पूर्व सैनिकों की हर समस्या को दूर करने वाला एक जटायु मेजर बी0 एस0 रौतेला

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-अब तक 1307 पूर्व सैनिकों और वीर नारियों की पेन्शन विसंगति कर चुके हैं दूर।
-किसी को 73 वर्ष, किसी को 52 वर्ष, किसी को 50 वर्ष, तो किसी को 44 वर्ष बाद दिलाई पेंशन।

समाचार सच, हल्द्वानी। आप सभी ने जटायु और भीष्म की कहानी अवश्य पढ़ी होगी। एक ओर आर्यावर्त के सबसे बड़े और शक्तिशाली पुरुष होने के बावजूद भी भीष्म पितामह अपनी ही पौत्रवधु द्रोपदी के चीर हरण पर भी चुप रहे। तो दूसरी ओर जटायु ने बूढ़े होने पर भी माता सीता को बचाने के लिए रावण से भीषण युद्ध किया। रावण इस युद्ध में जटायु पर भारी पड़ा और उसने जटायु के पंखों को काट डाला।
दोनों को फल मिला, परन्तु अलग-अलग।
भीष्म पितामह को छः महीने तक बाणों की सेज पर पड़े रहने का फल मिला। तो वहीं जटायु को प्रभु श्रीराम की गोद में दम तोड़ने का फल मिला।

ऐसे ही वर्तमान समय में एक जटायु बनकर मेजर बी0 एस0 रौतेला पूर्व सैनिकों की हर दुख तकलीफ को दूर करने के लिए बैंक से लेकर सिस्टम तक से लड़ने का कार्य कर रहे हैं।
समाचार सच की टीम आपको इस सप्ताह ‘‘एक मुलाकात शीर्षक’’ में एक ऐसे ही निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले मेजर रौतेला से मिलाने जा रही है जिन्होंने ईमानदारी से पहले देश की रक्षा की और अब पूर्व सैनिकों की सेवा में लगे हुए हैं। समाचार सच के संपादक अजय चौहान और मोटिवेशनल स्पीकर कुलदीप सिंह ने उनकी जुबानी सुनी जिसके एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के कुछ मुख्य अंश:

आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताएं ?
मैं बागेश्वर जिले के कांडा के पास टिटोली गांव का रहने वाला हूँ। मेरे सबसे बड़े ताऊजी सेना में थे। उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में एक जंगी इनाम मिला था। दूसरे ताऊजी को भी मिलिट्री क्रॉस मिला था। मेरे ताऊजी को 1947 के भारत-पाक युद्ध के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया और वो हमारे इलाके के पहले सैनिक थे जिन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इस घटना के बाद मेरे दादा-दादी ने मेरे पिता जी को फौज में नहीं जाने दिया। मैंने कांडा इंटर कॉलेज से सन् 1976 में इंटर किया और रानीखेत के एक एन सी सी कैम्प के बाद सेना में भर्ती हो गया। मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और बी एड भी किया। कुछ समय बाद मैं 20 कुमाऊं में कमीशंड होकर अफसर बन गया।

31 दिसंबर 2007 को मैं आर्मी से रिटायर हुआ। फिर मेरा जिला सैनिक कल्याण अधिकारी के लिए चयन हो गया। मुझे यहां पर भी अपने काम से काफी संतुष्टि मिली और मेरी लोगों में एक पहचान भी बनी।

एक जिला सैनिक अधिकारी को कैसा होना चाहिए?
जिला सैनिक कल्याण अधिकारी का पद तो मुझे ऐसा लगा कि ये नौकरी नहीं होना चाहिए बल्कि सेवा के लिए होना चाहिए। जिला सैनिक कल्याण अधिकारी का दायित्व है लोगों में जागरूकता पैदा करना। सेना का भूतपूर्व अधिकारी ही बनता है जिला सैनिक कल्याण अधिकारी। सब उसकी तरफ देखते हैं कि वो कैसे काम कर रहा है। सेना की छवि की जिम्मेदारी भी उसी पर होती है जिसे उसे बरकरार रखना चाहिए। मैंने करीब 10 साल 7 महीने इस पद पर कार्य किया। मैं हर केस के लिए प्रशासन के पास स्वयं गया और प्रशासन ने भी मुझे भरपूर सहयोग किया। हमने उधमसिंह नगर में अशोक चक्र श्रृंखला के चेक को तत्कालीन जिलाधिकारी श्री डी सेंथिल पांडियन साहब के हाथों ऑफिस में ससम्मान बुलवाकर वितरित करने की नई परिपाटी शुरू की। पांडियन साहब ने इस नई शुरूवात की काफी सराहना भी की और हमें अपना पूर्ण सहयोग भी दिया। “जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। सबसे बड़ी चीज सम्मान है।”

