समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। किसी भी तरह के संक्रमण के माध्यम से हुए सर्दी, नजला, जुकाम जब लंबे समय तक बने रहते हैं तो वे ‘सायनस’ की तकलीफ का रूप धारण कर लेते हैं। नाक की जड़ की हड्डियों के ढांचे में जो छिद्र होते हैं उन्हें चिकित्सा विज्ञान में सायनस के नाम से जाना जाता है। जब सायनस में श्लेष्मा अधिक देर तक जमा रहता है तो इससे उनमें सूजन पैदा हो जाती है, जिससे श्वांस लेने में तकलीफ होती है।
सर्दी-जुकाम जल्दी- जल्दी होने लगता है, नाक के पिछले भाग में भारीपन होने लगता है, सिरदर्द लगातार बना रहता है, जिससे तनाव की अनुभूति होने लगती है। स्वाद और गंध को महसूस करने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
साइनोसाइटिस का मुख्य कारण नाक की हड्डियों के ढांचे में स्थ्ज्ञित छिद्रों में विजातीय द्रव्यों का या मल का एकत्र हो जाना है, इसलिये अगर इस रोग का शीघ्र इलाज न किया जाए तो धीरे-धीरे यह रोग बढ़कर पुराना पड़ जाता है और फिर इसका उपचार बड़ी कठिनाई से होता है।
इस रोग के पूर्ण उपचार के लिए केवल नाक ही नहीं अपितु समूचे शरीर एवं संपूर्ण रक्त की शुद्धि करना आवश्यक है। यह सिर्फ योग उपचार द्वारा ही संभव है।
साइनोसाइटिस रोग के उपचार के लिए मुख्यतः बढ़े हुए श्लेष्मा का निकालना तथा सायनस पाकेट्स की सफाई के साथ-साथ हल्के सेंक और जल – नेति के माध्यम से सम्पन्न हो जाता है। योगासनों के द्वारा शरीर की आंतरिक ऊर्जा में बढ़ौत्तरी हो जाती है।
यौगिक उपचार में ताड़ासन, सूर्यनमस्कार (सभी के पांच-पांच चक्र) श्वासन (पांच मिनट के लिए), पश्चिमोतानासन, शशांकसन, धनुरासन तथा भुजंगासन, प्राणायाम में सूर्यभेदी एवं भ्रस्त्रिका तथा षटकर्मों में कुंजल, जल नेति एवं कपाल भांति इसके लिए बहुत ही लाभदायक एवं उपयोग हैं। सोहम साधना तथा महामृत्युंजय मंत्र जाप इस रोग के उपचार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
-साइनोसाइटिस की प्राकृतिक चिकित्सा में इस के लिए एक दो दिन का उपवास आवश्यक है। अगर कब्ज हो तो कब्ज टूटने तक एनिमा लें। पांच-सात दिन तक उबली शाक – सब्जी, सूखे मेवे, मौसमी फल और शहद लें।
-नित्य गाजर और आंवले के रस में शहद मिलाकर लें। दूध या दूध बने डेयरी पदार्थों से परहेज करें।
-पेड़ू पर गीली मिट्टी की पट्टी आधा घंटा रखें। प्रतिदिन दो बार चेहरे पर पांच से दस मिनट तक भाप लें। इस समय सिर पर ठंडा तौलिया रखना आवश्यक है। उसके बाद चेहरे को गीले तौलिए से पोंछ लें।
-रात को सोते समय पांवों को दस से पंद्रह मिनट के लिए गर्म पानी में रखें। यह क्रिया करते समय सिर पर ठंडा तौलिया जरूर रखें।
-गर्म पानी में से पांव निकालने के तुरंत बाद आधा मिनट पांव ठंडे ताजे पानी में रखें।
-दिनचर्या को सात्विक बनायें तथा विश्राम करें। इससे कुछ ही दिनों में इस रोग से पूर्ण निजात मिल जाएगा।


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