समाचार सच. अध्यात्म डेस्क। रूद्राक्ष को भगवान शिव की आँख कहा जाता है। एक धार्मिक विश्वास के मुताबिक त्रिपुर नामक दैत्य को मारने के लिए भगवान शंकर ने जब कालाग्नि नामक शस्त्र धारण किया, तभी अश्रुपात होने से रूद्राक्ष की उत्पत्ति बताई गई है।
रूद्राक्ष एक अत्यन्त विचित्र वृक्ष है। संसार में यही एक ऐसा फल है, जिसे खाया नहीं जाता, बल्कि गूदे को निकालकर उसका बीज धारण किया जाता है। यह एक ऐसा काष्ठ है, जो पानी में डूब जाता है। पानी में डूबना दर्शाता है कि इसका आपेक्षित घनत्व अधिक है। इसमें लोहा, जस्ता, निकल, मैंगनीज, एल्युमोनियम, फास्फोरस, कैल्शियम, कोबाल्ट, पोटेशियम, सोडियम, सिलिका, गन्धक आदि तत्व होते हैं। रूद्राक्ष का मानव शरीर से स्पर्श महान गुणकारी बतलाया गया है। इसकी महत्ता शिवपुराण, महाकाल संहिता, मन्त्रमहार्णव, निर्णय सिन्धु, वृहजज्जाबालोपनिषद, लिंगपुराण व कालिपुराण में स्पष्ट बतलाई गई है।
चिकित्सा क्षेत्र में भी रूद्राक्ष काविशद वर्णन मिलता हैं दाहिनी भुजा पर रूद्राक्ष बांधने से बल व वीर्य शक्ति बढ़ती हैं वात रोगों का प्रकोप कब होता है। कण्ठ में धारण करने से गले के समस्त रोग दूर हो जाते हैं, टांसिल नहीं बढ़ता। स्वर का भारीपन भी मिटता है। कमर में बांधने से कमर का दर्द समाप्त हो जाता है। शुद्ध जल में तीन घंटे रूद्राक्ष को रखकर, उसका पानी किसी अन्य पात्र में निकल कर पीने से बेचैनी, घबराहट, मिचली व आंखों की जलन रोकने के लिए किया जा सकता है। दो बूंदे रूद्राक्ष का जल दोनों कानों में डालने से सिर दर्द से आराम मिलता है। रूद्राक्ष का जल हृदय रोग के लिए भी लाभकारी होता है। चरणामृत की तरह प्रतिदिन दो घूंट इस जल को पीने से शरीर स्वस्थ रहता है। अन्य बहुत से रोगों का उपचार रूद्राक्ष से आयर्वेद में वर्णित हैं।
रूद्राक्ष प्रायः तीन रंगों में पाया जाता है। लाल, मिश्रित लाल व काला। इसमें धारियां बनी रहती हैं। इन धारियों को मुख कहा गया है। एकमुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक रूद्राक्ष होते हैं। वर्तमान में चौदहमुखी तक रूद्राक्ष उपलब्ध है। रूद्राक्ष के एक ही वृक्ष से कई प्रकार के रूद्राक्ष मिलते हैं। एकमुखी रूद्राक्ष को साक्षात शिव का स्वरूप कहा गया है। सभी मुख वाले रूद्राक्षों का अलग – अलग फल एवं धारण करने की विधियां बतलाई गई हैं।
राशि के हिसाब से भी रूद्राक्ष को धारण करने का महत्व दिया गया है। मेष व वृश्चिक राशि वालों को तीन मुखी, वृष व तुला राशि वालों को छह मुखी, मिथुन व कन्या राशि वालों को चार मुखी, कर्क राशि को दोमुखी, सिंह राशि वालों को एक व बारह मुखी, धनु व मीन को पांच मुखी और मकर व कुम्भ राशि वालों को सात मुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। रूद्राक्ष एक दिव्य, औषधीय एवं आध्यात्मिक वृक्ष है। इसलिए इसके धारण करने वालों को कई प्रकार की सावधानियां बरतने का उपदेश शास्त्र करते हैं। सदैव शुद्ध एवं पवित्रावस्था में ही रूद्राक्ष को धारण करने का विधान है। रूद्राक्ष का रखने का स्थल शुद्ध एवं पवित्र होना चाहिए। धुन लगा, टूटा – फूटा (खण्डित) या छीलकर बनाया गया रूद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिए। जुड़े हुए रूद्राक्ष को गौरीशंकर कहा जाता है। अर्थात शिव और पार्वती का संयुक्त रूप। जब तीन रूद्राक्ष जुड़ जाते हैं तो उन्हें ‘पाट’ कहा जाता है, अर्थात शिव, पार्वती और गणेश। इस प्रकार का रूद्राक्ष देखने का कम मिलता है।
रूद्राक्ष पर भगवान शिव के मन्त्रों का जपकर धारण करना चाहिए या शिवलिंग से स्पर्श करा कर धारण करना चाहिए। शिवलिंग से स्पर्श कराने पर रूद्राक्ष का शक्ति कमले दल खुल जाता है। रूद्राक्ष धारयेदं बुद्ध’’ के अनुसार ज्ञानी जनों को रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। (डॉ0 राजचरण उपाध्यायद्)


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