कोई ऐसा केस जिसने आपको भावुक कर दिया हो?
राधा देवी के केस के बारे में बताते हुए मेजर भावुक हो गए। राधा देवी जब पहली बार अपनी पेंशन विसंगति को दूर करने के लिए मेजर साहब के पास पहुंची तो उसने बोला कि मुझे तो ऑफिस आने में डर लगता है। क्योंकि मुझे पता नहीं कि ऑफिस में क्या बात करूँगी? कैसे बात करूँगी? मुझे तो कुछ आता नहीं।
इस पर मेजर साहब ने राधा से कहा कि “अगर तुमसे कोई कुछ कहेगा कि तुम्हारा कौन है तो तुम ये बोलना कि जिला सैनिक कल्याण अधिकारी मेजर रौतेला मेरा भाई है।’’ ऐसा सुनकर वो महिला रो पड़ी। उनका एक लड़का है। मैंने उनको सुझाव दिया कि आप अपने लड़के को भर्ती कराओ। क्योंकि वो एक शहिद का बेटा है तो उसका कोई टेस्ट नहीं होगा उसे केवल मेडिकली फिट होना चाहिए। मैंने रानीखेत को एक पत्र लिखा और मेडिकल टेस्ट उत्तीर्ण कर वो सेना में भर्ती हो गया।
अब जब भी राधा आती है तो बहुत इज़्ज़त और सम्मान देती है।

रिटायर होने के बाद आपका नया ऑफिस कहाँ है?
ये एक एक्स सर्विसमैन लीग है। हर जिले में इसका एक ब्रांच ऑफिस होता है। हल्द्वानी में भी एक जिला सैनिक लीग है। जगदम्बा नगर (दुर्गा सिटी सेन्टर) स्थित ज्ञान गंगा एकेडमी के सामने पानी की टंकी के पास हमारा ऑफिस है। जो भी एक्स सर्विसमैन आता है उसकी समस्या का निवारण किया जाता है। 1 अगस्त 2018 के बाद मैं विभिन्न विषयों से संबंधित लगभग 180 आवेदन पत्र लिख चुका हूँ।

अब तक आप कितने आवेदन पत्र लिख चुके हैं?
मैं आज तक 1307 आवेदन पत्र स्वयं अपने हाथों से लिख चुका हूँ।

हमें शहीदों के घर क्यों जाना चाहिए और समाज के लिए आपका क्या संदेश है?
“एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते जिन्होंने हमारे आज के लिए अपना कल बलिदान कर रखा है ऐसे लोगों को हमने जरूर याद करना चाहिए।”
शहीद लांस नायक उत्तम सिंह का लड़का जब कमीशंड होने के बाद मेरे ऑफिस आया तो मैंने उससे कहा कि चलो खुशाल एक फोटो खिंचते हैं। उसने जवाब दिया कि वहाँ पर खींच दीजिये जहाँ बोर्ड में मेरे पिताजी का नाम है। इस पर उनकी माता जी को जब मैंने बधाई दी तो उन्होंने कहा कि मैं तो चाहती हूँ कि मेरा बेटा जनरल हो जाए। तो खुशाल ने कहा कि “माँ जनरल बनना जरूरी नहीं है। मेरे पिताजी ने इस देश के लिए सर्वाेच्च बलिदान दे रखा है मैं उनके पदचिन्हों पर चल सकूँ तुम मुझे ऐसा वरदान दो।” आज के युग में भी अभिमन्यु होते हैं।
एक वाकया मुझे और याद आ रहा है वॉर मेमोरियल का जब एक शहीद की पत्नी ने अपने 2 बच्चों से कहा कि ये तुम्हारे पापा जी का नाम है। जो वीर लोग हैं उनका नाम है और उसके बाद उनके बेटे ने अपने पिताजी को सैल्युट किया।
शहीदों के परिवार को समाज में सम्मान दिलाना और उनके बच्चों की उचित शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार की भी जिम्मेदारी है।

शहीदों की वीर नारियों को जो समय पर पेंशन नहीं मिली इसके लिए केवल बैंक ही जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए हमारे भूतपूर्व सैनिकों का समाज भी जिम्मेदार है कि उन्होंने उनकी कभी सुध नहीं ली। अगर मेरे पड़ोस या रिश्तेदारी में कोई शहीद है तो ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं उनसे पूछुं तो सही कि पेंशन कितनी आ रही है और हम आपके लिए क्या कर सकते हैं? समाज में हमेशा इंसान ने जटायु की भूमिका निभानी चाहिए।

युवाओं के लिए कोई संदेश?
हिंदुस्तान में भी विदेशों की तरह कंपल्सरी मिलिट्री सर्विस जरूर होनी चाहिए। सेना में जाकर इंसान ईमानदारी और अनुशासन सीखता है। आजकल देश के युवाओं का शारीरिक मानक काफी गिरता जा रहा है। इसलिए उन्हें नशे से दूर रहना चाहिए। युवा ही किसी देश की ताकत होते हैं। देश के युवाओं को बड़ चढ़कर फौज में जरूर जाना चाहिए।

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