पानी पीने के लिए चांदी, तांबा, कांसा और पीतल के पात्र को उत्तम माना जाता, क्या है अंतर इनमें

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Silver, copper, bronze and brass vessels are considered best for drinking water, what is the difference between them?

समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। पानी पीना भोजन करने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि 99 प्रतिशत रोग पानी से ही होते हैं। कौनसा पानी पीना चाहिए और किस पात्र में पानी पीना चाहिए यह सभी आयुर्वेद और धर्म की किताबों में लिखा है। पानी पीने के लिए चांदी, तांबा, कांसा और पीतल के पात्र को उत्तम माना जाता है। लोहे, प्लास्टिक या स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसी के साथ कहा जा रहा है कि पानी लोटे में पीना चाहिए या कि गिलास में? आओ जानते हैं।

कहते हैं कि प्राचीन भारत में गिलास नहीं हुआ करते थे। उस दौर में तांबे और पीतल के लोटे के उपयोग होता था। गिलास का प्रचलन पुर्तगाल से हुआ। पुर्तगालियों के कारण भारत में इसका प्रचलन हुआ।

  1. वागभट्ट कहते हैं कि लोटा उत्तम है क्योंकि यह एक रेखीय नहीं है। गिलास में पीना अच्छा नहीं होता है। गिलास को त्याग दीजिये। कहते हैं कि पानी के अपने कोई गुण नहीं होते हैं इसीलिए पानी जिस भी और जैसे भी पात्र में होता है वह वैसे ही गुण धारण कर लेता है। साथ ही पानी को जिसमें भी मिला दिया जाए व उसके जैसे गुणों वाला हो जाता है। जैसे, दूध में दूध जैसा और दही में दही जैसा।
  2. इसी तरह पीतल में पीतल और तांबे में तांबे जैसा। इसी तरह पानी पर पात्र के आकार का भी फर्क पड़ता है। लोटा गोल होता है और गिलास का आकार शंकु का छिन्नक और सिलेंडर के आकार की तरह होता है। अब लोटा गोल है तो पानी उसी के गुण धारण कर लेगा।
  3. हमारे यहां पर कुंए या कुंडी के अकार भी लोटे की तरह होते हैं। कुआ गोल है। गोल वस्तु का पृष्ठ तनाव कम रहता है, क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा। सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा। यह सेहत की दृष्टि से उत्तम है।
  4. कहते हैं कि यदि ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज़ आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है। क्योंकि उसमें शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है।
  5. साधु संतों के पास जो कमंडल होता है वह लोटे के आकार या कुंए के आकार का होता है।
  6. सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है। पानी का एक गुण है आंतों की सफाई करना। बड़ी और छोंटी आंत में से एक मेम्ब्रेन वहां पर गंदगी जम जाती है। पेट की साफाई के लिए इसे बाहर करना होता है और यह तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो।
  7. इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि आप अपने चेहरे पर दूध लगाएं और उसे 5 मिनट के बाद रुई से पोंछे। रुई एकदम काली हो जाएगी। मतलब कि चेहरे कि सारी गंदगी बाहर निकल गई। क्योंकि दूध का सरफेस टेंशन कम रहता है। इस प्रयोग में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी। यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है। उसका पानी आंतों को उसी तरह से साफ कर देता है।
  8. यदि आप प्रतिदिन तांबे के घड़े के रखे जल को तांबे के लोटे से पिएंगे तो आपका पेट एकदम साफ रहेगा और शरीर में मजबूती आएगी। आपको भविष्य में कभी भी भगंदर, बवासीर, आंतों में सूजन जैसे रोग नहीं होंगे।
  9. इसीलिए कहा जाता है कि लोटे का पानी पिएं। गिलास का प्रयोग बंद कर दें। बारिश की बूंदें जिस प्रकार की होती है उसी प्रकार से लोटे में पानी गोल संवरक्षित रहता है।

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