समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। इस बार पितृ पक्ष 10 से 25 सितंबर तक रहेगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, पुत्र द्वारा पिंडदान, तर्पण आदि करने पर ही पिता की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। लेकिन यदि किसी व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसके स्थान पर श्राद्ध, पिंडदान आदि कौन कर सकता है, इस संबंध में भी धर्म ग्रंथों में संपूर्ण जानकारी दी गई है। आगे जानिए पुत्र न हो तो कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है।
श्राद्ध का पहला अधिकार पुत्र का
धर्म ग्रंथों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। अगर सबसे बड़े पुत्र की भी मृत्यु हो गई हो तो उससे छोटे पुत्र को श्राद्ध का अधिकारी माना गया है। यानी परिवार में जो बड़ा भाई जीवित हो, उसे ही पिता का श्राद्ध करना चाहिए। यही नियम है।
पत्नी भी कर सकती है श्राद्ध
अगर किसी व्यक्ति का कोई पुत्र न हो तो उनके स्थान पर पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी भी अगर न हो तो सगा भाई और अगर वह भी न हो तो संपिंडों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। अगर परिवार में कोई सदस्य न बचा हो तो एक ही समान गौत्र का व्यक्ति भी श्राद्ध कर सकता है।
पोता कर सकता है श्राद्ध
पुत्र, पत्नी, भाई के न होने पर पौत्र (पोता) या प्रपौत्र (पड़पोता) भी श्राद्ध कर सकते हैं। ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है। अगर किसी व्यक्ति का वंश का समाप्त हो गया हो तो उसकी पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।







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