हनुमान जयंती 16 अप्रैल : उत्तराखंड में है वह जगह, जहां से हनुमान जी लक्ष्मण के लिए ले गए संजीवनी बूटी का …

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। शनिवार, 16 अप्रैल को श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी की जयंती है। हनुमान जी का जन्म त्रेता युग में केसरी और अंजनी के यहां हुआ था। माता सीता ने उन्हें अजर-अमर होने का वरदान दिया था। इस वरदान की वजह से हनुमान ही हमेशा जीवित रहेंगे और उन्हें कभी भी बुढ़ापा नहीं आएगा। हनुमान जी से जुड़ी कई ऐसी जगहें हैं, जिनका संबंध रामायण काल से है।

जब श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था। उस समय मेघनाद ने एक दिव्यास्त्र से लक्ष्मण पर प्रहार किया था, उसकी वजह से लक्ष्मण मुर्छित यानी बेहोश हो गए थे। तब लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय क्षेत्र में पहुंचे थे।

जिस जगह हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने पहुंचे थे, वह जगह उत्तराखंड में है। उत्तराखंड के चामोली जिले में जोशीमठ शहर से लगभग 50 किमी दूर द्रोणगिरी पर्वत है। ये नीति गांव में है। गांव में मान्यता प्रचलित है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचानते नहीं थे। इस कारण वे द्रोणगिरी पर्वत का एक बड़ा हिस्सा उखाड़कर ले गए थे। नीति गांव के लोग इस पर्वत की पूजा करते हैं।

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बद्रीनाथ से 45 किमी दूर है द्रोणगिरी पर्वत

द्रोणगिरी पर्वत बद्रीनाथ धाम से लगभग 45 किमी दूर स्थित है। आज भी द्रोणगिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ दिखाई देता है। इस संबंध में माना जाता है कि पर्वत के ऊपर का कटा हिस्सा हनुमान जी उखाड़कर लंका ले गए थे।

ट्रैकिंग के लिए युवाओं की पसंद है द्रोणगिरी पर्वती

  • द्रोणगिरी पर्वत की ऊंचाई करीब 7 हजार मीटर है। ठंड के दिनों में कभी-कभी यहां बर्फबारी भी होती है। इस वजह से शीतकाल में गांव के लोग ये जगह छोड़ देते हैं और दूसरी जगह रहने चले जाते हैं। ये पर्वत काफी ऊंचाई पर है, इस कारण यहां ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग आते हैं।
  • गर्मी के दिनों में यहां का मौसम बहुत ही सुहावना हो जाता है। गर्मी के दिनों में यहां काफी पर्यटक पहुंचते हैं। चमोली जिले में जोशीमठ से लगभग 50 किलोमीटर आगे जुम्मा नाम की एक जगह है। यहीं से द्रोणगिरी पर्वत के लिए पैदल मार्ग शुरू होता है।
  • इस क्षेत्र में धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ पर्वतों की श्रृंखला दिखाई देती है, इन पर्वतों को पार करने के बाद द्रोणगिरी पर्वत पहुंच सकते हैं। इस पहाड़ी क्षेत्र में करीब 10 किमी का रास्ता पैदल ही पार करना होता है।
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