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कृष्ण जन्मोत्सव पर पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की जयकारों से गूंज उठा

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प्रभु पालनहार है, वे शरण में आये भक्त के सारे दुखों को हर लेते है: मृदुल कृष्ण शास्त्री

समाचार सच, हल्द्वानी। हरि शरणम् जन संस्था (Hari Sharanam Jan Sanstha) द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन कथावाचक मृदुल कृष्ण शास्त्री (Mridul Krishna Shastri) ने भगवान श्रीकृष्ण जन्म की कथा सुनाई। कथा प्रसंग में विशेष महोत्सव के रूप में आज श्री कृष्ण जन्म नन्दोत्सव विशेष धूम-धाम से मनाया गया। प्रभु के प्रगट होने पर गोपियाँ बधाई का सामान लेकर आई और व्यासपीठ भागवत् जी में चढ़ाया। इस दौरान जैसे ही भगवान का जन्म हुआ तो पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठा। श्रद्धालु नृत्य करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण की वेश में नन्हें बालक के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु लालायित रहे। भगवान के जन्म की खुशी पर महिलाओं द्वारा अपने घरों से लगाए गए लड्डूओं से भगवान को भोग लगाया गया।

इससे पूर्व कथावाचक परम श्रद्धेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज जी ने कहा कि भक्त के भाव को, अपने इष्ट के प्रति भक्त की आस्था को केवल प्रभु ही समझ सकते है, इसीलिए जीव को अपना दुख संसार के सामने नहीं केवल प्रभु के सामने ही प्रकट करना चाहिये। प्रभु पालनहार है, वे शरण में आये भक्त के सारे दुखों को हर लेते है।
कथा के दौरान महाराज जी ने कहा कि भगवान का परम भक्त प्रहलाद, जिसे कि पिता हिरण्यकशिपु के द्वारा अति भयंकर कष्ट दिये गये। यहाँ तक कि श्री प्रहलाद जी को विष पिलाया गया. हाथी से कुचलवाया गया. अग्नि में जलाया गया। तरह-तरह की यातनाए दी गई परन्तु श्री प्रहलाद जी हर जगह अपने प्रभु का ही दर्शन करते थे। इसलिए उन्हें कहीं भी किसी भी प्रकार की पीडा का एहसास नहीं हुआ। उन्हें विश्वास था कि हमारे प्रभु सदा-सर्वदा सर्वत्र विराजमान रहते है। तो प्रभु श्रीनृसिंह भगवान भक्त के विश्वास को पूर्ण करते हुए खम्भ से प्रगट होकर यह दिखा दिया कि भक्त की इच्छा एवं विश्वास को पूर्ण करने के लिये वह कहीं भी किसी भी समय प्रगट हो सकते है।

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आचार्य श्री ने कहा कि जीव को किसी की निन्दा स्तुति करने के बजाय भगवान की ही चर्चा करनी एवं सुननी चाहिये। प्रभु चरित्रों को श्रवण करने से भगवान का चिन्तन करने से की कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि विशाल पेड़ जिस प्रकार छोटी सी कुल्हाड़ी से कट जाता है उसी प्रकार प्रभु के चरण कमल का स्मरण करने से जीव के सारे पाप कट जाते है। इसके लिये उसे प्रभु की शरण में आना होगा। प्रभु की हर इच्छा, प्रत्येक लीला को प्रसन्नता से स्वीकार करने वाला ही सच्चा भक्त होता है। भक्त को अपने आदर सत्कार या सम्मान की कामना नहीं होती। वह तो हर कार्य प्रभु की सेवा समझकर करता है और ऐसी भावना को ही प्रभु स्वीकार करते हैं वह तो केवल भाव के भूखें हैं क्योंकि परमात्मा न तो साकार है न निराकार है वो तो भक्त की इच्छा के अनुसार तदाकार हैं। जैसे भक्त चाहता है उसे उसी रूप में प्रभु प्राप्त होते हैं।
कथा के चौथे दिन विभिन्न पार्षदों द्वारा सेवा दी गई। पार्षदों ने भक्तों को प्रसाद वितरण किया। जिसमें मधुकर श्रोतरिय, मनोज जोशी, तनमय रावत, विनोद दानी, अमित बिष्ट, राजेंद्र नेगी आदि भक्त श्रद्धालुजन मौजूद रहे।

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