समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। शास्त्रानुसार विष्णु को स्तुति, देवी को अर्चन, सूर्य को अर्घ्य एवं पितरों को तर्पण अतिशय प्रिय है। इसलिए श्राद्ध पक्ष में ‘कुतप’ काल में नित्य तर्पण करें। तर्पण सदैव काले तिल, दूध, पुष्प, कुश, तुलसी, नर्मदा/गंगाजल मिश्रित जल से करें। तर्पण सदैव पितृ तीर्थ (तर्जनी व अंगूठे के मध्य का स्थान) से करें।
श्राद्ध में लोहे या स्टील के पात्रों का उपयोग ना करें-
शास्त्रानुसार श्राद्ध कर्म में लोहे या स्टील के पात्रों का प्रयोग वर्जित है। श्राद्ध कर्म में चांदी के पात्रों को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। चांदी के अभाव में तांबे के पात्रों का प्रयोग कर सकते हैं।
श्राद्ध में ‘वृषोत्सग’ का बहुत महत्व है-
शास्त्रानुसार शास्त्र म ‘वृष’ (नन्दी) छोड़ने का बहुत महत्व बताया गया है। गौ-दान के समान ही श्वृषश् दान भी करना चाहिए, लेकिन यह कर्म केवल पुरुषों के निमित्त ही करना चाहिए महिलाओं के लिए नहीं। ‘वृषोत्सग’ के बिना किए गए श्राद्ध का फ़ल निष्फ़ल हो जाता है।
आमान्न दान से श्राद्ध की संपन्नता-
हमारे शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है कि जो व्यक्ति श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराने में असमर्थ हों वे ‘आमान्न’ दान से भी श्राद्ध को संपन्न कर सकते हैं। ‘आमान्न दान’ किसी ब्राह्मण को ही किया जाना चाहिए। ग्रामीण अंचलों में इसे ‘सीदा’ देना भी कहा जाता है।
- आमान्न दान- अन्न, घी, गुड़, नमक आदि भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं।
श्राद्ध पक्ष में करे ‘पितृ स्तुति’-
श्राद्ध पक्ष में नित्य मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत ‘पितृ स्तुति’ करने से पितृ प्रसन्न एवं तृप्त होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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