समाचार सच, आस्था डेस्क। लोहड़ी पंजाबियों का तो मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस बार इन दोनों ही त्योहारों की तारीखों को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है। आमतौर पर लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी तो मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। लेकिन इस बार सूर्य का गोचर 15 जनवरी को मकर राशि में होने के कारण 15 को मकर संक्रांति तो 14 जनवरी को लोहड़ी मनाई जायेगी। तो वहीं कुछ लोग 13 जनवरी को ही लोहड़ी और 14 को मकर संक्रांति मनायेंगे।
14 को लोहड़ी और 15 को मकर संक्रांति क्यों मनाएं? हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2020 में लोहड़ी पर्व की तारीख 14 जनवरी तो मकर संक्रांति की तारीख 15 जनवरी है। ऐसा क्यों है इसके लिए हमे ये समझना होगा कि मकर संक्रांति कब मनाई जाती है। पूरे साल में कुल 12 संक्रांति पड़ती हैं जिनमें मकर संक्रांति का ही सबसे अधिक महत्व माना गया है। जब-जब सूर्य अपनी राशि बदलता है उस दिन संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस बार सूर्य का मकर राशि में गोचर 15 जनवरी को 02.22 ए एम पर हो रहा है। जिस वजह से 15 जनवरी को ये पर्व मनाया जायेगा। तो वहीं लोहड़ी संक्रांति से एक दिन पहले मनाए जाने के कारण पंचांग में सिखों के इस पर्व की तारीख 14 जनवरी है।
क्यों मनाया जाता है लोहड़ी पर्व? पंजाब का पारंपरिक त्योहार उत्तराखण्ड, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू कश्मीर और हिमांचल में मुख्य तौर पर मनाया जाता है। इस पर्व को लोग नाच गाकर सेलिब्रेट करते हैं। पंजाब में ये पर्व फसलों की कटाई और नई फसल की बुआई से जोड़ा जाता है। इस दिन लोग ईश्वर का आभार प्रकट करते हैं ताकि उनकी आने वाली फसल अच्छी रहे और घर में सुख और समृद्धि बनी रहे। इस दिन लोग आग जलाकर अपनी रवि की फसलों को उसमें अर्पित करते हैं। लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की कहानी से भी जोड़ा जाता है। दुल्ला भट्टी जो मुगल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीर लोगों को बेचा जाता था। दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न केवल छुड़ाया बल्कि उनकी शादी भी करवाई।
मकर संक्रांति क्यों मनायी जाती है? हिंदू धर्म में वर्ष को दो भागों में बांटा गया है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं। यही एकमात्र ऐसा पर्व है जिसे पूरे भारत में मनाया जाता है, बस इस पर्व का नाम और मनाने के तरीके अलग अलग होते हैं। शास्त्रों में इस दिन पर स्नान, ध्यान और दान करने का विशेष महत्व है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपना देह त्यागने के लिए भी मकर संक्रांति का दिन ही चुना था।


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