समाचार सच. अध्यात्म डेस्क। मानव शरीर में ललाट को ब्रह्म रन्ध्र या ब्रह्म स्थान कहा जाता है। यह वही स्थान है, जहां से दिव्य आभा, यानी प्रकाश मिलता है। मूलाधार चक्र से यह सातवां चक्र हैं यहीं मोक्ष का स्थान भी कहा जाता है। मानव शरीर की रचना में नाड़ियों की मुख्य भूमिका हैं शरीर के मध्य नाभि प्रदेश से 707 नाड़ियां निकलती हैं। इनमें 10 नाड़ियां प्रधान हैं। इनमें से 3 जीवन चक्र को आगे बढ़ाती है। इनमें पहली नाड़ी को चन्द्र नाड़ी कहते हैं। यही प्राण वायु की द्योतक हैं चन्द्र नाड़ी का ईकार रूप ही शिव तत्व है। बाकी नाड़ी नासिका से निकलती है।
दाहिनी नासिका से निकली पिंगला नाड़ी सूर्य नाड़ी है। यह आत्मा का कारक होती है। कर्म बोध में यह नाड़ी विशेष भूमिका निभाती है। इन दोनों नाड़ियों (चन्द्र और पिंगला) का उद्गम नासिका का मूल भाग है। ब्रह्म रन्ध्र से निकलकर इनका मिलन उर्ध्वगामी सुषुम्ना नाड़ी से होता है। यहीं ललाट के मध्य में इन तीनों नाड़ियों का संगम है।
सुषुम्ना को मोक्ष दायिका नाड़ी भी कहा गया है। यहां पर सूर्य से निकलने वाली किरणों में जो सुषुम्ना किरणें चन्द्र मण्डल को प्रकाशित कर तेजमय बनाती है, वहीं ललाट की सुषुम्ना पर भी पड़ती है। इसकी तेज रश्मियों से मानव मस्तिष्क अधिक ओजस्वी या उत्तेजित हो जाता है। इसलिए ऐसी स्थिति में चन्दन का तिलक सुषुम्ना नाड़ी के उद्वेग को शान्त करता है। यही पर मन की स्वामिनी चन्द्र नाड़ी, आत्मा की अधिष्ठात्री पिंगला और मोक्ष दायिनी सुषुम्ना का संगम है।
इन तीनों नाड़ियों के मध्य ललाट का यही भाग ‘ओमकार’ स्वरूप है। त्रिदेव का निवास भी यहीं प्रकाशमान होता हैं ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है-
‘‘स्नानं दानं तपो होमो देवता पितृ कर्म च,
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं बिना।’’
उल्लेखनीय है- तिलक लगाए बिना सन्ध्या वादन, पितृ कर्म, देव पूजा आदि पुण्य कर्म नहीं करने चाहिए। तिलक लगाने में प्रयोग की जाने वाली ‘अनामिका’ शान्ति देने वाली ‘मध्यमा’ आयु बढ़ाने वाली, अँगुष्ठ’ पुष्टि देने वाला ‘तर्जनी’ मोक्ष देने वाली कही गई है। जिस पत्थर पर चन्दन घिसा जाय उस पर से सीधे चन्दन लेकर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि चन्दन को किसी पात्र जैसे कटोरी ताम्र पात्र निषिद्ध आदि या हथेली पर लेकर ही प्रयोग करना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर दरिद्रता प्राप्त होती है।
तिलक लगाते समय अपना मुख्य उत्तर या पूर्वाभिमुख होकर निम्न मन्त्र बोलते हुए धारण करें:-
‘‘चन्द्रनस्य महत्पुण्यं पवित्रं पाप – नाशनम्।
आपंद हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा।।
देवी-देवताओं को लाल व सफेद चन्दन लगाएं। लाल चन्दन का प्रयोग गणेश जी और दुर्गा, लक्ष्मी, काली का तिलक में प्रयोग करे। इसे देवी – चन्दन या गौरी – चन्दन भी कहते हैं। सफेद चन्दन का प्रयोग देव प्रतिमाओं पर लेपन के लिए होता है। तिलक लगाने से व्यक्ति पूर्ण मानव बन कर सृष्टि का कोई भी कार्य करें तो वह निष्फल नहीं होता है। (पं0 जय गोविन्द शास्त्री)


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