हरियाली तीज : सावन के झूले झूलने की परंपरा, सुहागनों और कन्याओं के लिए पर्व होती है सावन की ये तीज

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। हरियाली तीज 31 जुलाई, रविवार को है। इस दिन वरीयान और रवियोग होने से व्रत-पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा। सावन के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि होने से इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है। इस तिथि की स्वामी गौरी यानी देवी पार्वती हैं। इस कारण सुहागन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए ये बहुत ही खास त्योहार होता है। इस दिन सौलह श्रंगार कर के भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही निर्जला यानी बिना पानी पिए व्रत रखा जाता है और अगले दिन व्रत खोला जाता है।

इस दिन सूर्याेदय से पहले उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लिया जाएगा। फिर मेहंदी लगाने और झूला झूलने की परंपरा भी इसी दिन पूरी की जाएगी। इसके बाद पूरे दिन व्रत-उपवास रखने के बाद शाम का प्रदोष काल में भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाएगी।

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पौराणिक मान्यता: पार्वती जी ने की थी तपस्या
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। पार्वती का कठोर तप देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि हरियाली तीज के दिन ही शिव जी ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। यही वजह है कि इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अंखड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है।

झूला झूलाने की परंपरा
हरियाली तीज पर सुहागिनें हरे रंग का इस्तेमाल ज्यादा करती हैं। ये प्रकृति की समृद्धि और समृद्ध जीवन का प्रतीक रंग है। वे हरे रंग की चूड़ियां और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं। इस दौरान महिलाएं सोलह शृंगार कर हाथों में मेहंदी लगाती हैं। नवविवाहित वधू यह पर्व मायके में मनाती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति की मंगल कामना करती हैं। हरियाली तीज के मौके पर खासतौर से पूजा-पाठ के बाद महिलाएं एक-दूसरे को झूला झुलाती हैं। इस दौरान सावन के गीत भी गाए जाते हैं।

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इस दिन क्या करें

  1. सुबह उठकर स्नान-ध्यान करें। स्वच्छ होकर पूजा का संकल्प लें।
  2. पूजा स्थल के पास साफ-सफाई कर साफ मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति बनाएं।
  3. पूजा स्थल पर लाल कपड़े के आसन पर बैठें।
  4. पूजा की थाली में सुहाग की सभी चीजों को रखकर विधि-विधान के साथ भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित करें।
  5. पूजा के क्रम में तीज कथा और आरती की जाती है।

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