महाराज अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं उनका इतिहास 400 साल वर्षाे से भी पुराना है। श्री गुरू राम राय जी सातवीं पातशाही (सिक्खो के सातवें गुरू) श्री गुरू हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म संवत् 1703 विक्रमी (सन् 1646) की चैत्र वदी पंचमी, मंगलवार, (होली के पांचवे दिन) को कीरतपुर, कोट, हर राय जिला होशियारपुर (अब रोपड) पंजाब में हुआ था। इनकी माता का नाम कोट कल्याणी था। जिन्हें उनके सुंदर लक्ष्णों के कारण माता सुलक्खिणी भी कहा जाता था। वे अनूप शहर निवासी क्षत्रिय परिवार के श्री माया राम जी की पुत्री थी। श्री माया राम जी के छोटे भाई श्री दयाराम जी ने गुरू श्री हर राय जी के प्रभाव और महानता को देखते हुए अपनी पुत्री कृष्णा कोर का विवाह श्री हर राय जी से कर दिया था। माता कोट कल्याणी का स्वभाव बड़ा सरल व उदार था। वह संतो कीसेवा में लगी रहती और शिव जी की उपासक भी थी। श्री गुरू राम राय जी के खुडबुडा में डेरा डालने के विषय में वर्णन है कि श्री गुरू राम राय जी अपने पिता श्री गुरू हर राय जी से विदा होकर तपस्या करने के लिए हिमालय की उपत्यका में पहुंचते हैं। संध्या के समय तीसरे पहर जब वह खुडबुडा ग्राम से होकर जा रहे थे, एकाएक उनका घोड़ा एक स्थान पर रूक गया। सेवको ने पूछा, ‘‘महाराज क्या बात है? आप आगे क्यों नहीं बढ़ते?’’ इस पर श्री गुरू जी बोले, ‘‘घोड़ा आगे नहीं बढ़ता। अच्छा आज यही डेरा जाए।’’ श्री गुरू जी वहीं घोड़े से उतर गए। वहां उसी समय उन्होने अपनी धर्म ध्वजा फैहरायी तथा प्रार्थना अरदास करने के बाद सेवको को वहां विश्राम करने का आदेश दिया। श्री गुरू जी ने अपना धनूष उठाकर चारो दिशाओ में चार तीर छोडेे और जहां तक वह तीर पहुंचे वहां तक सेवको ने उस जंगल में श्री गुरू जी के डेरे की सीमा समझकर विश्राम भूमि बनायी। यह स्थान बड़ा स्वच्छ तथा निर्मल था। तपस्या और भजन के अनूकुल था। अतः श्री गुरू जी ने यही सोचा कि यहां ठहर कर कुछ दिन विश्राम किया जाए। पंजाब प्रदेश में निवास करने वाले श्री गुरू जी के शिष्य वर्ग को जब यह समाचार मिला कि गुरू जी हिमालय की तराई में तपस्या कर रहे हैं तो वह बड़ी संख्या में यहां आकर उनके दर्शन करने लगे। लोग पैदल चलकर यहां आते और महीनों गुरू जी के पास ठहरकर भजन, पाठ कर अपना जीवन सफल बनाकर वापस स्वदेश लौट जाते थे। जब औरंगजेब को यह पता लगा कि श्री गुरू राम राय जी ने वैराग्य पूर्ण दशा में लाहौर छोड़ दिया और संवत् 1733 (सन् 1676) में वे दून घाटी आ गए तो उन्होने गढ़वाल के तत्कालीन राजा फतेहशाह को उनकी हर संभव सहायता करने को कहा। राजा फतेहशाह जो स्वयं भी साधू, महात्माओ के भक्त थे बहुमूल्य वस्तुएं उपहार लेकर श्री गुरू राम राय जी के दर्शनो के लिए गए और उनसे प्रभावित होकर उनसे सदैव यही रहने की प्रार्थना की। उसी समय राजा ने उन्हें तीन गांव खुडबुडा, राजपुर और चामाशारी दान दे दिए। उसके बाद राजा फतेहशाह के पूते प्रदीप शाह ने चार और गांव धामावाला, मियांवाला, पंडितवाडी