समाचार सच, हल्द्वानी। उत्तराखंड की राजनीति में अगर किसी विधानसभा सीट को वीआईपी और हाई-प्रोफाइल माना जाता है, तो उसमें लालकुंआ विधानसभा सीट का नाम सबसे ऊपर आता है। यही वह सीट है, जहां प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी अपनी राजनीतिक किस्मत आजमाई, लेकिन जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया। इस ऐतिहासिक मुकाबले में हल्दूचौड़ निवासी डॉ. मोहन सिंह बिष्ट ने सियासत के दिग्गज को करारी शिकस्त देकर पूरे प्रदेश में अपनी मजबूत पहचान बनाई।
डॉ. मोहन सिंह बिष्ट जिन्हें क्षेत्र में प्यार से ‘मोहनदा’ कहा जाता है, छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। विधायक बनने से पहले वे दुग्ध संघ के अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य जैसे अहम पदों पर रह चुके हैं। लेकिन उनकी असली ताकत पद नहीं, बल्कि जनता से सीधा जुड़ाव है।
मोहनदा केवल चुनावी नेता नहीं, बल्कि हर सुख-दुख में साथ खड़े रहने वाले जननेता के रूप में पहचाने जाते हैं। बीमारी हो, शादी-विवाह हो या कोई सामाजिक कार्यक्रम-क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा मौका हो, जहां मोहनदा की मौजूदगी न दिखे। यही वजह है कि लोग उन्हें नेता नहीं, अपने परिवार का सदस्य मानते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मोहन सिंह बिष्ट की सरलता, सहजता और हर समय उपलब्ध रहने की आदत ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। यही गुण उन्हें आम जनता के बीच बेहद लोकप्रिय बनाते हैं। राजनीति में तीन दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाले मोहनदा आज भी उतनी ही सक्रियता से क्षेत्र में दौरे करते हैं और लोगों की समस्याओं को सुनते हैं।
राजनीतिक आंकड़ों पर नजर डालें तो मोहन सिंह बिष्ट की जीत महज संयोग नहीं रही। जिला पंचायत सीट उन्होंने बंपर मतों से जीती, वहीं विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व सीएम जैसे भारी-भरकम नेता को बड़े अंतर से मात दी। यह उनकी लोकप्रियता और जनाधार का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है।
आने वाले 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर अभी भले ही एक साल से अधिक का समय बाकी हो, लेकिन मोहन सिंह बिष्ट की तैयारियां अभी से तेज़ हैं। हालांकि कुछ अन्य चेहरे भी लालकुंआ सीट पर नजरें जमाए बैठे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि मोहनदा की लोकप्रियता आज भी जगजाहिर है।
खुद मोहन सिंह बिष्ट का मानना है कि वे राजनीति को सेवा का माध्यम मानते हैं और जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करते हैं। उनका कहना है कि पार्टी समय आने पर उनके काम और समर्पण का मूल्यांकन करेगी।
लालकुंआ की सियासत में एक बात साफ है कि जहां दिग्गज लड़खड़ा गए, वहां ‘मोहनदा’ आज भी पूरी मजबूती से डटे हैं।


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