समाचार सच, ऋषिकेश (भगवती प्रसाद गोयल)। अघ्खिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में किए गए संयुक्त शोध से पता चला है कि शारीरिक दूरी बनाए रखने, मास्क पहनने और लगातार हाथों की स्वच्छता बनाए रखने से कोविड संक्रमण के प्रसार के जोखिम को रोका जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के बीच कोविड-19 के लिए जिम्मेदार जोखिम कारकों का आंकलन करने के लिए एक बहु-केंद्रित एकता परीक्षण योजना पर कार्य किया जा रहा है। इस योजना के उद्देश्यों के अनुरूप एम्स ऋषिकेश के सीएफएम विभाग द्वारा भी विस्तृत अध्ययन किया गया।
एम्स के सीएफएम विभागध्यक्ष प्रोफेसर वर्तिका सक्सैना और एसोसिएट प्रोफेसर मीनाक्षी खापरे के नेतृत्व में इस अध्ययन की शुरुआत एक वर्ष पूर्व दिसंबर- 2020 में की गई थी। अध्ययन पूर्ण होने पर इस विषय पर एम्स ऋषिकेश के सीएफएम विभाग द्वारा प्रसार कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का विषय ’स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं के मध्य कोविड-19 के लिए जोखिम कारकों का आंकलन और भारत के तृतीयक देखभाल अस्पतालों में अध्ययन’ था। उल्लेखनीय है कि हेल्थकेयर वर्कर स्वास्थ्य प्रणाली की नींव हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार विश्वभर में जनवरी- 2020 से मई- 2021 की अवधि में लगभग एक लाख स्वास्थ्य और देखभाल कर्मियों की मृत्यु का संभावित आंकलन है। अगर भारत की बात करें तो बीमा दावों के आंकड़ों के अनुसार अभी तक कोविड मरीजों के इलाज में लगे 921 स्वास्थ्य कर्मियों की मृत्यु कोविड 19 संक्रमण के कारण हो चुकी है। चूंकि समाज में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ रही थी, ऐसे में पहले से ही अधिक कार्य कर रहे हेल्थ केयर वर्कर एचसीडब्ल्यू भी रोगियों या सहकर्मियों की मृत्यु के कारण व ड्यूटी के दौरान अपने परिवार से अलग रहने के कारण मानसिकतौर पर अस्वस्थ अथवा अवसादग्रस्त हो गए थे। इन हालातों ने उन्हें संक्रमण हेतु त्रुटि के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया, जिससे वह भी मरीजों के इलाज के दौरान संक्रमित हो गए। कार्यशाला में मुख्य अतिथि संस्थान के डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने जांचकर्ताओं की टीम को अध्ययन पूर्ण करने के लिए बधाई दी और कहा कि किसी भी संक्रामक बीमारी से बचाव के मामले में हमारे लिए हाथ धोने, शारीरिक दूरी और व्यक्तिगत सुरक्षा मामलों की मूल बातों का पालन करना नितांत आवश्यक है।
भारत में डब्लूएचओ के प्रोफेशनल अधिकारी डॉ. मोहम्मद अहमद ने उल्लेख किया कि डब्ल्यूएचओ ने अध्ययन केंद्रों की निरंतर निगरानी कर उन्हें अपने स्तर पर तकनीकि और अन्य तरह का पूर्ण सहयोग देते हुए इस बहु-केंद्रित अध्ययन की गुणवत्ता बनाए रखी है। उन्होंने डब्ल्यूएचओ प्रोटोकॉल के अनुसार समय पर अध्ययन पूरा करने के लिए एम्स ऋषिकेश की टीम की सराहना की। डॉक्टर मोहम्मद ने यह भी दोहराया कि हाथ धोना और उपयुक्त पीपीई किट पहनना, कोरोना जैसी अति संक्रामक बीमारियों से रोकथाम के लिए अभी भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय हैं।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए सीएफएम विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सैना ने कहा कि संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिए की जाने वाली बेहतर तैयारी के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को फिर से प्रशिक्षण दिए जाने की नितांत आवश्यकता है। विभाग की सहायक प्रोफेसर डा. मीनाक्षी खापरे ने अध्ययन के परिणामों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 35.3 प्रतिशत नर्सों और 30.4 प्रतिशत चिकित्सकों में एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए किए गए डायग्नोस्टिक सीरोलॉजी परीक्षण में पाया गया कि 86.1 प्रतिशत मामले और 24.6 प्रतिशत गैर-टीकाकरण नियंत्रण एंटीबॉडी की शरीर में मौजूदगी के लिए पॉजिटिव थे। उन्होंने बताया कि हाथों की स्वच्छता बरकरार न रखना, उचित पीपीई नहीं पहनना, रोगी की सामग्री को छूकर उसके संपर्क में रहने से कोविड संक्रमण का खतरा 80 प्रतिशत बढ़ जाता है। कार्यशाला में इस अध्ययन की समन्वयक और शिक्षक डॉ. अपराजिता मेहता ने सभी जांचकर्ताओं को अध्ययन में उनकी समर्पित भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया।
कार्यशाला में एम्स अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अश्विनी दलाल, अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. रंजीता कुमारी, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. महेंद्र सिंह, सहायक प्रोफेसर माइक्रोबायोलॉजी डॉ अंबर प्रसाद, एसएमओ डब्ल्यूएचओ डॉ. विकास शर्मा, डॉ आशुतोष ने प्रतिभाग किया। इस दौरान डॉ पल्लवी (एसआर), डॉ रोहित (एसआर), जूनियर रेजिडेन्ट्स और एमपीएच छात्र मौजूद थे।
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