भारत को जोड़ने वाली भाषा है संस्कृत: उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू

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-दिल्ली छत्तरपुर मंदिर में तीन दिवसीय चल रहे संस्कृत भारती विश्व सम्मेलन का समापन

समाचार सच, नई दिल्ली। संस्कृत भारत को जोड़ने वाली भाषा है। भारतीय ज्ञान-विज्ञान संस्कृत भाषा में है। हमें हमारे ऋषि-मुनियों का ज्ञान प्रयोग में लाना चाहिए। दुनिया की सारी समस्याओं का हल संस्कृत में है। दुनिया में संस्कृत का अध्ययन तथा संस्कृत में शोध हो रहा है।

उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने दिल्ली छत्तरपुर मंदिर में तीन दिवसीय चल रहे संस्कृत भारती विश्व सम्मेलन के समापन समारोह में बतौर मुख्यअतिथि बोल रहे थे। उन्होंने विशेष अधिवेशन में कहा कि संस्कृत भारती के संभाषण आंदोलन में हमें सहयोग करना चाहिए ऐसी देशवासियों से मेरी अपील है। उन्होंने कहा कि तेलुगू और संस्कृत एकदम नजदीक है। संस्कृत मैंने नहीं पढ़ी फिर भी मैं संस्कृत समझ सकता हूं। संस्कृत को सरल भाषा बनाकर आम बोलचाल की भाषा बनाना है और इससे भी आगे बढ़ना है। उनका कहना था कि दुनिया में लोगों को नहीं भूलना चाहिए, एक मां को और दूसरी जन्मभूमि को लेकिन तीसरी मातृभाषा है जिसको नहीं छोड़ना चाहिए। हमें संस्कृत को फैशन बनाना है।

सम्मेलन में बोलते हुए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि संसार में कोई भाषा नहीं है जिसका वर्तमान में स्वरूप है। एकमात्र संस्कृत भाषा ही है जो आज भी विद्यमान है। संस्कृत भारत की ही नहीं विश्व की भाषा हो सकती है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में संस्कृत विश्वविद्यालय खोलेंगे।

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जूना पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर अवधेशानंद आचार्य ने कहा कि विश्व में ज्ञान का पर्याय संस्कृत भाषा है। इसमें कालगणना, सुनने का बोध, शास्त्र, परमपुरुष का ज्ञान और सर्वव्यापी सत्ता इत्यादि सभी का ज्ञान है। उन्होंने कहा कि युवा मन में संस्कृत को पढ़ने की जिज्ञासा जगी है।

इस मौके पर संस्कृत भारती द्वारा विश्व सम्मेलन में “विश्वे संस्कृत” विषय पर लगाई गई प्रदर्शनी देश विदेशों में किये गये संस्कृत के प्रचार कार्य का अद्भुत प्रदर्शन करती है। साथ ही हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का हिमाचल प्रदेश में संस्कृत को द्वितीय भाषा बनाने के लिए संस्कृत भारती ने विश्व सम्मेलन में सम्मानित भी किया।

विश्व सम्मेलन के प्रथम दिन उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि केंद्रीय चिकित्सा, स्वास्थ्य तथा विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि ऐसा कार्यक्रम जीवन में पहली बार मैंने देखा है, जिससे मेरी आत्मा तृप्त हो गयी। संस्कृत भारती संजीवनी का संचार करती है। संस्कृत संभाषण को आंदोलन के रूप में संस्कृत भारती ने लिया है। आज 21 देशों में से एक लाख लोग संस्कृत पढ़ रहे हैं। पूरे भारत में 1 से 12 कक्षा तक तीन करोड़ के लगभग छात्र संस्कृत पढ़ रहे हैं।

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संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देव पुजारी ने तीन वर्ष का कार्यवृत्त प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि 17 देशों में संस्कृत भारती का कार्य चल रहा है। 21 देशों के 76 प्रतिनिधि इस विश्व सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। 542 जिलों के 3883 स्थानों से प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन निश्चित रूप से संस्कृत का यश फैलायेगा।

संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के शैक्षणिक निर्देशक चांद किरण सलूजा ने माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का संदेश पढ़ा।

संस्कृत के प्रेम के लिए नितान्त विख्यात लोकसभा सदस्य प्रतापचंद्र षडंगी ने संस्कृत में विचार व्यक्त करते हुए संस्कृत भाषा के महत्व को प्रकाशित किया। उन्होंने कहा कि जो संस्कृत को नहीं जानते वो भारत को नहीं जानते हैं। संस्कृत भाषा सर्वाधिक उत्तम भाषा है ।

कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्कृत भारती के अखिल भारत अध्यक्ष प्रोफेसर भक्तवत्सल शर्मा ने कहा कि संस्कृत भाषा नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। 21वीं शताब्दी संस्कृत शताब्दी के रूप में हो ऐसा प्रयास करना है। अंत में कार्तज्ञ्य निवेदन अखिल भारतीय साहित्य प्रमुख सत्यनारायण ने किया। विश्व सम्मेलन में विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, आचार्य, अध्यापक तथा विभिन्न गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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