समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। श्राद्ध पक्ष में अष्टमी तिथि का श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है, जिनका निधन अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन विधिवत श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुतुप काल के मुहूर्त में किए गए कर्मों का फल सीधे पितरों को मिलता है। इसी कारण श्राद्ध कर्म करने के लिए कुतुप काल को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण समय माना जाता है।
अष्टमी श्राद्ध तिथि और मुहूर्त 2025
अष्टमी श्राद्ध तिथि- रविवार, सितंबर 14, 2025 को
अष्टमी तिथि का प्रारम्भ- 14 सितंबर 2025 को सुबह 05.04 बजे से,
अष्टमी तिथि समाप्त- 15 सितंबर 2025 को सुबह 03.06 बजे तक।
14 सितंबर 2025, रविवार – अष्टमी श्राद्ध अनुष्ठान का समय-
अपराह्न काल- दोपहर 01.47 से 04.15 तक।
अवधि- 02 घंटे 27 मिनट्स
कुतुप मुहूर्त- दोपहर 12.09 .से 12.58 तक।
अवधि – 00 घंटे 49 मिनट्स
रौहिण मुहूर्त- दोपहर 12.58 से 01.47 तक।
अवधि- 00 घंटे 49 मिनट्स
कैसे करें अष्टमी तिथि का श्राद्ध: अष्टमी श्राद्ध की विधि इस प्रकार है
श्राद्ध की तैयारी
स्थान और समय
श्राद्ध कर्म हमेशा दोपहर के समय यानी कुतुप मुहूर्त में ही किया जाता है, क्योंकि यह समय पितरों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
सामग्री
श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री में गंगाजल, तिल, जौ, चावल, दूध, घी, शहद, खीर, पूरी, हलवा, और पितरों को पसंद आने वाले अन्य सात्विक व्यंजन शामिल होते हैं।
पवित्रता
श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को उस दिन पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र रहना चाहिए। श्राद्ध से एक दिन पहले से ही सात्विक भोजन करना शुरू कर दें।
श्राद्ध की विधि
स्नान
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
तर्पण
एक थाली में जल, काला तिल, कच्चा दूध, जौ और तुलसी मिलाकर रखें। कुश (घास) की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनें। हाथ में जल, सुपारी, सिक्का और फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें। फिर पितरों के नाम से तर्पण करें।
पिंडदान
चावल, जौ, और काले तिल को मिलाकर पिंड बनाएं। इन पिंडों को पितरों को अर्पित करें और उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें।
त्रपंचबलि
श्राद्ध के भोजन में से पांच हिस्से अलग निकालें और उन्हें गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवता यानी पंचबलि के लिए रखें।
ब्राह्मण भोजन
पंचबलि के बाद ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएं। अष्टमी श्राद्ध में आठ ब्राह्मणों को भोजन कराने का विशेष विधान है। अगर यह संभव न हो, तो कम से कम एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं।
दक्षिणा और दान
ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उन्हें दक्षिणा, वस्त्र और अन्य जरूरत की चीजें दान में दें।
पितृ मंत्र
श्राद्ध के बाद, ‘ऊँ पितृ देवतायै नमः’ मंत्र का जाप करें और गीता के आठवें अध्याय का पाठ करें।
अष्टमी श्राद्ध की सावधानियां
भोजन-वस्तु पर सावधानी
मांस, मछली, अंडा, लहसुन, प्याज, मद्य आदि का त्याग करें। इन दिनों सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
समय की पाबंदी
श्राद्ध कर्म तभी करें जब तिथि एवं मुहूर्त दोनों ठीक हों। यदि तिथि कट चुकी हो, तो अगले नियमों का पालन करें।
नवीन कार्य न करें
इस दिन नए व्यापार, बड़े सौदे, विवाह आदि जैसे मंगल कार्यों से बचें।
व्यवहार एवं मनोभाव
पितृ तर्पर के समय मन शुद्ध, भाव श्रद्धापूर्ण हो। क्रोध, द्वेष, अहंकार आदि से दूर रहें।
स्वच्छता
पूजा स्थल तथा भोग सामग्री और भोग रखे जाने वाले बर्तन आदि स्वच्छ हों। पूजा के लिए शुभ सामग्री हो।
सूतक / ग्रह प्रभाव
यदि किसी ग्रहण या सूतक स्थिति हो, तो स्थानीय पुरोहित या धर्मगुरु की सलाह लें कि श्राद्ध कर्म किस वक्त करना उपयुक्त होगा।

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