और छरतावाला गुरू महाराज को दे दिए। दून में श्री गुरू राम राय जी के डेरा स्थापित करने से इसे डेरा दून कहा जाने लगा। कालांतर में इसका नाम देहरादून हो गया। उन्होने अपने जीवन का अधिकांश समय यही व्यतीत किया। धामावाला में एक गुरूद्वारा, मंदिर स्थापित किया गया। वर्तमान भवन (दरबार साहिब) का निर्माण कार्य बाद में संवत् 1764 की मिति अस्सू वदी अष्टमी सोमवार सन् 1707 को सम्पन्न हुआ। उसी वर्ष औरंगजेब की मृत्यु भी हुयी। श्री गुरू राम राय जी की चार विवाहित रानियां थी। माता मलूकी देवी, माता राजकौर (सुरूपी देवी) माता लाल कौर और माता पंजाब कौर। बताया जाता है कि एक बार किसी दुखी के दुख को दूर करने के लिए अपना शरीर माता पंजाब कौर की देख रेख में यह कहकर गुरू महाराज रख गए कि लगभग 10 दिनो तक वे बाहर रहेंगे और उनके शरीर केा कोई हाथ न लगाए। कमरे के बाहर से माता पंजाब कौर ने ताला लगा दिया। दर्शनार्थियो से वे कह देती थी कि गुरू महाराज बाहर गए हैं पर लोग दर्शन के लिए रूकने लगे और भीड़ बढ़ती गयी। संगत ने इस बात का अनुरोध किया कि कमरा खोलकर गुरू महाराज के दर्शन कराये जायें। कुछ लोगो ने कमरे में झांक कर देखा और गुरू महाराज को लेटा पाया। कमरा जबरदस्ती खोल डाला और पाया कि उनकी तो सांस भी नहीं चल रही है। लोगो ने अंतेष्टी की तैयारी कर दी। भीड़ भरे उस वातावरण में माता पंजाब कौर कुछ नहीं कर सकी और देखते देखते गुरू महाराज का शरीर चिता पर रख दिया गया। गुरू महाराज आये और उन्होने अपने शरीर को जलते देखा तो उसी आग में समा गए। इस प्रकार भाद्र सुदी 8 संवत् 1744 (4 सितम्बर 1687) को वे परमात्मा का ध्यान करते हुए परमात्मा में ही लीन हो गए। तब से गुरू महाराज की आत्मा को अमर मानते हुए संगत समाधि की सेवा करती है। लोग अपनी मनोकामना पूर्ण कराने और माथा टेकने आते हैं। यह भी कहा जाता है कि माता पंजाब कौर ने श्री दरबार साहिब की सम्पत्ति की व्यवस्था बहुत अच्छी तरह की और देहरादून और चुवच्चा साहिब में उदासीन मत के दो महात्माओ को उनका महंत नियुक्त किया। श्री गुरू राम राय जी की कोई संतान नहीं थी अतः यहां से संबंधित सभी डेरो की देखभाल व व्यवस्था माता पंजाब कौर देहरादून से करती थी। उन्होने श्री गुरू महाराज की इच्छानुसार व उनके उद्देश्यो की पूर्ति के लिए श्री दरबार साहिब देहरादून को लोक सेवा और लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने लगभग 40 वर्षाे तक दरबार साहिब का कार्य संचालन किया। उन्होने यह पंरम्परा स्थापित की कि श्री गुरू राम राय दरबार साहिब के महंत सदैव नैष्ठिक ब्रहमारी ही होंगे गृहस्थ नही। प्रतिवर्ष गुरू महाराज के जन्म दिवस चैत्र वदी पंचमी (कृष्ण पक्ष) को प्रतिवर्ष झंडे जी चढ़ाये जाते हैं। झंडे जी की ऊंचाई लगभग 100 फीट होती है जिसके ऊपर मोर पंख और चंवर लगाया जाता है। बड़ी संख्या में गिलाफ, वस्त्र, रूमाल भी चढ़ाये जाते हैं। यह परम्परा भी माता पंजाब कौर के समय से चली आ रही है।

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