समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि में उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन द्वादशी तिथि में हुआ हो। शास्त्रों के अनुसार, जो लोग मृत्यु से पूर्व सन्यास ग्रहण कर लेते हैं, उनके श्राद्ध के लिए भी द्वादशी तिथि उपयुक्त मानी जाती है। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। श्राद्ध को करने के लिए कुतुप व रौहिण आदि शुभ मुहूर्त माने गए हैं। कहते हैं कि अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध संबंधी कर्म संपन्न लेने चाहिए। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है। जानें द्वादशी तिथि में श्राद्ध करने का उत्तम मुहूर्त।
द्वादशी तिथि कब से कब तक
द्रिक पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि 17 सितंबर को रात 11 बजकर 39 मिनट से 18 सितंबर को रात 11 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि में द्वादशी श्राद्ध 18 सितंबर, गुरुवार को किया जाएगा।
द्वादशी तिथि पर श्राद्ध के शुभ मुहूर्त
कुतुप मूहूर्त – सुबह 11.50 बजे से दोपहर 12.39 बजे तक।
अवधि – 49 मिनट
रौहिण मूहूर्त – दोपहर 12.39 बजे से दोपहर 01.28 बजे तक।
अवधि – 49 मिनट
अपराह्न काल – दोपहर 01.28 बजे से दोपहर 03.55 बजे तक।
अवधि – 02 घंटे 27 मिनट
द्वादशी श्राद्ध का महत्व
मान्यता है कि इस दिन पूर्वजों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति व तृप्ति प्राप्त होती है। द्वादशी तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि इस तिथि पर विधि-विधान से श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर वंशजों की संकटों से रक्षा करते हैं।
पूजा विधि-
- सुबह स्नान आदि करके साफ कपड़े पहनें और पूजा घर को साफ करें।
- हाथ में जल, जौ, कुशा और काले तिल लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण करें।
- अब पितरों को चावल, जौ और तिल से बने पिंड अर्पित करें।
- पितरों को सात्विक भोजन का भोग लगाएं।

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