समाचार सच, हल्द्वानी (नीरू भल्ला)। दूसरों के दर्द को उकरने वाले पत्रकार या मीडिया कर्मी कभी खबरों की सुर्खियां नहीं बनते। कुछेक घटनाओं को छोड़ दें तो पत्रकारों की खबरें सुर्खियों में कम ही रहती हैं। रहें भी कैसे, जिस दुनिया में वो काम करते हैं वे ही उसकी खबरें छापने को तैयार नहीं होते हैं। उलटा आवाज उठाने पर उसकी छुट्टी कर दी जाती है या उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
ज्ञात हो कि सरकार भले ही पत्रकारों के कल्याण की बात तो करती है लेकिन व ह मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही सुविधाएं मिलती हैं। इसके इतर उन पत्रकारों को कोई सुविधाएं नहीं मिलती जिन्होंने अपने जिन्दगी का अधिकतर समय पत्रकारिता हुए बीत गया। इधर जो पत्रकार किसी बड़े घरानों में नौकरी करते हैं, उनका वेतन और सुविधाएं अपेक्षाप्रद संतोषजनक है। वहीं छोटे समूहों के दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक और पोर्टल के पत्रकार आर्थिक बदहाली में जीवन जी रहे हैं। हालाकि इनमें से अनेक पत्रकारों का जीविका का साधन अन्य धंधे भी हैं इसलिए वे इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं। इधर हल्द्वानी में अनेक पत्रकार और कलमकार ऐसे हैं जो आर्थिक स्थ्तिि बदहाल होने के कारण दयनीय जिन्दगी जीवन जीने को मजबूर हैं। वहीं कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो दुर्घटना या या बीमार होने पर इस लाइन से किनारा कर चुके हैं। आज इनकी सुध लेने को कोई तैयार नहीं है।
बीमार बेटी की हेल्प का नहीं आया कोई आगे
हल्द्वानी। पिछले दो सालों से दिल्ली में इलाज करा रहे पत्रकार धीरज भट्ट की बीमार बेटी के इलाज को कोई मद्द को आगे नहीं आया। लाकडाउन के दौरान हल्द्वानी प्रेस क्लब की तरफ से दो माह की दवाई मुहैय्या करायी गयी थी। इसके अलावा किसी संगठन या समाजसेवी ने कोई पहल नहीं की। इधर कुछ मठाधीशों ने फोन या तो नाट रीचेबल कर दिये या रिजेक्ट में नम्बर डाल दिया। हालाकि सीएम राहत से हेल्प के लिए पत्र नेता प्रतिपक्ष डा. इन्दिरा हदयेश व लालकुआं के विधायक नवीन दुम्का को भी दिया था लेकिन कोई उतर अभी तक नहीं मिला।
समाज सेवियों ने नहीं ली सुध
हल्द्वानी।लाकडाउन में हल्द्वानी के लोगों ने जानवरों, गायों और बंदरों को भी खाना खिलाया लेकिन जो लोग बीमार थे। उन्हें दवाई आदि दिलाने के लिए कोई आगे नहीं आया। एकाध संगठनों को छोड़कर कोई आगे नहीं आया। हल्द्वानी के तमाम समाज सेवी, नेता यहां पर तमाम बैनर व फ्लैक्सी टांग रहे हैं लेकिन इस पैसों से किसी की सेवा हो जाती तो अच्छा होता।
भाई साहब पैसा मारने वालों की कमी नहीं
हल्द्वनी। एक कलमकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे पिछले 17 सालों से हल्द्वानी में तमाम दैनिकों, साप्ताहिकों, पाक्षिक और पत्र-पत्रिकाओं में काम कर चुके हैं। न मालूम कितने लेख लिखे और एडिट की लेकिन यहां पर ही अन्याय ही हुआ। जैसे ही काम पूरा हुआ तो लोगों ने कहा कि भाई साहब हो जायेगा लेकिन अभी तक नहीं हुआ।
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