-पंचाचूली बेस कैम्प को पर्यटन मानचित्र में तेजी से आगे बढ़ाने को मूलभूत सुविधायें देनी नितांत आवश्यक
-प्रान्तीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मण्डल के प्रदेश महामंत्री नवीन वर्मा द्वारा उनकी जुबानी पंचाचूली यात्रा का वृतान्त
उत्तराखण्ड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कई अत्यन्त दर्शनीय स्थल है जहां प्रकृति ने अपनी अनुपम छटा बिखेर रखी है। विशेष रूप से कई हिमनद (ग्लेशियर) प्राकृतिक सौन्दर्य का खजाना है। कुमाऊँ के हिमालयी क्षेत्र में पिण्डारी, मिलम, पंचाचूली हिमनदों का सौंदर्य देखते ही बनता है। यों तो हिमालय के हिमनद जो लगभग 25 लाख वर्ष से अडिग खड़े हैं इन हिमनदों की पिघलने की दर इक्कीसवीं सदी में दोगुनी हो गई है वर्तमान हिमालय में लगभग 600 अरब टन बर्फ होने का अनुमान है। एक समय था जब इसे पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहा जाता था। हिमालयी पर्यावरण का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने माना है कि सन् 1975 से 2000 के मुकाबले सन् 2000 से 2016 के बीच तापमान में औसतन एक डिग्री की वृद्धि देखी गई है।
उक्त जानकारी देते हुए हल्द्वानी निवासी प्रान्तीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मण्डल के प्रदेश महामंत्री नवीन वर्मा ने समाचार सच पोर्टल के सम्पादक अजय चौहान को पंचाचूलली यात्रा का वृतान्त सुनाया और कहा कि उत्तराखण्ड में पंचाचूली बेस अनुपम सौन्दर्य का प्रतीक है। श्री वर्मा द्वारा सुनाये गये उक्त यात्रा के वृतान्त के मुख्य अंश:
पंचाचूली बेस कैम्प ट्रेक में हम हल्द्वानी से 28 जून को निकले थे जिसमें मेरे साथ मोहन बोरा, चन्द्रशेखर पन्त, संजय शर्मा व दिल्ली निवासी हेम जोशीे गये। हम 29 जून को दारमा घाटी के दुग्तू गाँव तक गाड़ी में गये वहां से तीन कि.मी. की चढ़ाई चढ़कर कुमाऊँ मण्डल विकास निगम की फाइबर हटों में पहुंचे और रात्रि विश्राम के बाद हम आगे 4 किमी. जीरो पाइन्ट तक 30 जून की प्रातः गये और वहां 2 घंटे के दृश्योलोकन के बाद धारचूला वापस आ गये।
उच्च हिमालयी क्षेत्र के खूबसूरत व शायद सबसे सुगम पर्यटन स्थलों में पंचाचूली ग्लेशियर (जीरों पाइंट) दारमा घाटी की विहंगम दृश्यों से सभी का मनमोह लेता है। धारचूला से तवाघाट होते हुए धौलीगंगा के किनारे छिरकिला डैम और आगे सोवला तक जाने के बाद इस यात्रा का दुर्गम व निर्माणाधीन सड़क पर गाड़ी चलाना अपने आप में बहुत बड़ा साहसिक अभियान है धारचूला से 70 किमी. के इस सफर मे ंनागलिंग व बालिंग नालों को पार करना पड़ता है इन ग्लेशियरी नालों की खासियत यह है कि दिन में 12 बजे से 4 बजे तक इनमें ग्लेशियर पिघलने से पानी बहुत बढ़ जाता है इसलिए स्थानीय वाहन चालक इसे दिन में पार करने से कतराते हैं उन्हें इन नालों के वेग व क्षमता का अनुभव है इसीलिए हमने अपना वाहन धारचूला में खड़ाकर दिया और वहां से स्थानीय टैक्सी किराये में ले ली थी।
दारमा घाटी में पंचाचूली बेस कैम्प के अतिरिक्त कई दर्शनीय गांव व बुगियाल भी है जैसे सेला का मंडभ बुगियाल, नागलिंग का बयाकसै बुग्याल उल्लेखनीय हैं। यहां दातू गांव से न्योल्पा-स्याँकूटी-गब्बे-निपा से दुुग्तू 8 किमी. का ट्रेक को विकसित करना। दारमा क्षेत्र में जड़ी-बूटी उत्पादन तथा अनुसंधान केन्द्र की स्थापना करना बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। दारमा घाटी में सोवला-चल गाँव से आगे विद्युतीकरण करना दूरसंचार के टावर लगाकर इस क्षेत्र को देश के अन्य मार्गों से जोड़ना विकास के लिए प्रथम पड़ाव है।
दारमा घाटी का अंतिम गांव (सीमान्त गांव) सीपू शिव भगवान की तपोभूमि माना जाता है यहां से मिलम ग्लेशियर को ट्रेक रूट भी है। दुग्तू से आगे वेदांग तक अभी मोटर मार्ग बना है लेकिन सामरिक महत्व के इस क्षेत्र में विकास दर बहुत ही सुस्त गति से चल रही है। पर्यटन व सामरिक महत्व के क्षेत्र में सरकार ने तेजी से सड़क निर्माण व दूरसंचार व्यवस्थायें देकर इसे विकसित करने प्रयास करना चाहिए और पंचाचूली बेस कैम्प को पर्यटन मानचित्र में तेजी से आगे बढ़ने के लिए मूलभूत सुविधायें देनी नितांत आवश्यक है।
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