वट सावित्री व्रत आज, बरगद के पेड़ में क्यों बांधा जाता है कच्चा सूत? जान ले

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री का व्रत विशेष रखता है। पति की लंबी आयु के लिए विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं। वट सावित्री के दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। साथ ही माता सावित्री की कथा सुनी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, वट सावित्री का व्रत रखने से पति के ऊपर मंडरा रही हर संकट टल जाती है और दांपत्य जीवन भी सुखमय, खुशहाल बना रहता है।

हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन सावित्री व्रत किया जाता है। इस साल पति की दीर्घायु के लिए सुहागिन महिलाएं 6 जून 2024 को वट सावित्री का व्रत रखेंगी। इस व्रत में वट वृक्ष की परिक्रमा की जाती है और उसमें 7 बार कच्चा सूत बांधा जाता है। तो आइए जानते हैं कि इसका क्या धार्मिक महत्व है।

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वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ में कच्चा सूत क्यों बांधा जाता है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वट सावित्री व्रत के दिन बरगद पेड़ की विधिपूर्वत पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। सुहागिन महिलाएं वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ की पूजा के साथ उसकी सात बार परिक्रमा करती हैं। इसके अलावा व्रती महिलाएं बरगद के पेड़ में सात बार कच्चा सूत भी लपेटती हैं। कहते हैं कि वट वृक्ष में सात बार कच्चा सूत लपेटने से पति-पत्नी का संबंध सात जन्मों तक बना रहता है। वट सावित्री के दिन बरगद पेड़ में कच्चा सूत क्यों बांधा जाता है? मान्यताओं के मुताबिक, बरगद के पेड़ पर कलावा बांधने से अकाल मृत्यु जैसे योग टल जाते हैं।

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वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने माता सावित्री के पति सत्यवान के प्राणों को वट वृक्ष के नीचे ही लौटाया था और उन्हें 100 पुत्रों का वरदान दिया था। कहा जाता है कि उसके बाद से ही वट सावित्री व्रत और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दिन दिन बरगद पेड़ की पूजा करने से यमराज देवता के साथ त्रिदेवों की भी कृपा प्राप्त होती है।

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