चुनावों के दौरान इजा-बाबू, भूला-बैणी कहने वाले हो जाते हैं गायब
समाचार सच, हल्द्वानी (धीरज भट्ट)। चुनावों के दौरान पैरों में नतमस्तक होकर इजा, बाबू, भूला-बैणी कहने वाले चुनावों के बाद उन्हीं लोगों का फोन उठाना नागवार समझते हैं जिन्होंने चुनावों के दौरान नेताजी की मद्द की थी। गाहे-बेगाहे नेताजी के पास किसी का फोन चले भी जाता है तो उनका पीए या सहायक नेताजी के मीडिंग में व्यस्त हैं कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। अगर फोन करने वाला व्यक्ति दुबारा फोन करता है तो उसे बाद में या आगे का हवाला देकर चलता कर दिया जाता है। हालाकि यह फलसफा किसी एक नेता पर नहीं अमूमन सारे नेताओं पर सत्य चरितार्थ होता है। चलो एक दफा के लिए मान भी लेते हैं कि मंत्री आदि का शैड्यूल व्यस्त हेाने के कारण वे सभी का फोन नहीं उठा पाते हैं। लेकिन आज आलम यह है कि प्रधान का फोन लगाते हैं तो वे भी व्यस्त होने का दावा करते हैं या अपने फोन को व्यस्त करकर टालमटोली या कल आना कहकर अपना पक्ष रख देते हैं। इधर पहाड़ों में हाल और भी बुरा है। यहां पर लोग पलायन करके मैदानी क्षेत्रों में चले गये हैं तो जनप्रतिनिधि भी क्यों चूके। हालिया दिनों में एक गांव की प्रधान मैदानी क्षेत्र में कार्यरत अपने पति के साथ चली गयी और इधर उसके गांव में किसी व्यक्ति को प्रधानी से काम था । ऐसी परिस्थिति में उस व्यक्ति के साथ समस्या पैदा हो गयी।
नेताजी का वर्जन
हल्द्वानी। नाम न छापने की शर्त पर एक नेताती ने कहा कि आजकल लोग फोन पर ऐसी फरमाइश भी करते हैं कि जो हमारी सीमा से बाहर है या हम कभी फोन बाहर होने के कारण नहीं उठा पाते हैं। हालाकि इसे अन्यथा नहीं समझना चाहिए।
इधर पधानी बोली रांग नंबर
हल्द्वानी। इधर पधानी अपने घर पर नहीं थी। फोन लगाने पर पता चला कि वो शहर से बाहर है। हालाकि उनका फोन उठा लेकिन उन्होंने फोन रांग नंम्बर कहकर टाल दिया।


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