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जानिए क्या हैं उत्तराखंड में मनाया जाने वाला इगास बग्वाल (बूढ़ी दिवाली)

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समाचार सच। पूरे देश में दीपावली बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। और पुरानी कथाओं की माने तो इसका कारण इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या आये थे। इसी खुशी में दीपावली मनाई जाती है। और बात करे उत्तराखंड की तो यहां भी पूरे देश की तरह ही उसी दिन दीपावली मनाई जाती है और इसे उत्तराखंड की पारंपरिक भाषा में बग्वाल नाम से जाना जाता हैं। और इसी के साथ हम आपको बता दे की उत्तराखंड में इसी तरह एक और त्योहार मनाया जाता है, जो की बग्वाल (दीपावली) से ठीक 11 दिनों बाद मनाया जाता है।

उत्तराखंड में इगास (बूढ़ी दिवाली) क्यों मनाई जाती है-
इगास बग्वाल (कणसी दिवाली)-
उत्तराखंड में दिवाली के 11 दिन बाद फिर से एक दिवाली मनाई जाती जिसे इगास बूढ़ी दीवाली कहते। 11 दिन बाद फिर से ये त्यौहार मानने के पीछे कई कहानी है जो कि इस प्रकार हैं।
माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच बग्वाल का त्यौहार भी था कोई भी इस त्यौहार तक वापिस ना आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और सेना युद्ध में शहीद हो गए है लेकिन बग्वाल से 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापिस आए। जिनके आने की ख़ुशी में लोगों ने फिर से बग्वाल मनाई। उसे ही इगास के नाम से जाना जाता हैं।

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एक मान्यता के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि प्रभु श्री राम जी जब 14 वर्ष बाद लंका फतह करके वापिस दिवाली के दिन अयोध्या आये थे। तो उत्तराखण्ड के पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र के लोगो को इसकी जानकारी 11 दिन बाद पता चली जिस कारण उन्होंने 11 दिन बाद दिवाली मनाई थी। आज ही के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से हुवा था।

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एक और मान्यताओं के अनुसार-
ऐसी ही कथा है कि चंबा का रहने वाला एक व्यक्ति भैलो बनाने के लिए लकड़ी लेने जंगल गया था और ग्यारह दिन तक वापस नहीं आया उसके दुख में वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई जब वो व्यक्ति वापस लौटा तभी ये पर्व मनाया गया और लोक खेल भैलो खेला तब से इगास बग्वाल के दिन दिवाली मनाने और भैलो खेलने की परंपरा शुरू हुई।

उत्तराखंड में इगास बग्वाल कितनी बार होती हैरू-
उत्तराखंड गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं-
पहली बग्वाल कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है।
दूसरी बग्वाल अमावस्या को पूरे देश की तरह उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ में भी अपनी लोक परंपराओं के साथ मनाई जाती है।
तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल (दिवाली) के ठीक 11 दिन बाद आने वाली कर्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को उत्तराखंड गढ़वाल में मनाई जाती है। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं, इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है।

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चौथी बग्वाल आती है, दूसरी बग्वाल या बड़ी बग्वाल के ठीक एक महीने बाद मार्गशीष माह की अमावस्या तिथि को इसे रिख बग्वाल कहते हैं, यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती हैं।

इगास बग्वाल वाले दिन सभी लोग अपने घरों की साफ़- सफाई लिपाई करते है, सुबह – सुबह मीठे पकवान बनाते हैं, गाय-बैलों की पूजा की जाती हैं। और शाम को लकड़ी के गट्ठर को जलाकर भेलो नामक नृत्य करते हैं। और साथ ही अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों (ढोल दमाऊं ) के साथ देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं। और नाच गाना करते हैं।

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