समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। आश्विन माह की एकादशी तिथि का खास महत्व है। इस दिन इंदिरा एकादशी व्रत रखा जाता है। पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को एकादशी श्राद्ध किया जाता है। इस साल एकादशी श्राद्ध 17 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति व तृप्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण किया जाता है। एकादशी के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन किसी भी माह की एकादशी तिथि को हुआ हो। जानें एकादशी श्राद्ध का मुहूर्त व विधि।
एकादशी श्राद्ध मुहूर्त- एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध भी कहा जाता है। इस दिन श्राद्धों को संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि शुभ मुहूर्त माने गए हैं। मान्यता है कि अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध संबंधी अनुष्ठान संपन्न कर लेने चाहिए। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है। जानें शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि 17 सितंबर को सुबह 12 बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और 17 सितंबर को रात 11 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी।
कुतुप मूहूर्त – सुबह 11.51 बजे से दोपहर 12.40 बजे से।
अवधि – 49 मिनट
रौहिण मूहूर्त – दोपहर 12.40 बजे से दोपहर 01.29 बजे से।
अवधि – 49 मिनट
अपराह्न काल – दोपहर 01.29 बजे से दोपहर 03.56 बजे तक।
अवधि – 02 घंटे 27 मिनट
एकादशी श्राद्ध विधि-
एकादशी श्राद्ध के दिन सूर्याेदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें। एक थाली में काले तिल, दूध, जल और गंगाजल मिलाएं। इसके बाद पितरों का ध्यान करें। पितरों का ध्यान लगाते हुए अंजुली में जल लेकर धीरे-धीरे धरती पर गिराएं। श्राद्ध के दिन चावल या जौ के आटे से गोल पिंड बनाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों को तृप्ति मिलती है। खाने में सात्विक भोजन बनाएं। अगर ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराएं और गाय, कौवे और कुत्तों को भी खिलाना चाहिए। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को वस्त्र, अनाज या दक्षिणा का दान करना चाहिए।

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