समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। इस समय पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष में पूर्वजों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में श्रद्धापूर्वक किए गए कर्म से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। शास्त्रों अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है उसका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को ही किया जाता है। शास्त्रों में यह भी विधान दिया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को आपने पूर्वजों के देहांत की तिथि ज्ञात नहीं है तो ऐसे में इन पूर्वजों का श्राद्ध कर्म अश्विन अमावस्या को किया जा सकता है। इस के अलावा दुर्घटना का शिकार हुए परिजनों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है। 13 सितंबर 2025, शनिवार को सप्तमी का श्राद्ध है। सप्तमी श्राद्ध पर विधिपूर्वक किए गए ये कर्म न केवल पितरों की आत्मा को तृप्त करते हैं, बल्कि घर-परिवार में समृद्धि और शांति का संचार भी करते हैं।
श्राद्ध विधि-
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंड दान, तर्पण) करवाना चाहिए। सप्तमी श्राद्ध के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पितरों का आह्वान करें। काले तिल, जल, पुष्प और अक्षत के साथ तर्पण करें। पिंडदान के लिए जौ और चावल के पिंड बनाकर पत्तल में रखें और पितरों को अर्पित करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा अवश्य दें।
सामग्री लिस्ट- काले तिल, गंगाजल, जौ-चावल का आटा, घी, शहद, कुश, दूर्वा, पुष्प, तुलसी दल, पत्तल-दोना, दक्षिणा और ब्राह्मण भोजन के लिए शुद्ध सात्त्विक व्यंजन।
उपाय
जरूरतमंदों को वस्त्र या अन्न का दान करें। इसके साथ ही गरीबों और अनाथों की मदद करें। अनाज, कपड़े, छाता, चप्पल, बर्तन आदि जरूरतमंदों को देने से पितृ संतुष्ट होते हैं।
घर में तुलसी के पौधे में जल अर्पित कर “ऊँ पितृदेवाय नमः” मंत्र का जप करना भी शुभ माना जाता है।

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